बूंद-बूंद दूध बह गया देखा जो लहू लाल का

देवेन्द्रराज सुथार
देवेन्द्रराज सुथार
– देवेन्द्रराज सुथार
छाती से सारा बूंद-बूंद दूध बह गया देखा जो लहू लाल का, मन माँ का ढह गया। अब उम्र भर न सोएंगे उस माँ के दोनों नैन, सब चैन लूट ले गया इस दिल का था जो चैन…। कवियित्री अंकिता चतुर्वेदी की ये उक्त पंक्तियां गुरुग्राम के रेयान इंटरनेशनल स्कूल में सात साल के दूसरी कक्षा में पढ़ने वाले प्रद्युम्न की हत्या पर करारा प्रहार है। घर से जिस माँ ने अपने जिगर के लाल को तैयार करके बड़ी उम्मीदों के साथ स्कूल में पढ़ने के लिए भेंजा था लेकिन थोड़ी देर बाद उसी माँ को जब अपने बेटे के हत्या के समाचार मिले होंगे तो सोचो उस माँ पर क्या बीती होंगी….! क्या हाल हुआ होगा उस पिता का जिसने जन्म से ही अपने बेटे को खूब पढ़ा-लिखाकर बड़ा आदमी बनाने के रंगीन स्वप्न संजोये थे। स्कूल के टॉइलट में बेहरमी से गला रेतकर की गयी हत्या किसी भी माँ-बाप का दिल दहला सकती है। तो फिर आखिर प्रद्युम्न की माँ अपनी बेटे के न होने के समाचार सुनकर खुद को कैसे रोक पाती।
अपने हंसते-खिलखिलाते जिगर के टुकडे की लाश देखकर माँ बेहोश होती रही। जब भी होश में आयी तो कातिलों को न बख्शे जाने की विनति करती रही। यहां तक कि माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जिक्र करते हुए यह भी कहते हुए दिखी – मोदी जी बहुत अच्छे इंसान है। ये सब लोग कहते है। बस ! मोदी जी आप मेरे बाबू (बेटे) के कातिलों को ला दिजिए। हम छोटे लोग है, हम आगे कुछ नही कर सकते। आप कर सकते है सर ! मार्मिक वेदना और वात्सल्य की रोती-बिखलती चीत्कार किसी के भी अश्क बहा देने के लिए काफी है। घर में साया मातम और रोता हर एक कोना प्रद्युम्न की याद में सहमा और डरा हुआ था। बस कंडक्टर के अपराध कबूल जाने के बाद भी प्रद्युम्न की माँ को आशंका है कि इस निर्मम हत्या के पीछे मास्टरमाइंड कोई ओर ही है। मां-बाप उस मास्टरमाइंड का पर्दाफाश करनी की गुहार लगा रहे है। दरअसल जिस स्कूल में प्रद्युम्न की हत्या हुई उसी स्कूल के स्विमिंग पूल में पहले भी एक बच्चे के डूबकर मर जाने की घटना घटित हो चुकी है। सवाल है कि क्यूं आखिर पहले ही बीत चुकी घटना से स्कूल के प्रिंसिपल ने सबक नहीं लिया ? स्कूल प्रशासन द्वारा बच्चों की सुरक्षा को लेकर समय रहते गंभीरता न बरतने के कारण हुई ये घटना पूछताछ व कई सवालों के घेरे में है।
इसी घटना के 24 घंटे के भीतर ही राजधानी दिल्ली के एक निजी स्कूल में सुरक्षा गार्ड द्वारा एक बच्ची के साथ दुष्कर्म की घटना सामने आयी है। जानकारी के मुताबिक पांच की पीड़ित बच्ची परिवार के साथ रघुबरपुरा इलाके में रहती है और सुभाष मोहल्ला स्थित स्कूल में पढ़ती है। स्कूल से दोपहर करीब डेढ़ बजे बच्ची घर आ गई। शाम को उसने माँ से कहा कि उसके पेट में दर्द है। इसके बाद माँ उसे अस्पताल लेकर गई। वहां मेडिकल जांच के बाद पाया गया कि बच्ची के साथ दुष्कर्म हुआ है। बच्ची से पूछने पर बताया कि लाल टोपी पहने अंकल ने उसके साथ गलत काम किया है।
देश में इस तरह दुष्कर्म होने की यह कोई पहली और आखिरी घटना नहीं है। दुष्कर्म, रेप, बलात्कार जैसी घटनाएं आये दिन देश के किसी न किसी कोने में घट रही है। बस ! इन घटनाओं को अंजाम देने वालों में फर्क होता है। सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार भारत में हर 155 मिनट में एक लड़की का बलात्कार होता है। हर तेरह घंटे में 10 साल से कम उम्र की लड़की के साथ बलात्कार होता है। साल 2015 में 10,000 से ज्यादा बच्चियों के साथ बलात्कार हुआ। सरकारी सर्वेक्षण में यह पता लगा की हर साल भारत में 24 करोड़ महिलायों की शादी 18 साल से कम उम्र में ही कर दी जाती है। सरकारी सर्वेक्षण में यह बात भी खुल कर सामने आया की सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाली 53.22 प्रतिशत महिलायों के साथ किसी-न-किसी रूप में यौन हिंसा हो चुकी है। बच्चों के साथ यौन हिंसा की 50 प्रतिशत घटनाओं में उनके जानने वाले होते हैं। यहां स्थिति ओर भी पेचीदा हो जाती है। जब रक्षक ही भक्षक बनने लगे तो सुरक्षा की पुकार किससे लगायी जायें ?
बढ़ते दुष्कर्म नैतिक अवमूल्यन की पराकाष्ठा है। पाश्चत्य संस्कृति और टेलीविजन के चल-चित्रों के माध्यम से दिखाये जाने वाले अवांछित दृश्यों का परिणाम है। क्योंकि जैसा दिखाया जायेगा वैसा ही बनने की कोशिश लोगों में जन्म लेगी। मोबाईल और इंटरनेट पर आसानी से पोर्न साइट्स का प्रचार-प्रसार असमय कामोच्छा उत्पन्न करनी का काम करती है। हवस और वहशीपन में घिरे आदमी को न उम्र दिखती और न रिश्ते-नाते की फिक्र। बस ! जिस्म का भूखा भेंडिया मासूमों को नोंचकर अपना मन भरता जाता है। जिन बच्चों को भगवान का दर्जा दिया जाता है और बच्चियों की नवरात्रि के दिनों में नवदुर्गा का अवतार समझकर पूजा की जाती है उन मासूमों के साथ ऐसा आखिर कोई कैसे कर सकता है ? क्या ऐसे अपराधियों को इंसानी दुनिया में आजाद घूमने का अधिकार है ? क्या ऐसे पापियों को खत्म नहीं करना होगा ? लेकिन हमारे देश का कानून ऐसे गुनाहगारों को सजा देने में यहां तो बहुत देर कर देता है, यहां अभी दंड देने में असक्षम है।
विश्व के दूसरे कई मुल्कों में ऐसी जघन्य और शर्मनाक हरकतों के लिए तुरंत मृत्युदंड की सजा का प्रावधान है। यहां तक कई देशों में दुष्कर्मी के जननांग को काटने का नियम है। इन देशों में प्रायः यह देखा गया कि सख्त सजा के बाद अपराधों पर शिकंजा कसा गया है और अपराधों में भारी कमी आयी है। भारत जैसे सभ्य और शालीन देश के पास आज अपनी गरिमा और मार्यादा को जीवित रखने के लिए दो ही उपाय है। यहां तो नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाकर पुनः पर-स्त्रिगमन व व्याभिचार पाप है और एक ही साथी के प्रति वैवाहिक जीवन भोग बताया जायें। यहां फिर सख्त नियम बनाकर दरिंदों को तुरंत सजा देकर भय कायम किया जायें।

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