क़लम उठ जाती है

नटवर विद्यार्थी
नटवर विद्यार्थी
मधुमक्खी शहद बनाती ,
पर कभी लड़ जाती है ।
छोटों से मसखरी कभी ,
महँगी पड़ जाती है ।

बाबाओं का देश है ये ,
भक्ति भी अंधी है ।
पर्दा जब उठता है तब,
आँखें झुक जाती है ।

बहुत बड़ा है घर उनका ,
पर दिल छोटा सा है ।
लक्ष्मी भी उनके द्वारे ,
आकर पछताती है ।

वादों की बरसात हुई ,
बरसी इक बूँद नहीं ।
जनता तो हर बार यहाँ,
प्यासी रह जाती है ।

बजट पास होता आया ,
पैसा भी उठता है ।
अफ़सर और दलालों की,
जेबें भर जाती है ।

मंदिर और शिवालय तो ,
मिलजुलकर रहते हैं ।
चंद सिरफिरों के कारण,
दूरी बढ़ जाती है ।
– नटवर पारीक, डीडवाना
9414548148

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