आम आदमी अपनी गाढ़ी कमाई के रुपए बचाने की चिंता में है

डॉ. मोहनलाल गुप्ता
डॉ. मोहनलाल गुप्ता
जब से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी है, तब से आम भारतीय अपनी गाढ़ी कमाई के रुपयों को बचाने की चिंता में डूबा हुआ है तथा नित नई आशाओं और दुराशाओं के झूले में हिचकोले खा रहा है। एक जमाना था जब पांच साल में इंदिरा विकास पत्र की और साढ़े पांच साल में किसान विकास पत्र की रकम दोगुनी हो जाती थी। आयकर बचाने के लिए खरीदे जाने वाले नेशनल सेविंग्स बॉण्ड भी छः साल में दोगुने होते थे तथा आयकर में छूट का लाभ मिलता था। उस समय पोस्ट ऑफिस के विभिन्न बचत पत्रों पर लगभग 18 प्रतिशत वार्षिक के आस-पास ब्याज दर बैठती थी।
उस समय स्थिति यह थी कि सेवानिवृत्त कर्मचारी छः सालों के लिए एम आई एस में रुपए जमा करवाते थे जिस पर उन्हें हर माह 14 प्रतिशत ब्याज मिलता था। जमा राशि पर सरकार प्रोत्साहन के रूप में चांदी के सिक्के दिया करती थी तथा ईनामी योजना के कूपन भी देती थी जिसमें बहुत से लोगों को घर, कार, स्कूटी और टीवी जैसे बड़े पुरस्कार मिलते थे। जमा कराई जाने वाली राशि पर पोस्ट ऑफिस के बाहर खड़े हुए एजेंट, निवेशकर्ताओं को 1-2 प्रतिशत नगद कमीशन देते थे। जब मूल राशि छः साल बाद निवेशकर्ता को लौटाई जाती थी तो उस पर सरकार द्वारा 10 प्रतिशत अतिरिक्त कमीशन भी दिया जाता था। पीपीएफ में 12 से 14 प्रतिशत तक ब्याज मिलता था। मूल निवेश पर आयकर की छूट मिलती थी तथा अर्जित ब्याज की राशि भी आयकर से मुक्त होती थी। बैंक की एफडीआर तथा आर डी खातों पर 13 से 14 प्रतिशत तक ब्याज मिलता था।
जब नरेन्द्र मोदी की सरकार बनी तब आम भारतीय स्थाई बैंक जमाओं पर 9 से 9.50 प्रतिशत ब्याज प्राप्त करता था किंतु आज यह ब्याज दर गिरकर 6 से 6.50 प्रतिशत रह गई है। देश में करोड़ों सेवानिवृत्त कर्मचारी, एकल महिलाएं, दिव्यांग, बीमार, बूढ़े और अशक्त लोग अपनी पुरानी बचत पर ब्याज के माध्यम से ही रोटी का जुगाड़ करते हैं। उनका बुढ़ापा और लाचारी, ब्याज की राशि के बल पर कटते हैं किंतु अब बैंक एफडी आर तथा पोस्ट ऑफिसों की बचत पर लगभग साढ़े छः प्रतिशत की ब्याज राशि पर इन लोगों का जीना दुःश्वार होता जा रहा है।
जब नरेन्द्र मोदी की सरकार बनी तब आम भारतीय को वस्तु एवं सेवा क्रय करने पर 12 से 14 प्रतिशत के बीच कर देना पड़ता था किंतु जीएसटी ने आम आदमी की जेब काटी है, फायदा केवल सरकारी भाषणों एवं विज्ञापनों में है। टेलिफोन का बिल बढ़ गया, फोटो स्टेट की एक कॉपी एक रुपए से बढ़कर दो रुपए की हो गई। रेलवे के सामान्य टिकट से लेकर आरक्षण तक की कीमत में वृद्धि हुई है। रेलवे में आरक्षण करवाना तथा उसे निरस्त कराना, आम भारतीय के माथे पर सलवटें डाल रहा है। पहले 10 रुपए में रेल टिकट और बहुत कम शुल्क में आरक्षण रद्द हो जाता था किंतु अब स्थिति यह है कि कई बार तो टिकट रद्द करवाने पर वापसी में एक रुपया भी नहीं मिलता। प्लेटफॉर्म का टिकट 3 रुपए से बढ़कर 10 रुपए हो गया। रेल में सीटों के आरक्षण की बेशर्म बोली लगती है। जैसे-जैसे सीटें रिजर्व होती जाती हैं, वैसे-वैसे उनके आरक्षण का शुल्क बढ़ता जाता है। इसी को कहते हैं बढ़े सो पावे।
घरेलू विमान यात्री किराए में हाल ही में 17 प्रतिशत की बड़ी वृद्धि की गई है। आम आदमी के वाहन में डलने वाले पैट्रोल और डीजल की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है। वर्तमान में पैट्रोल तथा डीजल पर केन्द्र तथा राज्य सरकारें मिलकर 97.54 प्रतिशत टैक्स ले रही हैं। सब्जियों, दालों तथा किराणा के भाव फिर से मनमोहन सिंह सरकार के मंहगाई वाले दौर में पहुंच गए हैं। नोटबंदी के फायदों का तो किसी को पता नहीं किंतु यह कड़वा सच है कि हजारों लोगों को कई महीनों की बेरोजगारी झेलनी पड़ी और कुछ छोटी वाणिज्यिक और औद्योगिक इकाइयों को नोटबंदी बड़े घाव देकर गई है।
बुलेट ट्रेन के शिलान्यास के बाद से आम आदमी में घबराहट और अधिक बढ़ गई है। नरेन्द्र मोदी सरकार ने 1.20 लाख करोड़ रुपए की ऐसी महत्वाकांक्षी योजना आरम्भ की है जो कभी भी अपनी रनिंग कॉस्ट नहीं निकाल सकेगी। यदि यह बुलेट प्रतिदिन 100 फेरे लगाकर लगभग 1 लाख से अधिक यात्रियों को प्रतिदिन यात्रा करवाए तो ही इसकी रनिंग कॉस्ट निकल सकती है। जनता को लगता है कि सरकार इस बुलेट का खर्चा पूरा करने के लिए किसी न किसी नए रास्ते से जनता की जेब में हाथ डालेगी।
भारत सरकार की ऐसी और भी नीतियां हैं जिन पर देश की भारी राशि व्यय हो रही है और जनता के माथे पर चिंता की सलवटें बढ़ती जा रही हैं। सरकार ने यदि अपनी आर्थिक नीतियों पर फिर से विचार करके इसे आम आदमी के अनुरूप नहीं बनाया तो एक अच्छी सरकार जो जनता के भारी जोश एवं मत के साथ बनी है, जनता को निराश कर बैठेगी तथा किसी के हाथ कुछ नहीं लगेगा।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता
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