दुखवा मैं कासे कहूं मोरी सजनी

शिव शंकर गोयल
शिव शंकर गोयल
कहते है कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते है. मैं बचपन में लपट्या पंडितजी की पाठशाला में पढता था. हर शनिवार को, खाने की छुट्टी के बाद, नियमित पढाई छोडकर, पंडितजी कभी कोई कहानी सुनाते कभी कुछ सवाल पूछते और सही जवाब देने वालें को जल्दी छुट्टी दे देते थे.
एक बार की बात है, उन्होंने हम लोगों से पूछा कि एक आंख से दस फुट दिखता है तो दो आंखों से कितना दिखेगा ? बाकी बच्चों के साथ मैंने भी हाथ खडा किया तो उन्होंने मुझें बताने का ईशारा किया. मैंने उठकर कहा मास्साब ! एक आंख से दस फुट तो दो आंखों से बीस फुट दिखेगा. इस पर पंडितजी ने मुझें मेरा बस्ता थमा दिया. मैं, जैसे क्रिकेट में कैच लपकते है वैसे, बस्ता लपक कर घर की तरफ भागा. दूसरें रोज साथियों ने बताया कि कुछ देर बाद पंडितजी को कुछ ध्यान आया तो उन्होंने मुझें आवाज लगाई थी लेकिन मैं कहां सुननेवाला था ? घर आकर ही दम लिया.
एक बार पंडितजी ने हमें प्यासे कव्वें की कहानी सुनाई कि कैसे वह भरी दोपहरी में प्यास के मारे पानी ढूंढता फिर रहा था. एक छत पर उसे एक मटकें में पानी नजर आया जोकि उसकी चोंच से दूर था. उसने युक्ति लगाई, कंकर-पत्थर लाकर उसमें डालें और जब पानी ऊपर आगया तो पीकर उड गया. कहानी खत्म कर पंडितजी ने पूछा कि बच्चों ! इस कहानी से तुम्हें क्या शिक्षा मिलती है ? तो मैंने कहा कि खाओ, पीओ और खिसको. इस पर बच्चें ही नही मास्साब भी हंसने लगे. ऐसी कुछ घटनाओं के बाद लोग मुझें हंसी में लेने लगे.
युवावस्था में, सत्तर के दशक में, एक बार हास्य-व्यंग्य की मशहूर हिन्दी-इंगलिश पत्रिका शंकर्स वीकली के क्रय-विक्रय से जुडना हुआ. उन दिनों पत्रिका का अंक लेकर जहां भी जाते, देखते ही, लोग मुस्कराने लगते. कभी किसी ने गम्भीरता से नही लिया.
नौकरी से फुरसत के बाद, किसी के कहने पर, एक बार एक हास्य-क्लब से जुड गया. सुबह की सैर एवं प्राणायाम वगैरह के साथ 2 तरह 2 से हंसते थे. नतीजा यह हुआ कि इस क्लब के सदस्यों को लोग देखते ही हंसने लगते थे. एक बार एक सभा में मुझसे पूछा गया, अब आपका क्या करने का ईरादा है ? मैंने कहा, कुछ साहित्य की सेवा करना चाहता हूं, कुछ समाज सेवा. तो सामने बैठे श्रोताओं में से एक ने उठ कर कहा कि, आप लिखना बंद करदे तो साहित्य की सेवा होजायेगी और लोगों को सुनाना बंद करदे तो समाज की सेवा होजायेगी.
कुछ दिनों बाद किसी के बहकावे में आकर, जिन्दगी से जुडी हास्य-व्यंग्य की घटनाओं को लेकर, अपने पैसों से, एक किताब छपवाई. नाम रखा, “पढो और हंसो”. जब एक मित्र को भेंट स्वरूप दी तो वह शीर्षक पढकर ही हंसने लगा. मैंने पूछा तो बोला, लिखा है कि पढो और हंसो तो मैं पहले से ही हंस रहा हूं ताकि पढना नही पढें. इस घटना के बाद मैंने किताब का शीर्षक बदल दिया.
एक बार एक समूह के साथ सचिवालय में लिफ्ट में जाना हुआ. सभी उत्साह में थे इसलिए एक बार में ही लिफ्ट में घुस गए. लिफ्ट ने चलने से इंकार कर दिया तो लिफ्टमेन बोला कि ऑवरलोड है किसीको बाहर जाना होगा. इस पर मैं बाहर जाने लगा तो लिफ्टमेन बोला अंकल ! आप रहने दो, आप यहां रहो या बाहर जाओ कोई फर्क नही पडेगा. मैं चुप होगया.
नौकरी लगने के बाद शादी के प्रस्ताव आने लगे. एक जगह बात बनी. थोडे दिनों में ही सालियों ने लिखा कि जीजाजी आपकी फोटों भिजवाइयें. मैं हुलसा 2 जाकर सडक किनारे के कैलाश फोटो स्टूडियो से फोटों खिंचवाकर लाया और ससुराल भिजवाई. कुछ रोज बाद ही सालियों का जवाब आगया कि जीजाजी आप बडे वो है, आपसे फोटो मांगी थी आपने अपना एक्सरे भिजवा दिया.
एक बार की बात है मेरे पडौसी मास्टर साहब को उनके ही दामाद ने घर पर आकर पीट दिया. मैंने बीच-बचाव की कोशिश की. इतने में किसी ने पुलीस को खबर कर दी. नतीजा यह हुआ कि पुलीस उनके साथ 2, मुझें भी थाने लेगई. वहां थानेदार साहब ने मुझसे पूछा कि तुम कौन हो ? तो मैंने डरते 2 कहा कि सरजी ! मैं कवि हूं, कविताएं करता हूं तो उन्होंने वहां बैठे मुंशीजी को डांटा कि इनको यहां क्यों लाएं हो ? कवि कभी कोई संगीन अपराध नही कर सकता. नतीजा यह हुआ कि मुझें थाने से भगा दिया गया.
दिल्ली में ही रहते हुए एक बार साढू साहब के घर मिलने जाना हुआ. सुबह का वक्त था. उन्होंने चाय-नाश्ते के लिए आग्रह किया.मेरी इच्छा तो थी लेकिन कहा कि नाश्ता करके आया हूं. फिर भी उन्होंने जबरदस्ती दूध-नाश्ता दिया. घर आकर मैंने वाईफ से कहा कि मना करने के बावजूद जबरदस्ती दूध पिलाया तो वह बोली कि आजतो नागपंचमी है.
युवावस्था में मैंने कई बार ब्लड बैंक जाकर खून दिया है लेकिन जब सम्मान का अवसर आया तो रोटेरी क्लब और लॉयन्स क्लब ने मेरी वाईफ का सम्मान समारोह किया. पूछा तो सैक्रेट्री साहब बोले कि इन्होंने नही पीया है तभी तो आप दे पाये है.
एक बार मेरी पत्नि अपनी सहेली से कुछ बात कर रही थी. आपको तो पता ही है कि मुझें ऐसी बातें सुनने का बहुत शौक है. सहेली मेरी वाईफ से पूछ रही थी कि आपके इनको कितनी तनख्वाह मिलती है तो मेरी वाईफ ने जवाब दिया कि इनको थोडे ही मिलती है, मिलती तो मुझें है. यह तो सिर्फ लाते है.
एक बार मैं गरीबी हटाओ का नारा लगाने वालों के साथ लग गया. खूब जोर 2 से नारें लगाये और सालों लगाये लेकिन गरीबी नही हटी. उसी दौरान किसी के सुझाने पर नगर परिषद, पीडब्लूडी आदि महकमों के चक्कर लगाए कि मेन्यूलियली नही तो कम से कम क्रेन वगैरह से ही सही कोई तो गरीबी हटादे लेकिन कोई सफलता नही मिली.
फिर दूसरें लोग आगए. इन्होंने कहा सबका साथ, सबका विकास. चुनाव प्रचार के दौरान कहा गया कि अब अच्छे दिन आने वाले है. सबके खातों में 15-15 लाख रू. आजायेंगे, हर साल एक करोड लोगों को नौकरी मिल जायेगी. कोई किसान आत्महत्या नही करेगा यानि रामराज्य आजायेगा. कोई शंका करता तो कहते आपने हमें क्या समझा है ? हमारा 56 इंच का सीना है. शुरू शुरू में मैं भी लोगों से यही कहता फिरता था. अब लोग मिलते है तो देखकर मुस्कराते है. कोई सीरियसली नही लेता.
शिव शंकर गोयल

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