साथ देखे थे कभी ख़्वाब सुहाने कितने

सुरेन्द्र चतुर्वेदी
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
साथ देखे थे कभी ख़्वाब सुहाने कितने,
और बाक़ी हैं अभी ख़्वाब न जाने कितने.

उसको मालूम था रुख्सत की घड़ी है फिर भी, (रुखसत = जुदाई)
मुझसे करता रहा मिलने के बहाने कितने.

प्यार से पाला हुआ उड़ जो गया है पंछी,
उससे रिश्ते थे मेरे यूँ तो पुराने कितने.

एक लम्हा न कटा उसके बिना लम्हे सा,
कौन जाने कि अभी दिन है बिताने कितने.

तेरी चाहत को समझते थे ख़ुदा की नेमत, (नेमत = वरदान)
सच तो ये है कि रहे हम ही दीवाने कितने.

तू अगर छोड़ गया उनकी तरह ही मुझको,
वो ही लिखेंगे ज़रा सोच फ़साने कितने.

तुझे भी कर ही दिया मेरी मुखालिफ़ में खड़ा, (मुखालिफ़ = विरोध)
लूट लोगों ने लिए मेरे ख़जाने कितने.
सुरेन्द्र चतुर्वेदी

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