अतीत से ज्यादा वर्तमान पर लड़ना हितकर

देवेन्द्रराज सुथार
देवेन्द्रराज सुथार
संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती पर आमजन का आक्रोश दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है। गुजरात से गुवाहाटी और कश्मीर से कन्याकुमारी तक फिल्म को लेकर चर्चा का बाजार गरम है। यहां तक की राजपूत जाति समुदाय ने तो फिल्म को पूरा देखने से पहले ही इसके बैन की मांग कर दी है। विरोध का स्वर इतना बुलंद है कि राजपूत महिलाएं तक हाथ में नंगी तलवारे लेकर खुलेआम धमकियां देने से कोई गुरेज नहीं कर रही है। आखिर कोई चुप बैठे भी कैसे ? जब प्रश्न इतिहास और संस्कृति को लेकर है। ऐसे में फिल्म पद्मावती के रिलीज होने की तारीख टल गयी है, लेकिन खतरा नहीं।

हालांकी इस बात में भी कोई संशय नहीं है कि प्राचीन भारत के इतिहास का कोई ठौर ठिकाना नहीं है। इसको लेकर यह भी नहीं कहा जा सकता कि हमारे पूर्वजों ने कभी अपने इतिहास को सहेजने का प्रयत्न ही नहीं किया। बेशक, प्राचीनकाल में शासन की गतिविधियों का उल्लेख करने के लिए राज कर्मचारी और दरबारी कवि हुआ करते थे। और उन्होंने उस समय की महत्वपूर्ण घटनाओं का अपनी कृतियों में जिक्र भी किया होंगा। लेकिन विदेशी शासन की क्रूरता ने भारत के समूचे ऐतिहासिक एवं साहित्यिक ग्रंथों को एक षड्यंत्र के तहत जलाकर नष्ट कर दिया।

यदि आज वे सारे स्त्रोत हमारे पास मौजूद होते, तो यकीकन हम उपलब्धियों और अविष्कारों के साथ हर मामले में दुनिया के कई देशों से आगे होते। आज भी हमें भारतीय इतिहास को जानने के लिए विदेशी यात्रियों के ग्रंथों एवं स्त्रोतों का सहारा लेना पडता है। अब सोचनीय बात यह भी है कि विदेशी यात्रियों ने क्या प्राचीन भारत की वास्तविक तस्वीर को अपनी कृतियों में जस का तस उकेरा है ? हालांकि, हमारे पास इतिहास बोध करने का एकमेव यही सहारा है, तो इस पर आंखे मूंदकर यकीन करने के सिवा कोई दूसरा उपाय भी नहीं है। यहीं कारण है कि प्रत्येक इतिहासकार अपनी रचनाओं में ऐतिहासिक प्रसंगों का अलग-अलग तरीके से वर्णन करता है। पद्मिनी को लेकर भी कुछ लोगों के लिए मलिक मोहम्मद जायसी की कल्पना मात्र है, तो कुछ लोगों का मानना है कि वह हकीकत में थी। कुछेक के लिए उसका चेहरा दर्पण में दिखाया गया, तो कुछेक का मत है कि उस समय दर्पण का अविष्कार भी नहीं हुआ था। यह इतिहास का एक ऐसा बिंदु है जिस पर हर किसी का भटकना तय है। विश्वास किस पर किया जाये और क्यों किया जायें ? जब तक इसकी पुष्टि नहीें हो जाती तब तक किसी मुद्दे पर खूनी जंग लड़ना उचित नहीं कहा जा सकता।

सवाल तो यह भी है कि फिल्म पद्मावती को लेकर इतना हल्ला क्यों ? क्या फिल्म को चुनावी मुद्दे की शक्ल देने की कोशिश नहीं हो रही है ? क्या नेताओं का धर्म के नाम पर लड़वाने से मन नहीं भरा तो वे इतिहास के नाम पर लड़वा रहे है ? सच्चाई यह है कि भारत के लोग जितने वर्तमान को लेकर सक्रिय नहीं है, उतने इतिहास को लेकर अपनी अति सक्रियता दिखाते है। भंसाली की फिल्म पद्मावती का महज ट्रेलर देखकर अंधविश्वास में ही सड़कों पर उतर आना, भारत बंद कर देने की घोषणा करने की धमकियां देना, भंसाली को थप्पड मार देना, आखिर विरोध जताने का ये कौनसा तरीका है ? मीडियों के सामने दीपिका पादुकोण की नाक काटने को लेकर करोड़ों का इनाम देने की बात कहना क्या बताता है ?

दरअसल, फिल्म में इतिहास का विवादित प्रसंग आया और जिसके गलत पक्ष को रखने की भनक मात्र से लोग आग बबूला हो गये। उन्होंने कभी वर्तमान को लेकर भी इतनी गंभीरता दिखाई होती। आज फिल्मों के नाम पर हो रही नारी अंगों की नुमाइशों को लेकर भी किसी ने आवाज उठायी होती ? भारत में पोर्न फिल्में देखने का रिकॉर्ड है ? कभी उनके प्रचार को रोकने के लिए भी जनमत जगा होता। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अतीत जो बीत चुका है जिस पर लडकर हम वर्तमान की राह नहीं सुझा सकते है। बल्कि वर्तमान की मुसीबतें वर्तमान पर लड़कर ही हल हो सकती है। ओर इन फिल्मों से हमारे देश की वर्तमान पीढी कितनी भ्रमित हो रही है ? यह किसे से छिपा नहीं है।

– देवेंद्रराज सुथार
संपर्क – गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। 343025
मो – 8107177196

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