कलेक्टरेट में एडीशनल चूहा

शिव शंकर गोयल
शिव शंकर गोयल
….परन्तु वह तो मेरे से जूनीयर है. उसके यहां मेरे चेम्बर से एक चूहा ज्यादा कैसे ?
कलक्टर साहब को रह रहकर यही बात कचोट रही थी. वह अपने कक्ष में बैठे बैठे सोच में डूबे हुए थे कि कही चूहों को पकडने या गणना करने वालों से कोई गलती तो नही होगई ? वैसे प्रसिध्द व्यंग्य लेखक हरिशंकर परसाई ने तो एक जगह लिखा है कि सरकारी चूहें आसानी से पकड में नही आते है क्योंकि चूहेदानी में घुसने के छेद से बडा छेद तो उनके बाहर निकलने का होता है.

किस्सा यों है कि जैसे कभी ‘बिग बी’ ने उत्तर प्रदेश को ‘उत्तम प्रदेश’ घोषित कर दिया था ठीक उसी तर्ज पर अब मीडिया के एक हिस्से ने ‘मामाजी’ के मध्यप्रदेश को ‘खुशहाल प्रदेश’ बना दिया है. इस काम के लिए वहां अलग से एक ‘हैपीनेस डिपार्टमेंट’ भी बनाया गया है. वहां एक प्रमुख शहर में किसी कारण से जब चूहों की गिनती हो रही थी उसी दौरान एडीशनल कलक्टर के कमरे में कलक्टर साहब के कक्ष से एक चूहा ज्यादा पाया गया.
कलक्टर साहब ने जब यह सुना तो उन्हें यह नागवार गुजरा. ऐसा कैसे हो सकता है ? मेरे कमरे में दो चूहें और मेरे जूनियर के कमरे में तीन ! बडे साहब इसी सोच में अपने चेम्बर में बैठे हुए थे तो उनके पीए को भी चिन्ता होनी ही थी. उसने सा’ब के पास आकर कहा, बडा हुकम ! अगर उनके यहां हमारे यहां से एक एडीशनल चूहा पाया गया है तो इसमें अचरज की कोई बात नही है. वह सा’ब तो वैसे भी “एडीशनल” कहलाते है.
इधर बाहर आकर पी.ए ने, चाय पर चर्चा करते हुए, चटखारें ले लेकर संगी साथियों को यह बात बताई. इस बात से उत्साहित होकर उनके साथ चाय पीते हुए कोर्ट के पेशकार ने भी अपने यहां घटित एक घटना सुनादी. उसने बताया “एक बार सिविल लाईन्स इलाकें में पालतू कुत्तों को लेकर दो पडौसी अफसरों में झगडा होगया. एक अफसर के यहां दो कुत्तें थे. जिसमें एक का नाम उन्होंने डॉलर और दूसरें का नाम पौंड रखा हुआ था. दोनों रात-दिन भौंकते रहते थे. उनके साहब ने उन्हें तरह तरह से समझा-बुझाकर देख लिया. मसलन एक दिन में भौंकले तो दूसरा रात की पारी करले या पहला पूरब की तरफ मुंह करके भौंकले, दूजा पश्चिम दिशा पकड ले. लेकिन वफादारी के बावजूद इस समझाईश का उन पर कोई असर उन पर नही हुआ.
जब खुद मालिक की यह हालत तो पडौस में रहने वाले अफसर को तो शिकायत होती ही. वह भी कोई कम नही थे. ओहदे में भले ही कम हो लेकिन कमाई में चार कदम आगे ही थे हालांकि उनका तकिया कलाम था ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’ परन्तु खुलासा नही करते थे कि किस संदर्भ में कह रहे है. खैर, तंग आकर पडौस के साहब से शिकायत की कि आपके कुत्तें बहुत परेशान करते है. लेकिन उसका कोई असर नही हुआ. आखिर हार-थक कर उन्होंने कोर्ट में शांति भंग करने के आरोप में मुकदमा दायर कर दिया.
संयोग की बात उनका केस एडीशनल जज के कोर्ट में लग गया. सुनवाई के रोज जब दोनों पक्ष उनके सामने हाजिर हुए तो उन्होंने वादी से पूछा बताइये क्या प्रॉबलम है ?
वादी ने कहा सर ! इनके कुत्तें रात-दिन भौंकते रहते है. हमारा रहना मुश्किल किया हुआ है. इस पर जज साहब ने प्रतिवादी की तरफ देखा गोया पूछ रहे हो कि आपको सफाई में क्या कहना है ? वह बोले सर ! कुत्तें रखने से तो आदमी की शान बढती है. प्रसिध्द अमेरिकन व्यंग्य लेखक मार्ट ट्वेन ने तो यहा तक कहा है कि आस-पडौस में धाक जमाने और अपना स्टैन्डर्ड ऊंचा दिखाने के लिए कुत्ता पालना लाजिमी है, फिर, वादी की तरफ ईशारा करते हुए,कहा,एक कुत्ता तो इन्होंने भी पाला हुआ है.
इस बात पर वादी ने जज की तरफ मुंह घुमाकर कहा कि सर ! इनके यहां तो एक एडीशनल है. सारी परेशानी एडीशनल से है. यह सुनकर कोर्ट में मौजूद सभी लोग अपनी 2 नजरें बचाकर मुस्कराने लगे और उधर एडीशनल जज साहब को काटो तो खून नही. वह बहुत देर तक कभी छत की तरफ तो कभी फाईलों को घूर 2 कर देखते रहे.
खैर, जानकारों का कहना है कि चूहों की गणना में अपने कलक्टर साहब की चिन्ता फिजूल है. उनके मातहत एडीशनल कलक्टर साहब के यहां जो एक चूहा अधिक पाया गया है वह तो एडीशनल है. चूहा गणेशजी का वाहन है. प्रसिध्द लेखक स्पेंसर जॉनसन ने अपनी किताब “हू मूव्ड माय चीज” में भी चूहों के माध्यम से बताया गया है कि इंसान को जिन्दगी में किसी भी परिवर्तन को सकारात्मक तरीकें से स्वीकार करना चाहिए. और फिर जिस प्रदेश में जहां नर्मदा मैया और खुशहाली डिपार्टमेंट की कृपा से आनन्द ही आनन्द है वहां भला इतना सोचने की क्या जरूरत है ?

शिव शंकर गोयल

error: Content is protected !!