राजनीति बदचलनी का बिस्तर हो गई,
नेता तमाम बुराइयों के दलाल हो गए,
मीडिया सत्ता का गुलाम हो गया,
उद्योगपति लुटेरे हो गए,
अफसर मौकापरस्त हो गए,
पुलिस अपराधियों की हितैषी हो गई,
डाक्टर मरीज़ों के शिकारी हो गए,
इंजीनियर भ्रष्टाचार के पुजारी हो गए,
अदालतें फैसलों के कारण विवाद का कारण हो गई,
और आम आदमी
इन सबके कारण बेबस, बेचारा, बदहाल हो गया।ः
क्या यही लोकतंत्र है?