ट्रेन का जिन्दगी रुपी “ सफर ”

कल्पित हरित
कल्पित हरित
ट्रेंन की जनरल बोगी में अगर आपने सफ़र किया हो तो वास्तव में आज आप इस लेख का मर्म महसूस कर पायेंगे| जीवन के सफ़र और ट्रेन की जनरल बोगी के सफ़र में कितनी समान्ताए है |
ट्रेन के सफ़र की शुरुआत वहां से होती है जब आप स्टेशन पर खड़े आप ट्रेन का इंतज़ार कर रहे होते है | और जीवन के सफ़र की शुरुआत वहां से होती है जब आप गर्भ से बहार आने का इंतज़ार कर रहे होते है | ट्रेन का समय होने पर जैसे ही ट्रेन स्टेशन पर आती है सबसे पहले शुरू होता है उसमे चढ़ने का संघर्ष ठीक उसी तरह जिस तरह गर्भ से बहार आने के लिए शिशु को संघर्ष करना पढता है |
एक बार सफलता पूर्वक डिब्बे में चढ़ने के पशचात आप अकेले सबसे अनजान और ट्रेन चलना स्टार्ट कर देती है | जिस तरह जन्म के बाद जीवन चक्र स्टार्ट हो जाता है | अब आप आस पास खड़े लोगो से बातचीत करना प्रारंभ करते है | कहाँ से हो, कहाँ जाओगे , नाम आदि और फिर कुछ सामान्य चर्चाए (मुख्यत राजनीति पर ) और एक आधा घंटा इसी में बीत जाता है | ये ठीक वैसा ही है जैसे पैदा होने के पशचात रिश्तेदार , पहचानवाले , आपसे जुड़ते चले जाते है और जीवन का थोडा समय बाल्यकाल बड़ी आसानी से गुजर जाता है |
तत्पशचात आप महसूस करते है कि सफ़र काफी लम्बा है | और सीट की आवश्यकता होगी ही वरना सफर कठिन हो जाएगा और आप सीट तलाश करने लगते है ये वह दौर है जब आप बाल्यकाल की समाप्ति पशचात भविष्य की योजनाए बनाने लगते है और संघर्षरत हो जाते है |
जैसा कि आप ट्रेन में देखते है कि कई लोग ऐसे है जिन्हें बड़ी जल्दी सीट मिल जाती है , कइयो को काफी संघर्ष के बाद मिलती है | कई लोगो को अधिक सामान के कारण या फिर अपने साथ परिवार गणों के कारण वे स्वतंत्र रूप से सीट नहीं ढूंढ पाते कहने का मतलब ये है कि वे पहले परिवार के लोगो को बिठा दे और फिर खुद के लिए ऐसी सीट मिल जाये जंहा से सामान की निगरानी व परिवार का भी ध्यान रखे |
बिल्कुल यही स्थितिया आपको जीवन में भी अपने आस पास देखने को मिलती है किसी को आसानी से लक्ष्य प्राप्त हो जाता है कइयो को काफी संघर्ष और समय के बाद प्राप्त होता है कइयो के साथ परिस्थितिया विपरीत होती है और उन्हें अपनी स्तिथि के अनुसार अपनी इच्छाओ को दरकिनार करके ऐसा रास्ता या(सीट) खोजनी पड़ती है जहां से पारिवारिक और अन्य सभी परिस्थितियों के मध्य संतुलन बनाया जा सके |
जिस प्रकार अगर व्यक्ति चाहता तो आसानी से ऊपर वाली सीट पर चढ़ कर बैठ सकता था पर सामान का ध्यान रखने व अपने परिवार को बैठाने आदि के चक्कर में कोई ऐसी सीट ढूंढ़ता है जंहा से परिवार और सामान दोनों का ध्यान रखा जा सके उसी प्रकार कई बार अपनी क्षमताओ को दरकिनार करके भी मजबूरियों में परिस्थितिवश व्यक्ति को जीवन में अपनी इच्छाओ का त्याग करना पढता है |
बहराल जो भी हो अंत में सभी कंही न कंही Adjust हो ही जाते है | किसी को कम सीट मिलती है तो किसी को ज्यादा जैसे कि किसी को धन दौलत खूब मिलती है और किसी को मितव्यता से गुजारा करना पड़ता है |
ऐसा भी होता है कि सीट भले थोड़ी कम मिली हो पर आसपास के लोग अच्छे हो तो बात – चीत करते हुए सफ़र में मजा आता है वंही उसके विपरीत पूरी सीट मिलने के बावजूद भी यदि आस पड़ोस में बैठे व्यक्ति अपने आप में ही मस्त है और आप से कोई बातचीत नहीं हो रही तो भी सफ़र बोरियत भरा रहता है | ठीक वैसी ही स्थिति है ये जैसे काफी सुविधाए होने के बावजूद जीवन में दोस्त ,प्यार आदि की कमी के कारण सुख नहीं मिल पाता और जीवन में खालीपन रहता है |
अब अगर आप देखंगे तो पायेंगे की ट्रेन मे चढ़ते ही आप जिन लोगो से मिले थे और शरुआती एक आधा घंटा बिताया था वो सभ सीट ढूंढने की जुगत में आगे पीछे अलग अलग हो गए जिस प्रकार जीवन की आपाधापी और संघर्ष में बचपन के मित्र यार छुट जाते है |
धीरे धीरे गाडी रफ़्तार पकड़ने लगती है कभी ब्रेक लगते है तो कभी झटके आते है कभी रफ़्तार धीमी हो जाती है जैसे जीवन में अच्छा बुरा समय आता रहता है कभी परेशानिया(झटके) भी आती है पर जीवन की गाडी निरंतर चलती रहती है |
अब ट्रेन अलग अलग स्टेशन पर रुकने लगती है तो कुछ लोग उतारते है और कुछ चढ़ते है आप पाते है की उतरने वालो में कई लोग वही है जो आपके साथ ही चढ़े थे पर उनका अंतिम स्टेशन आप से पहले आ गया और उनका सफ़र पूर्ण हो गया जिस तरह हमारे कई साथी ,पहचान वाले हमें इस जीवन में छोड़कर चले जाते है |
धीरे-धीरे आप भी अपने अंतिम स्टेशन की और बढ़ने लगते है और अंतिम स्टेशन पर जो आपको लेने आये होते है वो बहार खड़े होते है और ट्रेन से उतारते ही आपको अपने साथ लिए जाते है इसी प्रकार जीवन में आपका जब अंतिम स्टेशन “मृत्यु जंक्शन” आता है तो यमदूत आपके लिए वंहा खड़े होते है तथा आपको अपने साथ ले जाते है |
और आपके ट्रेन से उत्तर जाने के बाद भी ट्रेन आगे चली जाती है तथा उसी रफ़्तार से दौडती रहती है | ठीक वैसे ही जैसे आपके संसार से चले जाने के बाद भी संसार वैसे ही चलता रहता है|
“बस आपका सफ़र यंही ख़त्म हो जाता है |”

कल्पित हरित

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