एक पिता की अभिलाषा

बेटा मैं चाहता हूँ कि तू न मेरे जैसा न माँ जैसा न दादा दादी जैसा या किसी और जैसा बने, मैं चाहता हूँ कि तू “तूझ जैसा बने” तेरा स्वभाव ऐसा हो कि तू सब के दिल में रहे, तेरे सरल स्वभाव से तू सबका मन जीत ले। तेरा मन माँ नर्मदा के जल जैसा निर्मल हो तेरे दिल में स्नेह ही हो, घृणा, द्वेष ईर्ष्या से तू कोसों दूर रहे । तेरी सादगी में ही तेरी खूबसूरती रहे, तू खुद खूश रहे और सबको अपार खुशियाँ दे, भेद- भाव से दूर रहे, बाहरी आडम्बरों से तू दूर रहे । मैं जनता हूँ कि दुनिया बहुत कपटी है, लालच व लोभ से भरी है, ऐसे व्यक्तित्व को दुनिया सामना करने में बहुत दिक्कत होती है लेकिन तेरे शांत, निर्मल और सूझ-बूझ वाले स्वभाव से तू इस कपटी दुनिया का सरलता से सामना कर पायेगा ।तेरी जिंदगी में कभी बुरा वक्त आये तो उसे भी हँस के टाल दे, संघर्ष जिंदगी का दूसरा नाम है। तेरा व्यक्तित्व ऐसा हो जिसमें तू लोगों के दिल में रहे, कोई तुझे भूल के भी भुला ना पाये, तू कितनी भी उँचाईयों पर चले जाए कभी उन सब को नहीं भूलना जिन्होंने तेरा उस समय साथ दिया हो जब तू कभी मुसीबत में रह हो।अपने छोटे से छोटे कर्ज को भी अदा करना। अपने पूरे परिवार को साथ लेकर चलना ।अपने संबंध खुद बनाना। सभी की साफ दिल से सेवा करना भले ही वो अपने परिजन हों या कोई ऐसे कि जिनको तेरी जरूरत हो, भले तू उसे जाने या न पहचाने। सबके के लिए आदर भाव रखना भले वो तुसे उम्र या ओदे छोटा हो, बड़ों का सम्मान करना भले वो तुम्हारे घर का नौकर ही क्यों न हो। जीवन में हमेशा निष्पक्ष निर्णय लेना , खुद की सूझ-बूझ से ताकि तुझे कभी दुख न हो। मैं तेरे साथ हूँ और हमेशा साथ रहूँगा, तुझ पर गुस्सा भी करुँगा लेकिन ये समझना कि मैं हमेशा तेरे भले के लिए ही सोचूंँगा।.

अनिमेष उपाध्याय

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