एक कर्मयोगी युवा की कहानी

नौगॉव जो कि बुन्देलखण्ड की राजधानी के रूप में नौगॉव गिना जाता हैएबात उस समय की है जब भारत देष को आजाद हुये 20 साल हो चुके थेंए सन् 1967 में हायर सेकेण्ड्री नोगॉव में एक अनुषासन था तथा षिक्षक व छात्र के बीच में निर्मला थी तथा षिक्षक अपने छात्र को किसी न किसी रूप में अन्धकार से बाहर निकालने केलिए अपनी ऊर्जा के साथ साथ ज्ञान विवकेए बुध्दि को एक साथ इस तरह से विकसित करते थें कि कोई भी छात्र अनपढ़ के साथ साथ उसे व्यवहारिकए नैतिक षिक्षा का ज्ञान नही होता था इसलिए षिक्षक अपने छात्र को प्रत्येक प्रकार से मकान की नींव की तरह मजबूत करते थेंए उस समय टियूषन कोई नही जानता था बच्चों को पढ़ाने का जुनून षिक्षक को थाए इसी कारण षिक्षक को गुरू की उपाधी दी जाती थीए तथा छात्र षिष्य के रूप में होते थेंए षिक्षा के स्तर को बढ़ाने केलिए भारत सरकार व राज्य सरकारें कठोर निर्णय लेकर भारत को अषिक्षा के कलंक को निकालना चाहती थी । षिक्षा के क्षेत्र में अधिक कार्य करने की आवष्यकता थी लेकिन इस ओर ध्यान नही दिया गया ।

बच्चांे को पढ़ने केलिए बहुत ही छोटा कोर्स पाठ्यक्रम था लेकिन सार्थक थाए षिक्षा में कोई राजनीति नही थी कोई जातिवाद भेदभाव नही थाए यदि क से कलष या क से कमल ग से गणेष या ग से गमला पुस्तक में लिखा होता था उसे सभी जाति व वर्ग के लोग वर्णमाला पढ़ते थेंए आगे की कक्षाओं में हिन्दी में अकवर बीरबलए पंच परमेष्वर या घनुष यज्ञए राम बनवासए राम केवट संवाद प्रकाषित होता था तो सभी पढ़ते थें इतिहास में पानीपत का युध्द ए प्रथम व व्दितीय विष्व युध्द की कहानी होती थीए देष की आजादी के बीर षहीदों की तस्बीरों के साथ उनका पूरा जीवन परिचय हुआ करता थाए गणित के सवालों के सभी सूत्र प्रत्येक छात्र.छात्र को सिखाये जाते थें तथा उन्हे बोर्ड पर खड़ा कर लिखित में जबाब देना होता थाए अंग्रेजीए संस्कृत सामान्य बिषय हुआ करते थें ए अं्रग्रेजी के ष्षव्दों को एक से पचास बार रटाया व समझाया जाता थाए भूतकालए बर्तमान व भविष्य काल के ष्षव्दों को एक बृक्ष बनाकर समझाया जाता था जिससे बच्चें पूरी तरह व्याकरण में तैयार होते थें ए संस्कृत के ष्ष्लोकों को मौखिख व लिखित में याद कराते थें ए ष्ष्लोकों में भारतीय संस्कृति संस्कारए पंच तंत्र की कहानी व ईष्वर के प्रति लगन व निष्ठा से भरे ष्ष्लोक अध्यात्मिकता से भरे होते थें जिससे प्रत्येक बच्चा मानसिक रूप से ईष्वर के प्रति श्रध्दा व विष्वास के साथ सत्य पर चलने की प्रेरणा ग्रहण करता था । देष में न कोई आरक्षण था न कोई पक्षपात थाए योग्य बच्चों का उनकी योग्यता के आधार पर ही उन्हे सम्मानित किया जाता थए उसी के अनुसार आगे अध्ययन होता था ।
यदि छात्र.छात्राओं के पास कलम दवात नही होती थी ए सूत से धागा बनाने केलिए तकली चलती थीए पेन्टिंग चित्रकला प्रत्येक छात्र को सिखाया जाता थाए प्रत्येक स्कूलों में प्रत्येक ष्षनिवार को बाल सभायें हुआ करती थी प्रत्येक स्कूल के छात्र.छात्राये संस्था के सभी बच्चों को इस बाल सभा में पहचान होती थी तथा लोकरंगए लेाकगीतए लोक संस्कृतिए अंताकछरीए गीतए संगीतए कविताओं ए मुहावरे आदि आदि का पूरा ज्ञान बच्चों में हेाता था प्रत्येक बच्चा किताबी ज्ञान के साथ साथ परिवार समाज व देष प्रेम की पूरा ज्ञान स्कूलों से ही सीख लेता था । उस समय के षिक्षक अपने अध्ययनरत बच्चों को अपनी ओर से स्लेट पैंसिलए कॉपी पुस्तके उपलव्ध करा दिया करते थें इसलिए गुरू जी का वह सम्मान होता था जो माता.पिता का नही हुआ करता था जो क्लास टीचर कक्षा अध्यापक जी कहते थें वही सत्य है । इसी बिष्वास के कारण उस समय के बच्चों में अनुषासन था तथा अपराध कम हुआ करत थें । मुझे ध्यान है कि हायर सेकेण्ड्री स्कूल नौगॉव में प्राचार्य श्री डी0पी0सिन्हा थें तथा इस षिक्षण संस्था में श्री पी0के0 सक्सेनाए श्री आनंद सिंहए श्री दवीरअलीए श्री एस0डी0 खरेए श्री हरीमोहन चोवेए श्री भान प्रताप खरेए श्री राम अवतार त्रिपाठीए श्री अवाल प्रकाष श्रीवास्तवए श्री कैलाष नारायण पाठक जैसे महान महापुरूष षिक्षक थें जो अपना जीवन छात्रो के प्रति समर्पित करते हुये उनके जीवन का उज्जवल बनाने में लगे रहते थें।
इसी संस्था में अध्ययनरत एक ऐसे छात्र की जीवन यात्रा को आज यहां बताना आवष्यक हो गया है कि कर्मयोगी व्यक्ति के साथ ईष्वर रहता है । यदि व्यक्ति अपना साधनाए अपने सद्कर्मए त्याग व परिश्रम से नियम व संयम से चलना सीख ले तो उसकेलिए हर कदम विकाष की गति देता है । नौगॉव छावनी से लगा ग्राम बीरपुरा है इस ग्राम की आवादी एक परिवार की तरह थीए । महाराजा छत्रसाल के नाम से बसा ग्राम बीरपुरा जो कि जिला छतरपुर की सीमा में आने बाला यह ग्राम उत्तर प्रदेष व मध्य प्रदेष की दोनो सीमाओं से गुजरता है । ग्राम बीरपुरा की आवादी तीन सो के लगभग थी जो एक मोहल्ले की तरह है इस ग्राम बीरपुरा में दो ब्राम्हण परिवारों के साथ साथ कुछ परिवार राजपूतों ए देा दो परिवार नाई व ढीमर के थें लेकन सर्वाधिक राय .खॅगार जाति के लोगों का बाहुल्य ग्राम है । इस ग्राम में एक कुख्यात व अपराधिक गतिविधिओं में चर्चित व्यक्ति प्यारे लाल के नाम से जाने जाते थे ए इस प्यारे लाल केलिए उत्तर प्रदेष एवं मध्य प्रदेष की पुलिस किसी समय परेषान रहा करती थी लेकिन भगवान कामता नाथ जी की कृपा के कारण प्यारे लाल को हमीरपुर जेल में एक रात्रि ऐसी प्रेरणा हुई कि उन्होने जेल में ही अपराधों से दूर रहने का संकल्प लिया और अपनी बहन तुलसा बाई से कहा कि दीदी मुझे कल श्री राम चरित्र मानस ग्रन्थ जेल में दे जाना अब मुझे अपने आप से घृणा हो चुकी है तथा अपराध व अपराधों से मुक्ति चाहता हॅू ए प्यारे लाल की बहन तुलसा बाई ने हमीरपुर के जाने माने बकील स्वामी प्रसाद लोधी से इस बात को कहा तो उन्होने बड़ी प्रषन्नता जाहिर करते हुये जेलर से कहा और उसी दिन हमीरपुर बाजार से ही तुलसीकृत श्री राम चरित मानस ग्रन्थ का अध्ययन ष्षुरू कर दियाए आप इस बात को मान की प्यारे लाल मात्र कक्षा 3 तक ही अध्ययन किया था लेकिन कक्षा तीन का उस समय का छात्र अच्छी हिन्दी व अंग्रेजी का ज्ञान रखता था । इसलिए प्यारे लाल ने सन् 1953 में जेल के अंदर से ही एक नेक इंसान बनने का संकल्प लियाए भगवान कामता नाथ जी की ऐसी कृपा हुई कि सन् 1954 तक उनके बिरूध्द हत्याए हत्या के प्रयासए डकैती आदि के संगीन अपराधों से बेदाग होकर जेल से घर आ गये । प्यारे लाल को प्रेरणा हुई कि अपने परिवार के साथ भगवान कामता नाथ चित्रकूट की परिक्रमा कर आगे जीवन जीने की प्रेरणा ईष्वरी कृपा से ष्षुरू की जावें ए प्यारे लाल के माता.पिता पूर्व में स्वर्गवासी हो चुके थें । उनके बड़े चाचा मुल्ले उनकी पत्नी बड़ी बहूए छोटे चाचा बृन्द्रावनए भाई मुन्नी लाल ए भाभी कौषिल्याए बहन तुलसा बाईए पत्नी सुमित्रा देवी को लेकर सन् 1956 मकर संक्रॉति पर चित्रकूट परिक्रमा की ईष्वरी कृपा से एक संतान हुई जिसका पंडितों ने राषि का नाम संस्कार भगवान के नाम पर कामता नाथ ही रखा गया लेकिन बड़ी बहू दादी ने इस बालक का नाम सोच समझ कर परिवार में संतोष प्राप्त होने पर संतोष दिया । उस समय के जो भी नाम हुआ करते थें भगवान या ईष्वर के नाम से मिलते जुलते रखे जाते थें क्योकि लोगों का ईष्वर पर ही पूरा भरोसा थाए भगवान भी प्रत्येक व्यक्ति की उसी समय रक्षा करता था जैसे एक मॉ अपने बालक की चिन्ता व रक्षा करती है । समय के अनुसार बालक का पालन पोषण हुआ ए परिवार की माली हालत इतनी खराब हो चुकी थी कि परिवार का संचालन कठिन हो रहा था लेकिन मेहनत व परिश्रम के साथ प्यारे लाल ने बच्चों का पालन पोषण किया साथ ही श्री राम चरित्र मानस का अध्ययन नही छोड़ा जिस कारण वह परिवार के दायित्वों के साथ साथ अध्यात्मिकता से जुड़े गयेए ईष्वरी कृपा से उनके चार पुत्र व एक पुत्री हुई । ईष्वरी कृपा के कारण उन्हे श्री राम चरित्र मानस का इतना ज्ञान हो गया कि वह एक संत बन गये जो आगे वह हरिहर बाबा जी के नाम से प्रसिध्द हुये । हरिहर बाबा ने अपने परिवार का दायित्व अपने छोटी सी उम्र के पुत्र कामता नाथ पर ही छोड़ कर श्रीमती सुमित्रा को लेकर पति.पत्नि धार्मिक स्थानो तीर्थ स्थानों पर निकल गये महिनो भारत का भ्रमण किया । मॉ.बाप की तपस्या के कारण इस परिवार में लगा अपराधिक कलंक का दाग आम लोग भूल चुके थें तथा परिवारिक एवं सामाजिक जीवन जीने केलिए कामता नाथ की कृपा से कामता नाथ जिसका ने ही अपना घर सम्भालना ष्षुरू किया । अध्ययन के साथ साथ परिवार चलाने केलिए नौगॉव नगर के व्यपारियों के यहां तीस रू0 मासिक बेतन पर नौकरी भी करना ष्षुरू कर दी थी उस समय इतना सस्ता समय था कि एक रू0 में एक समय का भोजन की व्यवस्था हो जाती थी । समय के अनुसार अध्ययन हुआ और परिवार का संचालनए र्धेय साहसए संयमए त्याग परिश्रमए श्रधाए भक्तिए के साथ साथ इस बालक ने अपनी ईमानदारी लगन व कार्य क्षमता के कारण अपनी पहचान बनाने में कोई कसर नही छोड़ी जिस कारण नगर नोगॉव के मध्य कल्याण दास चौहारा पर बने भगवान श्री गिरधर लाल मंदिर के सामने संचालित किराना दुकान श्री लक्ष्मी चन्द्र जैन मऊ.सहानिया बालो ने इस बालक को नौकरी पर रखने के साथ साथ उसे पढ़ने केलिए समय दिया और हर तरह से सहयोग किया ।
बालक कामता नाथ उर्फ संतोष ने अपने जीवन को अग्नि परीक्षा के रूप में भगवान के समक्ष समर्पित करते हुये अपने छोटे भाईयों व एक बहन का पालन पोषण किया अपनी षिक्षा के साथ साथ उनकी षिक्षा का ध्यान दिया । नगर के व्यापारियों की मदद मिली तथा कुछ इस प्रकार से मेहनत करते हुये सुबह 4 बजे से उठकर दो घंटे अध्ययन करनाए एक घंटे में नित्यक्रिया के साथ साथ भजन पूजन करते हुये ष्षहर जाते समय कुछ पेड़ों ऊॅमरए बरगदए पीपल की पत्तियॉ तोड़कर उन्हे बाजार बैचना फिर स्कूल जानाए लौटकर व्यापारियेां के यहॉ नौकरी रात्रि 8 बजे तक करना यह नित्यक्रिया में ष्षामिल हुआ । नौगॉव नगर से ग्राम बीरपुरा जाते समय रास्ता बहुत खराब हुआ करता थाए उस समय बाहन नही थेए भले ही साईकिल मात्र तीन सौ रू0 में आती थीए नगर में किसी के पास कार नही थी बुलट मोठर साईकिल तीन चार लोगों के साथ हुआ करती थी । सन् 1971 में भारत पाक युध्द की घोषणा हो जाने के कारण प्रधानमंत्री श्रीमती इन्द्रिरा गॉधी जी ने देष की ष्षान बचाते हुये भारत की बिजयी दिलाई जिसमें भारतीय सैनिकों ने बीरता हासिल की । बीरपुरा एवं धवर्रा के बीच बनी पहाड़ी में अंग्रेजो के समय की होने बाली चॉदमारी व बर्तमान आर्मी की चॉदमारी के कारण गोलियों का जो ष्षीषा मिलता था उसे सभी भाई संग्रह करते उसे गरम कर तपा कर बाजार में बैचते थें । इस प्रकार परिवार के भोजन व भजन की व्यवस्था चलती थी ।
सन् 1977 में नौगॉव आर्मी कालेज में चौकीदारी की जगह निकलने पर संतोष कुमार ने कक्षा 8 वी उत्तीर्ण होने के बाद आवेदन किया अधिकारियों ने मौखिख परीक्षा जिसमें पास होने पर नौकरी मस्टर पर मिली । एम ई एस कालेज में नौकरी करने के साथ ही विभाग के एसडीओ श्री नसीब सिंह ने लगन व मेहनत को देख कर अपने बंगले पर खाना बनाने केलिए रख लियाए वही खाना कपड़े की व्यवस्था अधिकारी करते ए दोपहर के समय आर्मी कालेज में जो स्कूल था उसी के सामने बच्चो केलिए छोटी सी दुकान का संचालन किया जिससे कुछ आय ए आर्मी कालेज का बेतन 319 रू0 डाकघर में बचत खाता में डाला तथा दुकान की आय से परिवार का संचालन किया । रहने बाला मकान गिर गया था उसका निमार्ण कराया इसी बीच नौकरी छूट जाने के कारण सन् 1979 में 18.रू0 लेकर दिल्ली मजदूरी करने रवाना हुआ । दिल्ली जाते समय बिना टिकिट होने पर टीटी साहब ने पकड़ा तो पूरी दास्तान बताने पर उन्होने मुझे दिल्ली जाने दिया हजरत निजामुदृदी से तिलक ब्रिज तक पटरी पटरी गयाए अनजान स्थान पर भी मुझे ईष्वर ने सहारा दिया और मुझे भोला खटीक नाम का एक व्यक्ति मिला जिसने अपनी झुग्गी में सहारा दिया । दिल्ली में उस समय 19 रू0 प्रतिदिन की मजदूरी मिला करती थीए लग जाने के कारण एक साल तक बिना मॉ बाप को बताये दिल्ली मे मजदूरी की तथा कुछ पैसा मनीऑडर के माध्यम से भेजा । जिससे परिवार का संचालन हुआ । सन् 1980 में एक दिन मुझे ईष्वरी प्रेरणा हुई कि अब दिल्ली छोड़ों आगे अध्ययन करों सफलता मिलेगी । मैं दिल्ली से बापिस आया और बुन्देलखण्ड कौचिंग कालेज नौगॉव में अध्ययन करने हेतू आवेदन दिया । प्राईवेट था साथ नौगॉव तहसील चौराहा पर एक चाय पान की दुकान ष्षुरू की जिसमे अच्छी आमदानी हुई ए मेरा अध्ययन हुआ तथा भाई बहन का हुआ । ईष्वरी कृपा से प्रत्येक क्षेत्र में सहयोगी मिलते गये सफलता हासिल होती गई । हायर सकेेण्ड्री करने के बाद मैने छतरपुर से प्रकाषित दैनिक राष्ट्र.भ्रमण के संपादक श्री सुरेन्द अग्रवाल से पत्रकार बनने की इच्छा बताई तो उन्होने मुझे नौगॉव का पत्रकार नियुक्त किया । छतरपुर से ही प्रकाषित साप्ताहिक ओरछा बुलेटन संपादक डा0 रज्जब खॅा से पहचान होने पर उनके समाचार पत्र में लिखना ष्षुरू किया । छतरपुर से ही प्रकाषित दैनिक कर्तव्य संपादक श्री रामानंद जौर स्वतंत्रता सग्राम सैनानी दैनिक सीक्रेट बुलेटिनए दैनिक क्रॉति कृष्णए डा0 अजय दोसाज ए सजग भारत के बाद दैनिक जागरण झॉसी ए जागरण रीवाए देनिक आलौक रीवा दैनिक बान्धवीय समाचार रीवाए नव भारतए भास्कर दैनिक देष बन्धू ए स्वदेष ग्वालियर इस प्रकार झॉसी रीवाए जबलपुरए ग्वालियरए सतनाए कानपुर के अनेक समाचार पत्रों में समाचार लिखना जारी रहा कुछ ही समय बाद छतरपुर एव टीकमगढ़ जिला मे अपनी पहचान बना चुके संतोष कुमार को किसी ने सहारा न देने के बाद भी छतरपुर जिला पत्रकार संघ में उच्च स्थान पर पहुॅचे ए श्रीष्याम किषोर अग्रवालए प्रो0 सुमित प्रकाष जैनए बिजय बहादुर बंगालीए ओम प्रकाष अग्रवालए इस्लाम खॉए रामेष्वर नगरिया जैसे बरिष्ठ पत्रकारों के साथ कार्य करने का अवसर मिला ।

राजनैतिक पहुॅच बनाने में बिधायक श्री यादवेन्द सिंह लल्लू राजाए सांसद विद्यावती चतुर्वेदीए कै0 जय पाल सिंहए बिधायक लक्ष्मन दासए का पूरा साथ मिला । सन् 1983 में छतरपुर जिला कलेकटर श्री होषियार सिंह ने कार्य कुषलता व समाजसेवा को देखकर नौगॉव तहसील में कार्य करने केलिए लेखक का लाईसेन्स देकर कहा था कि यह लाईसेन्स तुम्हे व तुम्हारे परिवार को विकाष से जोड़ेगा । हिन्दी टाईपिंग परीक्षा पास होने के कारण विकाष जुड़ता गया । नौगॉव न्यायालय में पं0 गोविन्द कुमार तिवारी अधिबक्ता का संरक्षण मिलने पर जिला न्यायालय से बार टाईपिस्ट का लाईसेन्स मिला । नौगॉव न्यायालय में बैठ जाने के कारण हजारों लोगों से पहचान बन चुकी थीए समाजसेवा ए पत्रकारिता लेखक और न्यायालय का संरक्षण मिलने के बाद बैबाहिक जीवन मिला । छतरपुर जिला जन सम्पर्क अधिकारी श्री गैंदा लाल जी सोनाने ने सरकार की योजनाओं का लाभ दियाया । जिस व्यक्ति के पास सिर ढ़कने की जगह नही थी आज वह छतरपुर जिला में जमीन से स्वयं की दम पर पहचान बनाने बाला व समाज को एक नजीर देने बाला आर्थिक रूप से भी करोड़ों का मालिक है ए आखिर व्यक्ति की मेहनत ईष्वरी कृपा ही सफलता हासिल कराती है । अनेकों बार आकाषवाणी छतरपुर से इनके बिचार प्रसारण हो चुके है तथा इनका जीवन परिचय प्रकाषित हो चुका है । बुन्देलखण्ड स्तरीय पत्रकार सम्मेलन कराने बालेए अनेक पत्रकार सम्मेलन में सम्मानित होने बाले है । उनकी लेाकप्रियता पर अनेक लोगों ने ऊॅगली उठाई लेकिन उनके साथ सुतरे चरित्र पर उनके बिरोधी आज तक दाग लगाने में असफल रहे है । आज भी उनकी समाज सेवा ष्षहर व गॉव के लोगों को मिल रही है । अनेक ऐसे सामाजिक कार्य कराये जो आम लोगों को दुलर्भ नजर आते है । संतोष कुमार का जीवन दिन चर्या आज भी चालीस साल पूर्व की तरह है सुबह 4 बजे उठना और रात्रि 10 बजे विश्राम करना । भगवान श्री राम राजा ओरछा की कृपा से प्रत्येक कार्य असंभव संभव हो रहे है । आत्म विष्वास की नींच आज तक हिल नही सकी जिसका कारण ईष्वरी कृपा है । उन्होने अपने जीवन में किसी भी प्रकार का नषा नही किया हैए इसी कारण वह सम्मानित है
विकाष की गति ईष्वर की कृपा ए अटल विष्वासए कर्मठता ए लगन ईमानदारी सहयोग त्याग परिश्रम के साथ साथ सुख दुःख की इस गति के साथा आज नौगॉव नगर के बरिष्ठ पत्रकार व लेखक संतोष गंगेले की पहचान अब लोग एक नजीर के रूप में देते है । संतोष कुमार ने अपना पूरा परिवार विकाष की गति से जोड़ा साथ ही परिवार व समाज के लोगा को आगे लाकर नेक इंसान बनाया । संसारिक सुख जिसे कहते है वह देख चुके तथा संसारिक जो दुःख होते है उन्हे देखने के बाद आत्म विष्वास बनाये रखने बाला इस क्षेत्र में एक ऐसा ही व्यक्ति मेरी नजर में है जिसका नाम आज लोग गर्व से लेकर बताते है कि यदि स्वयं की मेहनत पर कुछ कर दिखाया है तो वह संतोष कुमार गंगेले है जिसका नाम लाखों लोगों में जाना जाता है । आज के युवाओं को इस लेख व जीवनी से कुछ सीखने का अवसर है।
सतीश साहू, वरिष्ठ पत्रकार

1 thought on “एक कर्मयोगी युवा की कहानी”

  1. THANK YOU. AAPNE IS LEKH KO JO STHAAN DIYA BAHUT BAHUT DHANYWAAD.santosh gangele press repotor

Comments are closed.

error: Content is protected !!