दीवान व खादिमों की छींटाकशी गलत

आज कल मीडिया (अखबार और टीवी) और फेसबुक आदि माध्यम से खादिम समुदाय और दरगाह दीवान एक दुसरे पर छीटाकशी कर रहे है जो बिलकुल गलत है और पुरे देश में एक गलत सन्देश जाता है.

कुछ लोग खादिमो के पूर्वजो के बारे में टिपण्णी कर रहे है जो एक इतिहास का एक शोध का विषय है मुझे उसके बारे में कुछ नही कहना.

अब बात खादिम समुदाय की : 

ये सर्विदित है की खादिम समुदाय खवाजा गरीब नवाज के साथ उनकी जिन्दगी में ख्वाजा बुजुर्ग की सेवा करता आया था और आपके विसाल के बाद 800 साल से हर मौसम और हर हालत में आपके दरबार की सेवा करता आया है ये एक काबिले तारीफ काम है. 800 साल का अरसा कम नहीं होता है खादिम समुदाय ने हमेशा इस दरबार में बेलोस खिदमत की है उसक कोई सानी नहीं है, अब चुकी पिछले 40 सालो में खुद्दाम हजरात के पास सुख समृधि आ गयी तो ये लोगो की आँखों में खटकने लगा ये गलत बात है इनकी पिछली खिदमात को कोई नहीं देखता की बटवारे के वक़्त भी इन्होने इस दरबार के खातिर अजमेर में रहना कबूल किया.

बात दरगाह दीवान साहब की :

दरगाह दीवान साहब के बारे में मै इतना बताना चाहता हूँ की उर्स की महफ़िल दरगाह दीवान साहब की सदारत में होती है और बाकायदा 6 दिन होती है. आखरी दिन महफ़िल के बाद दीवान साहब मजारे मुबारक को गुसल देते है और उर्स का समापन होता है कितनी बड़ी बात है अगर महफ़िल न हो तो उर्स का समापन न हो इससे दरगाह दीवान साहब की अहमियत का पता चलता है.

दरगाह कमेटी को रोल केवल प्रशासनिक है वो दरगाह की व्यवस्थाओ के सुचारू रूप से चलने के लिए बने गयी है उसका दरगाह के धार्मिक मामलो में कोई दखल नहीं है.

अब आजकल अखबार आदि बहुत हो गए है उन्हें कवरेज के लिए न्यूज़ चाहिए होती है इसलिए वो दोनों पक्षों के बयान को बड़ी खबर बना कर पेश करते है दूसरी बात पहले जो खादिम समुदाय और दरगाह दीवान के बीच आपसी सोहार्द और एक अदाबो आदाब को जो सिलसिला बुजुर्गो के वक़्त था वो अब नहीं है. अब वक़्त है की दोनों पक्ष (खुद्दाम हजरात और दीवान साहब) आपस में मिलजुलकर फलतू बयानबाजी बंद कर दरगाह और अजमेर के विकास के लिए एकजुट हो और जायरीनो को ज्यादा से ज्यादा सहूलियत फरहाम कर सके इस विषय में सोंचे.

दोनों पक्ष (खुद्दाम हजरात और दीवान साहब) दरगाह शरीफ के अक्षुण हिस्सा है इनमे से कोई भी दरगाह से अलग नहीं हो सकता न ही कोई इनको अलग कर सकता है

ये सारी बातें इसलिए बताई गयी की बहुत से लोगो को इसकी जानकरी नहीं है अब इस जानकारी के आधार पर जनता खुद आंकलन करेगी कौन सही है कौन गलत .

-ऐतेजाद अहमद खान

3 thoughts on “दीवान व खादिमों की छींटाकशी गलत”

  1. खादिम समुदाय प्रारंभ से ही ख़्वाजा साहेब के वंशजों से घृणा करता आ रहा है कारन क्या है अब ये तो वही जाने , जैसा की खादिम कहते हैं की दरगाह दीवान ख़्वाजा साहेब के वंशज नहीं है तो उनको यह साबित करना चाहिए हम भारत देश में रहते है और यहाँ न्यायलय सभी के लिए खुला है ।
    अब बात यह उठती है की ख़्वाजा साहेब ख़्वाजा साहिब के दरगाह के खादिम कोन है इस बात पर एक कोर्ट केस देखा जा सकता है “In the court of the tregery officer and megistrate first class, Ajmer”
    ‘criminal case no. 70/1928’ “”सरफराज़ अली /पुत्र श्री यूसूफ अली खादिम अजमेर ‘ बनाम ‘ मोहियुद्दीन उर्फ प्यारे मिया अजमेर “” “”Decided on 31/7/1930 by Jawahar Laal Raawat magistrate,first class, Ajmer””
    इस कोर्ट केस का अवलोकन करने पर साफ़ साफ़ पता चल जाता है की ख़्वाजा साहेब के खादिम किन के वंशज हैं । उपरोक्त मुक़दमे में अदालत ने यह निर्णय दिया की लाखा और उसका भाई टेका ११७५ संवत (संवत चंद्र भाट) में मुसलमान हुवे उस समय विक्रमी संवत १२६५ था, खादिम जो भी हैं , वो लाखा और टेका की औलाद (वंशज) में से है । लाखा और टेका जाती से खुद भील थे । लाखा का इस्लामी नाम फखरुद्दीन और टेका का मोहम्मद यादगार रखा गया ।

  2. दीवान एक लकब है जो की ख़्वाजा साहेब के सज्जादानशीन को अकबर बादशाह ने दिया । ख़्वाजा साहेब का सज्जादानशीन ८०० सालों से ख्व्जा साहेब के परिवार का सदस्य ही बनता चला आ रहा है और ये पद वाशानुगत पद है । यहाँ दीवान शब्द को लेकर लोगो को गुमराह किया जा रहा है । दरगाह दीवान, सज्जादानशीन , गद्दीनशीन ये सब शब्द एक दूसरे के पर्याय वाची है और ये एक ही पद के अलग अलग नाम हैं । ख़्वाजा साहेब के वंशज के सन्दर्भ में जानने के लिए ए.आई.आर. १९८७ सुप्रीम कोर्ट पेज नंबर २२१३ का अवलोकन किया जा सकता है इसके अतिरिक्त हाल ही में हुवे राजस्थान हाई कोर्ट के फैसले ‘S.B. Civil Writ Petition No.144/2011’ ltaf Hussain S/o Fida Hussain
    (Deceased) Through LRS
    Versus
    Deewan Syed Ale Rasool Ali
    Khan through Legal
    Representative & Others
    को भी देखा जा सकता है । इस केस में खादिम पार्टी थे और कोर्ट ने ये निर्णय दिया की दरगाह दीवान ख़्वाजा साहेब का वंशज होता है, जबकि खादिम ये रिट (केस ) हार गए फिर भी कोर्ट के फैसलों की अवहेलना करते है ।

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