रावण कैसे बना लंका का राजा

579039_4684138722053_1039998779_nसभी जानते हैं कि रावण लंका का राजा थापर शायद बहुत से लोगों को पता नहीं कि रावण लंका का राजा कैसे बना. रावण जगत् की सृष्टि करने वाले जगत् पिता ब्रह्माजी का पोता था. रावण के जन्म की कथा इस प्रकार है. जगत् पिता ब्रह्माजी का पुत्र पुलस्त्य था. पुलस्त्य का विवाह गौ नामक महिला से हुआ थाजिन्होंने वैश्रवण को जन्म दिया. वैश्रवण बाद में कुबेर के रुप में भी जाने गए. वैश्रवण अपने पितामह जगत् पिता ब्रह्माजी की बहुत अधिक सेवा किया करते थे और पिता का ध्यान नहीं रखते थेफलस्वरुप पुलत्स्य अपने बेटे वैश्रवण से नाराज हो गए. पुलत्स्य दूसरे रुप में पुलत्स्य विश्रवा या विश्रवा मुनि के रुप में जाने जाते थे. वैश्रवण की सेवा से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने वैश्रवण को अमरत्व प्रदान कियाधन का स्वामी अर्थात कुबेर बनायालोकपाल बनायामहादेव से मित्रता कराईयक्षो का स्वामी बनाया और राज्रराज‘ की उपाधि प्रदान की. ब्रह्माजी ने वैश्रवण को पुष्पक विमान भी दिया. वैश्रवण का पुत्र नलकूबर हुए. वैश्रवण(कुबेर) ने लंका को अपनी राजधानी बनाया,जहाँ राक्षस निवास करते थे. कुछ समय बाद जब वैश्रवण (कुबेर) को अपने पिता के नाराज होने का पता चला तो उसने तीन सुंदर राक्षस कन्याओ पुष्पोत्कटाराका और मालिनी को अपने पिता की सेवा में नियुक्त कर दिया. तीनो ने मुनि की खूब सेवा की और उनकी सेवा से प्रसन्न होकर विश्रवा मुनि ने तीनो को संतान सुख दिया और पुष्पोत्कटा के दो पुत्र रावण और कुम्भकरण हुएराका के एक पुत्र खर और पुत्री सूर्पणखा हुए और मालिनी ने विभीषण को जन्म दिया. रावण के दस मुख थे. इस प्रकार वैश्रवण (कुबेर)रावणकुम्भकरणविभीषण और खर आपस में भाई थे और सूर्पणखा बहन. कुबेर की समृद्धि देखकर रावण और कुम्भकरण को ईर्ष्या हुई. वे भी समृद्धि चाहते थेइसलिए उन सभी ने ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए तपस्या प्रारंभ की. रावण ने एक पैर पर खडे रहकर वायु के आहार पर एकाग्र होकर एक हजार वर्ष तक तपस्या की. कुम्भकरण और विभीषण ने भूमि पर सोकरआहार का संयम कर. और कठोर नियम पालना कर रावण की तपस्या में सहयोग दिया. भाई खर और बहन सूर्पणखा अपने भाइयों की सेवा करते. रावण ने तपस्या के अंत में अपना मस्तक काट-काट कर अग्नि में आहूति दी. फलस्वरूप ब्रह्माजी तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्होंने रावण से कहा, ‘अमरत्व छोड़कर कोई भी वर् मांगो‘ और साथ ही ब्रह्माजी ने आहूति में समर्पित मस्तको को रावण के शरीर से जोड़ दिया. रावण बोला, ‘गंधर्वदेवताअसुरयक्षराक्षससर्पकिन्नर और भूतों से मेरी पराजय कभी न हो.‘ ब्रह्माजी ने तथास्तु कहा. रावण ने मनुष्य का नाम नहीं लिया थाक्योंकि रावण अपने आप को मनुष्य से बलवान समझता था.

केशव राम सिंघल
केशव राम सिंघल

कुंभकरण ने अधिक निद्रा का वरदान माँगा. विभीषण ने मन में पाप का विचार ना उठे और ब्रहमास्त्र के प्रयोग की विधि जानने का वर् मांगा. राक्षस योनि में जन्म लेकर भी विभीषण का मन अधर्म में नहीं लगायह जानकर ब्रह्माजी विभीषण से बहुत खुश हुए. उन्होंने विभीषण को अमरत्व का वर् भी दिया. इस प्रकार रावण बहुत ही बलवान हो गया था. देवतागण भी उससे भयभीत रहते थे. रावण ने वैश्रवण (कुबेर) से युद्ध लडा और उसे पराजित किया. रावण ने वैश्रवण (कुबेर) से पुष्पक विमान भी छीन लिया और उसे लंका से भगा दिया. लंका के मनुष्यभक्षी राक्षसो और महाबली पिशाचो ने रावण को अपना राजा बना लिया और इस प्रकार रावण लंका का राजा बना.

महाभारत की कथा पर आधारित  
कथा पुनर्लेखक – केशव राम सिंघल

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