मोदी के चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर ने कहा- देश में बड़े सुधारों की उम्‍मीद बेमानी

subrahmaniumवॉशिंगटन. केंद्र सरकार के चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर अरविंद सुब्रमण्यम ने भारत के लोकतंत्र और सत्ता केंद्रों को लेकर एक ऐसा बयान दिया है जो विवाद का कारण बन सकता है। अमेरिका में एक कार्यक्रम में चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर ने कहा, ”भारत में अति ‘सक्रिय’ लोकतंत्र कुंठित कर देने वाला है। जहां सत्ता के कई केंद्र हों, वहां बड़े आर्थिक सुधारों (बिग बैंग रिफॉर्म्स) की उम्मीद लगाए रहना बेमानी है। भारत में कई वीटो सेंटर हैं जैसे केंद्र, राज्य और अन्य संस्थान, जिनके कारण हमेशा राजनीतिक हलचल बनी रहती है।”
पिछले साल भारत के चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर बनाए जाने के बाद पहली बार वॉशिंगटन पहुंचे सुब्रमण्यम ने अमेरिकी थिंक टैंक से बातचीत के दौरान कहा कि भारत में अभी आर्थिक सुधार हो रहा है, लेकिन फिलहाल इसे उन्नत अर्थव्यवस्था करार नहीं दिया जा सकता।

नई सरकार की नीतियों से आने वाले सालों में होगा फायदा
उन्होंने कहा कि हालांकि सालाना आम बजट से बड़े आर्थिक सुधारों की उम्मीद नहीं की जा सकती, फिर भी नई सरकार आगे बढ़ रही है। धीरे-धीरे ही सही, लेकिन कई नीतियों और वित्तीय सुधारों से आने वाले सालों में भारत का चेहरा बदल सकता है। मोदी सरकार के बजट की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि यह बजट सुधार की गति को बनाए रखते हुए अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा।
प्रतिष्ठित पीटरसन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स में बोलते हुए डॉ. सुब्रमण्यम ने कहा, ”आप जानते हैं कि भारत में कुछ होने से पहले ही उसे रोकने का काम चलता रहता है। वैसे, भारत न संकट में है और न संकट में रहा है। लेकिन यह एक ऐसा देश है जहां व्यापक आर्थिक विकास की उम्मीद नहीं की जा सकती।” बता दें कि भारत में मुख्य आर्थिक सलाहकार का पद संभालने से पहले सुब्रमण्यम ग्लोबल फाइनेंशियल थिंक टैंक का हिस्सा रहे हैं।
पिछले दिनों केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा संसद में पेश किए गए सालाना बजट को लेकर अपने अपने प्रेजेंटेशन में उन्होंने कहा कि कई क्षेत्रों को सरकार तेजी से बढ़ावा दे रही है, जिसमें निजी निवेश भी शामिल है। उन्होंने कहा, ”हम लोग सार्वजनिक और निजी निवेश के जरिए विकास दर बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। इससे सरकारी घाटा कम होगा।”

ऐसे बयानों से ‘मेक इन इंडिया’ कैंपेन को लगेगा झटका
एक ओर जहां पीएम नरेंद्र मोदी विदेशों में जाकर ‘मेक इन इंडिया’ की वकालत कर रहे हैं और भारत में निवेश लाने की कोशिश कर रहे हैं, तो दूसरी ओर मुख्य आर्थिक सलाहकार द्वारा विदेशों में ऐसा बयान देने से यह कैंपेन प्रभावित हो सकता है। जमीन अधिग्रहण जैसे मुद्दे पर विवाद को लेकर पहले ही विदेशी कंपनियां निवेश करने के बारे में बहुत ही संभल कर सोच रही हैं। अगर सत्ता विकेंद्रीकरण के नाम पर अड़चन उनके सामने रखी जाएगी, तो निवेश से पहले ही वे अपना मन बदल सकती हैं।

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