मीडिया इन दिनों सबके निशाने पर है

electronic-mediaनेता हो या  नौकरशाह …आम हो या खास…सब उपदेशक की भूमिका में हैं…पत्रकार होना मानो पाप हो गया हो…..मैं इस बात से कतई इंकार नहीं करता कि पत्रकारिता का  पाक पेशा मैला नहीं  हुआ…..पर क्या इस गंदगी के लिए जिम्मेदार महज बेचारा पत्रकार ही है जो उसे इस grhanit नज़रिये से देखा जाने लगा…..मोदी समर्थक केजरीवाल को हीरो बनाने के लिए मीडिया को पानी पी पी कर कोसते रहे ….और अब जब मोदी दिख रहे हैं तो केजरीवाल  मीडिया को बिका हुआ करार दे रहे हैं……मतलब हमारे लिए करे तो अच्छा नहीं तो थू थू…..बेचारा पत्रकार …जी हाँ , वो ही शख्स जो जंगल में लगी आग को भी ऐसे कवर करता हैं मानो उसका घर जल रहा हो…..दुर्घटना में घायल को मदद ना पहुचे तो ऐसे चिल्लाता हैं मानो उसके अपने की सांस जा रही हो..।और हाँ इन सबके बीच कुछ ढीट नौकरशाहो की व्यंग्य भरी नजर कि उनके आराम में खलल डालने की गुस्ताखी  क्यूँ की गयी। सब झेल कर किसी पर एहसान नहीं करता वो अपितु अपने काम को अंजाम देने की एक छोटी सी कोशिश करता हैं उतनी ही छोटी सैलरी में…..कुछ चालबाज नौकरशाह और नेताओ की राजनीती का शिकार वो कब बन जाता हैं इसका उसको कई बार तो एहसास ही नहीं होता…..फिर भी उसकी अधिकतम कोशिश यही की ग़लती से भी ग़लती ना हो……हैरानी इस बात पर ज्यादा होती हैं कि पत्रकार की कमीज हर हाल में साफ़ रहे हमारी चाहे कैसी भी हो….ना ना  मैं नेताओ की तरह दूसरे को मैला कर पत्रकार को उजला नहीं कहलवाना चाहता ……पर दोस्तो पत्रकार आसमा से भेजे फरिश्ते नहीं होते…वे भी इसी समाज से आते हैं और वो कहावत हैं ना की बोय पेड़ बबूल को तो आम कहा से होए…..आसपास के वातावरण का असर पत्रकार पर भी हुआ हुआ हैं ये एक कड़वा सच है पर हर पल महज  आलोचना समधान नहीं हो सकता। पेड न्यूज़ हैं सही है पर उसे रोकेगा कौन ….निसंदेह आप  और हम ! केवल पत्रकार नहीं रोक सकता …ये सच है कड़वा सच उसके लिए आपको रास्ता खोजना होगा..घाव को महज  कुरेदने से वो ठीक नहीं हो सकता उसे दवा  से ही ठीक किया जा सकता हैं ….तेजपाल गलत हैं  तो प्रभाष जी सच्चाई नहीं छिनी जा सकती…..पेज थ्री की खबरों पर फोकस का आरोप झेलने वाले इसी मीडिया ने जेसिका के हत्यारों को अपनों की चुप्पी के बाद भी बेनकाब किया था….ना बिका था मीडिया ना डरा था मीडिया… आपात काल में भी कुलदीप nayyar जैसे लोगो की कलम की स्याही ना खरीदी जा सकी ना उड़ेली जा सकी ….जाने कितने अनगिनत किस्से हैं ऐसे….. बस तब उस पत्रकार के साथ अनगिनत लोगो का हौसला होता था कि वो लड़ जाता हैं व्यवस्था से भी और  अपने मीडिया हाउस से भी….मानता हूँ हमारी बिरादरी के कुछ लोगो से galtiya हुई हैं पर उसके लिए पूरी जमात को सजा ना दीजिये…….ये बात पत्रकार के लिए कितनी नुकसान  दायक  हैं पता नहीं पर व्यवस्था के लिए घातक हैं …..लोकतंत्र के घोषित तीन स्तंभों की हालत किसी से छीपी नहीं हैं और अब यदि इस अघोषित चौथे स्तंभ का हाल भी ये हुआ तो दोस्तो परिवर्तन के लिए ये इंतजार कही इंतजार बन कर ना रह जाए…….फेसबुक के मित्रो कम से कम आप तो समझिये इस व्यथा को ….पत्रकार की आलोचना की गुंजाइश हैं पर sampooran मीडिया  पर सवाल  !!!!!!!  The press!what is the press ? i cried..when thus a wonderful voice replied… in me all human knowledge dwells ..the oracle of orcales…Past,present,future I reveal
Or in oblivious silence seal
what I preserve can perish never
what i forgo is lost for ever….
-ashutosh nigam, whats app

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