क्या कभी सोचा है:-

policeएक पुलिस का जवान व् अधिकारी कानून व्यवस्था,(इलेक्शन vip जुलुस धरना प्रदर्शन आदि) ड्यूटी पर जाता है तो सोचा कभी —
उसके भोजन और रहने की क्या व्यवस्था है ?
ये व्य्वस्था होगी या नही?
कोन करेगा ?
कभी नही सोचा जाता न ही कोई प्लान होता है बस अनुशाशन बल के नाते तुरन्त रवाना कर दिया जाता है और वो भी  जवान अपने फ़र्ज़ को निभाने रवाना हो जाता है न ही उसने कभी उक्त सुविधाओ की ड्यूटी पर जाते मांग की ना ही किसी ने कभी हिम्मयत की क्योकि शायद वो मानव नही है हाड मांस का नही बना है
क्या कभी पुलिस जवान व् अधिकारी ने किसी भी ड्यूटी पर जाने पर अपने परिजनो को बीमार किये ?
क्या ड्यूटी नही करने की अपनी असमर्थता बताकर ड्यूटी से मुआफ़ की दरख्वास्त की ?
क्योकि उसके परिजन बीमार नही होते उनके परिवार में उसकी कभी कमी महसूस नही होती, उसके कोई त्यौहार नही होता ना होली ना दीवाली ना दशहरा ना ईद ना बैशाखी ना क्रिसमस क्योंकि वो मानव नही हाड मांस का नही है उसकी कोई संवेदनाए नही है
और तो और जिनके लिए आपने सुविधाओ की असुविधा का मर्ममयी दर्द बयां किया है वो लोकतंत्र की अहम  दायित्व की ड्यूटी के लिए एडवांस T A व् DA लेकर ही जाते है
जबकि पुलिस के जवान व् अधिकारी को ड्यूटी का आदेश ही थमा कर रवाना कर दिया जाता है
क्योंकि उसे भूख नही लगती
सभी अवश्यक सुविधाये वह पहले से उपलब्ध करवा दी जाती है या वो हाड मांस का नही बना है
में दर्द बयां नही कर रहा हु बल्कि हकीकत बता रहा हु क़ि समाज के लिए अहम दायित्व निभाने वालो की ज्यादा उपेक्षा नही होनी चाहिए
उनके लिए भी हमे संवेदनशील होना चाहिए
अगर हमारी उपेक्षा उनके मन में समा गयी तो कैसे समाज की समस्त व्यवस्थाओ को हम व्यवस्थित चला पाएंगे

क्या बिना सुरक्षा बलो के चुनाव हो जायेंगे ?
क्या बिना सुरक्षा बलो के हम अपने त्यौहार धार्मिक आयोजन कर पाएंगे
क्या पटवारी,शिक्षक,डॉक्टर , रसद विभाग,बिक्री,परिवहन,बिजली,पानी आदि सभी विभाग बिना सुरक्षित व्यव्स्था के अपने दायित्व सम्पन कर  पाएंगे ?
मेरी अभिव्यक्ति किसी पक्ष का विरोध या किसी की बात को चुनोती नही देना है
ना ही किसी की बेबसी व्यथा का चित्रण है
केवल आग्रह है क़ि
समाज के स्मस्तजन को अपनी संवेदनशील सोच का दायरा व्यापक करना चाहिए
क्योंकि सुरक्षा बल के सदस्य भी हाड मांस के बने है
इसी मानव समाज के सदस्य है
इसी समाज के परिवारो के सदस्य है
S k bhati
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