बांधे जा रहे हैं मीडिया के पांव

mediaमोदी और केजरीवाल सरकारों पर तो मीडिया पर अंकुश लगाने के आरोप अब लग रहे हैं… लेकिन राजस्थान की वसुंधरा सरकार ने तो आते ही सचिवालय में सीएमओ में पत्रकारों का प्रवेश सीमित कर दिया था… फिर सचिवालय में कैमरा ले जाने पर पूरी तरह रोक लगा दी… अब फ्रीलांस अधिस्वीकृत पत्रकारों के पास बनाने भी बंद कर दिए हैं…. इसी तरह फ्रीलांस अधिस्वीकृत पत्रकार अब विधानसभा की प्रेस दीर्घा में नहीं बैठ सकेंगे…
इससे पहले फ्री लैपटॉप योजना को भी रोक दिया गया था… डीपीआर ने बिन बंटे लैपटॉप सरकार को लौटा दिए और अपनी बारी का इंतजार करते पत्रकार मायूस होकर रह गए… छोटे और मंझोले अखबारों को दिए जाने वाले विज्ञापन पूरी तरह से बंद कर दिए गए हैं… यूं भी महारानी मीडिया की परवाह करने की बजाय उसे खरीदने में यकीन करतीं हैं.. और जब खरीदना ही है तो बड़े बैनरों को जेब में करके, बाकियों को चलता करने की लाइन पर चल रही है सरकार..
जीतने के बाद आज तक महारानी ने मीडिया को लिफ्ट नहीं मारी है… कोई इंटरव्यू नहीं… कोई मीट द प्रेस नहीं… पिछले कार्यकाल में भी प्रेस कांफ्रेंस के नाम पर बुलाकर मीडिया को दो-दो घंटे बिठाकर अपमानित किया गया था और अपनी इस उपलब्धि पर वे गर्व करतीं हैं… राजस्थान में तो मीडिया का बुरा हाल है… उसे ऐसे खराब व्यवहार की तो उम्मीद बिल्कुल नहीं थी… ऊपर से राजस्थानी स्वभाव पत्रकारों को भाव भी नहीं खाने देता…पर हालात इमरजेंसी से बदतर ही हैं…

जयपुर से धीरज कुलश्रेष्ठ की रिपोर्ट
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