बात कड़वी है। लेकिन आज फिर इसका अनुभव हुआ। राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का निधन हो गया। इस मिसाइलमैन को श्रृद्धांजलि। लेकिन जब अपने अखबार के दफ्तर में बैठा,तो जो भी फोन आया,उसमें सामने वाले ने यही पूछा कि क्या कल दफ्तरों में छुट्टी है? क्या स्कूलें खुलेंगी? क्या हो गया हमारी संवेदनशीलता को? देश के महान नायक के निधन पर हम उसके योगदान को याद करने की बजाय छुट्टी की पहले सोचते हैं। विडम्बना ये है कि जिस शिक्षक समुदाय को कलाम साहब देश का सबसे महत्वपूर्ण और भविष्य निर्माता मानते थे,वे भी कल छुट्टी के लिए पूछने को फोन खड़खड़ा रहे थे।
वरिष्ठ पत्रकार ओम माथुर की फेसबुक वाल से साभार