इस कुर्सी पर जो बैठा वो छोड़ गया.

img-20160916-wa0005कुर्सी हर किसी को प्यारी होती है। कुर्सी पर बैठने के बाद आराम के साथ मान-सम्मान भी भरपूर मिलता है। राजनीति में तो कुर्सी को पाने की चाह में नेता लालायित रहते हैं। मगर एक कुर्सी ऐसी है जिसका रहस्य पता लगने के बाद शायद कोई कीमत मिलने पर भी इस पर बैठने से कतराएगा। अब तक जो भी इस कुर्सी पर बैठा वो ज्यादा दिन तक आनंद नहीं ले पाया। करीब 20 साल के इतिहास की खोज में यह रहस्य सामने आया है।
यह कुर्सी है देश का सबसे विश्वसनीय और नंबर 1 अखबार होने का दावा करने वाले दैनिक भास्कर के अजमेर संस्करण में ब्यावर ब्यूरो प्रभारी की। यहां कम समय में ही एक दर्जन से अधिक ब्यूरो प्रभारी तैनात कर दिए गए मगर कोई भी डटकर काम नहीं कर पाया। अधिकांश ब्यूरो प्रभारी शहर छोड़ गए तो कुछ ऐसे हैं जिन्होंने पत्रकारिता ही छोड़ दी। दरअसल ब्यावर ब्यूरो कार्यालय भास्कर प्रबंधन के लिए शुरूआत से ही चुनौती बना हुआ है। यहां भास्कर की प्रतियां प्रतिद्वंदी समाचार पत्र से काफी कम है। मुकाबले के लिए वर्ष 2009 में ब्यावर ब्यूरो कार्यालय को कलस्टर कार्यालय में तब्दील कर भरपूर स्टाफ लगाया गया मगर अपेक्षाओं के अनुरूप सफलता नहीं मिली। अत्यधिक खर्च करने के बाद भी वांछित लक्ष्य हासिल नहीं होने पर अल्प समय में ही कलस्टर का दर्जा हटा लिया गया। अपेक्षित परिणाम नहीं मिलने के कारण ब्यूरो प्रभारी की कुर्सी पर स्थिरता नहीं आ पाई। कई दिग्गज पत्रकारों पर भी दांव खेला मगर वे भी कामयाब नहीं हो पाए।
करीब दो दशक पूर्व ब्यावर में दैनिक भास्कर की शुरूआत के वक्त यूसुफ अली बोहरा प्रथम ब्यूरो प्रभारी बने मगर नई नवेली दुल्हन को संभाल नहीं पाए और चंद माह में ही साथ छोड़ गए। इनके बाद विमल चौहान को दायित्त्व सौंपा गया। लंबी पारी खेलने के बाद चौहान को ब्यावर से बाहर हनुमानगढ़ और फिर पानीपत तबादला कर दिया। इनके बाद पाली से सेन, कोटा से अनिल वनवानी व अजमेर से महावीर सिंह चौहान को भेजा गया। चौहान के भास्कर छोड़ने पर सुरेश कासलीवाल को कमान सौंपी गई। चौहान के बाद यह अब तक के दूसरे प्रभारी रहे जो अधिक समय तक रूक पाए। थोड़े समय बाद इन्हें भी अजमेर लगाकर बिजयनगर निवासी पवन शर्मा को भेजा गया। ब्यूरो प्रभारी बनने के बाद शर्मा को पत्रकारिता का त्याग करना पड़ा। इनके बाद अजमेर से मुकेश खंडेलवाल आए और वो भी भास्कर छोड़ गए। तब ब्यूरो कार्यालय को कलस्टर में प्रमोट कर पत्रकारिता में वरिष्ठ अनुभवी संतोष त्रिपाठी को ब्यावर का जिम्मा सौंपा गया। कुछ समय तक युवाओं की नई टीम के साथ धुंआधार पारी खेलने के बाद इन्हें भी अजमेर वापस बुला लिया गया। अब ऑलराउंडर जगदीश विजयवर्गीय को मनचाही टीम के साथ कमान सौंपी मगर वे भी प्रबंधन को खुश नहीं कर पाए और भास्कर से विदा हो गए। एक बार फिर बेहतर की उम्मीद में संतोष त्रिपाठी को भेजा मगर कामयाबी नहीं मिली तो स्थानीय स्तर पर तरुण दाधीच को कमान सौंपी गई। भास्कर में ब्यूरो प्रभारी बनने के बाद ऐसी परिस्थितियां बनी कि 17 साल से पत्रकारिता कर रहे दाधीच को भी भास्कर से त्यागपत्र देना पड़ा।
ब्यावर भास्कर के बिगड़ते हालात को देखते हुए लगभग 20 साल का पत्रकारिता अनुभव रखने वाले अक्षय सक्सेना को झालावाड़ से ब्यावर भेजा गया। 12 साल से लगातार भास्कर में बखूबी कार्य कर रहे सक्सेना भी ब्यावर ब्यूरो चीफ की कुर्सी पर ज्यादा दिन नहीं बैठ पाए और उन्हें भी भास्कर छोड़कर घर लौटना पड़ा। अब इस कुर्सी पर ब्यावर ब्यूरो कार्यालय में कार्यरत कार्मिकों में से वरिष्ठता के आधार पर राजेश शर्मा को विराजमान किया गया है। शर्मा खुद भी काफी समय से ब्यूरो चीफ बनने का सपना संजोए थे। वर्ष 2004 में दैनिक नवज्योति से पत्रकारिता कॅरियर की शुरूआत करने वाले शर्मा भी संभवत: इस कुर्सी के रहस्य से अनजान थे। अब उनकी मुराद तो पूरी हो गई मगर बीते वक्त को ध्यान में रखकर कहना मुश्किल होगा कि वे कितने समय तक इस पद पर बने रह पाएंगे। उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए उम्मीद है कि वे इस कुर्सी पर लंबे समय तक जमे रहकर कोई करामात दिखाएंगे।

*-सुमित सारस्वत ‘SP ‘, सामाजिक विचारक, मो.09462737273*

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