चलते रस्ते यादव के लिए हो गई मुश्किल

arvind yadav 2कांग्रेस की ओर से आहूत अजमेर बंद का सड़क पर उतर कर विरोध करने के ऐलान के बाद भी बंद के ऐतिहासिक सफल होने से पूरी शहर भाजपा की तो सिट्टी पिट्टी गुम है ही, शहर अध्यक्ष अरविंद यादव के लिए भी मुश्किल हो गई है। अखबारों की सुर्खियां कांग्रेस की सफलता के गुण कम गा रही हैं, भाजपा का बाजार खुलवाने का गुमान ठंडा पडऩे को ज्यादा उभार रही हैं। वास्तविकता क्या है, क्या बंद को विफल करवाने का दंभ भरने वाले सेनापति यादव खुद मार्केट में आए या नहीं, वे ही जानें, मगर खबरनवीस तो यही रिपोर्ट कर रहे हैं कि वे मैदान में उतरे ही नहीं। उन्हें मोबाइल पर संपर्क करने का भी प्रयास किया गया, लेकिन वे आए ही नहीं। भाजपा पार्षद एवं महामंत्री रमेश सोनी, जयकिशन पारवानी सहित कुछ ही नेता दिखे। इस बात की खासी चर्चा रही कि जब विरोध ही करना था तो खुलकर क्यों नहीं सामने आए। ऐसे में स्वाभाविक रूप से यादव को जवाब देना भारी पड़ जाएगा। विशेष रूप से इसलिए कि क्यों फटे में टांग फंसाई, जिससे भाजपा की किरकिरी हो गई। अकेले यादव ही क्यों, शहर के दोनों राज्य मंत्रियों पर भी जवाबदेही आएगी वे कहां थे, जबकि भाजपा का प्रतिष्ठा दाव पर लगा दी गई थी।
ज्ञातव्य है कि अजमेर शहर भाजपा इकाई के नवीनीकरण की कवायद पाइप लाइन में है। शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी अपनी शरण में आ चुके यादव को रिपीट करने का दबाव बनाए हुए हैं, जबकि महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल की रुचि आनंद सिंह राजावत में है। अब देखना ये है कि ताजा घटनाक्रम के बाद ऊंट किस करवट बैठता है।

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