संघ को क्यों बनाना पड़ा जनाधिकार बचाओ मंच?

rss-4केरल में वामपंथी सरकार के संरक्षण में हो रही हिंसा के विरोध में शहर के विभिन्न मार्गों से जन आक्रोश रैली निकाली गई। रैली के समापन पर नया बाजार चौपड़ पर आमसभा भी हुई।
बेशक कहीं भी हिंसा होती है तो वह गलत है। खासकर से संगठन विशेष के कार्यकर्ताओं को निशाना बना कर हिंसा करना घोर निंदनीय कृत्य है। इस प्रकार की हिंसा को न रोक पाने के लिए केरल की वामपंथी सरकार को जितना कोसा जाए, कम है। स्वाभाविक रूप से केरल सरकार के खिलाफ देशभर की तरह अजमेर में भी रोष व्याप्त है। मगर कौतुहल सिर्फ ये कि जब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और राष्ट्रवादी विचारधारा वाले कार्यकर्ताओं की हत्याएं हो रही हैं और संघ की पहल पर ही संघ विचारधारा से पोषित भाजपा के कार्यकर्ताओं ने रैली का आयोजन किया तो ऐसी क्या वजह थी कि उसके लिए जनाधिकार बचाओ मंच का उपयोग करने की जरूरत महसूस हुई। संघ चाहता तो खुद के झंडे तले यह आयोजन कर सकता था। जितने लोग मंच के बैनर पर जुटे, उतने ही या उससे भी अधिक लोग जुट सकते थे। ऐसा संभव ही नहीं कि संघ का आदेश हो और उसके रिमोट से चलने वाली भाजपा और संघ की प्रशाखाएं उसकी अवहेलना कर सकें। भाजपाइयों की हालत तो ये है कि एकबारगी भाजपा संगठन के किसी आयोजन में शामिल होने में सुस्ती दिखा दें, मगर संघ का आदेश उनके लिए अपरिहार्य होता है।
यहां बता दें कि इस आयोजन में भाजपा सहित विश्व हिन्दू परिषद, हिन्दू जागरण मंच, भारतीय मजदूर संघ, सिंधु सभा, विद्यार्थी परिषद, सिक्ख संगत, स्वदेशी जागरण मंच, संस्कार भारती, विद्या भारती, ग्राहक पंचायत भारतीय शिक्षक संघसेवा भारती, सहकार भारती, भारत विकास परिषद, रुक्टा राष्ट्रीय, अधिवक्ता परिषद, विज्ञान भारती, इतिहास संकलन, सक्षम, शिक्षण मंडल, क्रीड़ा भारती, लघु उद्योग भारती, राष्ट्र सेविका समिति आदि ने भाग लिया। इनमें से अधिकतर किसी न किसी रूप में संघ के ही अंग हैं, बस कार्यक्षेत्र पृथक पृथक है। फिर भी संघ को जनाधिकार बचाओ मंच के नाम का इस्तेमाल करना पड़ा। हालांकि यह संघ के अधिकार का मामला है कि वह अपना आंदोलन किसी भी मंच के जरिए करे, मगर उसे खुद का ही सशक्त मंच छोड़ कर अन्य मंच की जरूरत महसूस हो तो तनिक कौतुहल होना स्वाभाविक है।

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