तिवाड़ी ने कटारिया जी को लिखा पत्र

आदरणीय श्री गुलाब कटारियाजी
माननीय गृहमंत्री, राजस्थान सरकार

आशा है आप कुशल होंगे।
ghanshyam tiwariस्व. सुंदर सिंह भंडारी चैरिटेबल ट्रस्ट, उदयपुर, की ओर से स्व. भैरोंसिंह शेखावत के जन्मदिवस के अवसर पर 23 अक्टूबर 2017 को आयोजित वरिष्ठ विधायक सम्मान समारोह में भारत के उपराष्ट्रपति माननीय वेंकैया नायडूजी के मुख्य आतिथ्य में आपने मुझे एक विधायक के रूप में मेरे कार्यों के लिए सम्मानित करने के लिए आमंत्रित किया था। स्व. सुंदरसिंहजी भंडारी और स्व. भैरोंसिंहजी शेखावत मेरे लिए प्रेरणादायी व्यक्तित्व रहे हैं। इस ट्रस्ट का मैं स्वयं भी सपत्नीक आजीवन सदस्य हूँ। आपने भी गृहमंत्री के रूप में अत्यंत व्यस्त होने के बावजूद समय निकाल कर कृपापूर्वक स्वयं मुझे दो बार फोन किया। इन सब कारणों से मैंने इस कार्यक्रम में आने के लिए अपनी स्वीकृति आपको दी। मुझे बाद में निमंत्रण पत्र से ज्ञात हुआ कि इस कार्यक्रम की अध्यक्षता के लिए आपने प्रदेश की वर्तमान मुख्यमंत्री को बुला लिया है।

आपको, हमारे प्रदेश की जनता को, और पूरे देश में पार्टी के नेताओं को यह स्पष्ट रूप से विदित है कि वर्तमान मुख्यमंत्री के साथ मेरे कुछ सैद्धांतिक, नैतिक और नीतिगत मतभेद हैं। ये मतभेद आधारभूत हैं इसलिए एक दृष्टि से उनकी अध्यक्षता में हो रहे कार्यक्रम में जाकर सम्मान पत्र प्राप्त किया जाना मेरे लिए शोभादायक नहीं होगा। लेकिन फिर भी मैं कार्यक्रम में भाग ले सकता हूँ क्योंकि मेरा मानना है कि लोकतंत्र में सैद्धांतिक, नैतिक और नीतिगत मतभेद को क़ायम रखते हुए भी हम अपने घोर-विरोधीयों के साथ सामाजिक कार्यक्रमों का मंच साझा कर सकते हैं। यह स्वस्थ लोकतंत्र की परम्परा का निर्वहन है। राजस्थान में सभी राजनीतिक दलों के लोग शुरू से ही इस परम्परा का पालन करते रहे हैं। हमने भी किया है और आगे करेंगे भी। लेकिन, जैसा सभी को ज्ञात भी है, मेरे साथ वर्तमान मुख्यमंत्री का कार्यव्यवहार केवल सैद्धांतिक मतभेदों तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने इसे निजी दुश्मनी में बदल दिया। मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही मुझे और मेरे परिवार को राजसत्ता का दुरुपयोग करते हुए नुक़सान पहुँचाने का काम चालू कर दिया जिसे वे अब भी कर रही हैं। किसी के भी द्वारा किसी के भी साथ ऐसा किया जाना अनुचित है। उनके द्वारा ऐसा किया जाने के बावजूद भी इस कार्यक्रम में मैं आ सकता हूँ। मेरे और मेरे परिवार के ख़िलाफ़ दुश्मनी का इनका भाव और सत्ता का दुरुपयोग भी इस कार्यक्रम में मेरे न आने का कोई बड़ा कारण नहीं है। इनके इस आचरण के बावजूद इनके प्रति कोई दुर्भावना मेरे मन में नहीं है। अपने हृदय में मैं ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूँ कि वे इन्हें सद्बुद्धि दे, इनका और इनके परिवार का सदैव कल्याण करें, और ये सदैव सुखी व समृद्ध रहें। मैं एक तपस्वी और ईश्वरनिष्ठ ब्राह्मण का पुत्र हूँ इसलिए सभी के प्रति कल्याण की यह भावना रखना मेरा कर्तव्य भी है जिसका हर परिस्थिति में निर्वहन करने के लिए मैं सजग और तैयार हूँ।

आपका यह कार्यक्रम संवैधानिक दायित्वों के निर्वहन के लिए जनप्रतिनिधि के सम्मान का कार्यक्रम है। सारा प्रदेश यह जानता है कि भारत के संविधान, सुप्रीम कोर्ट के आदेशों, और लोकतंत्र की भावना की धज्जियाँ उड़ाते हुए राजस्थान में इन मुख्यमंत्री की मनमानी चल रही है। राजस्थान में विधानसभा की बैठकें केवल मजबूरी में बुलाई जाती हैं, बिल सरकुलेशन से पास करवाए जाते हैं, सम्बंधित विभाग के मंत्रियों तक को नहीं पता होता कि उनके विभाग का क्या नया क़ानून विधानसभा में लाया जाने वाला है। अपनी क़ाबलियत की बजाय इनकी दया पर बने कुछ मंत्री प्रदेश की जनता के हितों के लिए नेता के रूप में काम करने की बजाय इनके निजी कर्मचारी के रूप में काम कर रहे हैं। क़दम-क़दम पर अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं को अपमानित किया जा रहा है। प्रदेश में जनता के द्वारा, जनता के हितों के लिए बनाई गयी सरकार का इनके और इनके सिपहसालारों द्वारा निजी हित के लिए खुलेआम इस्तेमाल हो रहा है। पूरा प्रदेश आक्रोशित है, जनता की कहीं कोई सुनवाई नहीं है, और जनता महसूस कर रही है कि उसके साथ बहुत बड़ा धोखा किया जा रहा है। जिस मुख्यमंत्री के कार्यकाल में किसानों की ज़मीन हड़पने के लिए भ्रष्ट कोरपोरेट जगत के साथ मिलीभगत करके अजगर जैसा SIR विधेयक लाया गया और जहाँ लोकसेवकों — जिसकी परिभाषा में मुख्यमंत्री, मंत्री, तथा अधिकारी आते हैं — के भ्रष्टाचार को कवच पहनाने के लिए एक अन्धकारमय क़ानून आ रहा है — उस मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में आप संवैधानिक दायित्वों के निर्वहन के लिए जनप्रतिनिधि के सम्मान का कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं! — मुँह में राम बग़ल में छुरी का इससे स्पष्ट उदाहरण और क्या होगा?

इस कार्यक्रम में आने मैं मैं असमर्थ हूँ उसके पीछे कारण यह है कि इस मुख्यमंत्री की न तो राज्य की जनता के प्रति कोई निष्ठा है न ही लोकतांत्रिक और संवैधानिक जीवन मूल्यों के प्रति। न तो इन्हें स्व. सुंदरसिंहजी भंडारी और स्व. भैरोंसिंह शेखावत के जीवन-प्रेरणा की ही कोई परवाह है न ही प्रदेश की भाजपा के कार्यकर्ताओं की कोई परवाह। क्या आप भूल गए कि स्व. भैरोंसिंह शेखावत ने जीवन के अंतिम दिनों में इनके बारे में क्या कहा था? क्या आप भूल गए कि जिन श्री जसवंतसिंहजी जसोल का नाम आपने मेरे साथ स्वागत किए जाने वाले अन्य जनप्रतिनिधियों में एक रखा है, उनके कोमा में जानेके पहले उनके साथ इस मुख्यमंत्री का व्यवहार कैसा था? सार्वजनिक-राजनीतिक जीवन में इनका आचरण यदि सुंदरसिंह भंडारी, भैरोंसिंह शेखावत, अटलबिहारी वाजपेयी और दीनदयालजी की पार्टी के सिद्धांतों और दर्शन के ज़रा भी अनुरूप होता तो मैं इस कार्यक्रम में आता। और सिद्धांतों और दर्शन को भी छोड़िए — बड़ी बातें हैं, मैं यहाँ तक तैयार हूँ कि प्रदेश की जनता के रोज़मर्रा के जीवन की बेहतरी के लिए भी इनका काम अगर ठीक होता तो भी मैं इनकी अध्यक्षता में वहाँ उपस्थित होकर सम्मान प्राप्त करता। लेकिन उपरोक्त किसी भी सार्वजनिक-राजनीति के मापदंड पर ये मुख्यमंत्री क़ाबिल नहीं उतर पायी हैं। इसलिए आपके द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में आने के लिए मैं अपनी अक्षमता प्रकट कर रहा हूँ। आशा है इसके लिए आप मुझे क्षमा करेंगे।

मेरे इस पत्र को आप मेरी ओर से एक राजनीतिक प्रोटेस्ट, राजनीतिक प्रतिरोध, के रूप में लें। इस पत्र के माध्यम से मेरा सबसे प्रमुख प्रतिरोध उस बिल से है जिसे गृहमंत्री के रूप में आप अगले कुछ दिनों में विधानसभा में प्रस्तुत करने वाले हैं। आप एक ऐसा क़ानून बनाने वाले हैं — जो राजस्थान को खुले आम लूटने वाले मुख्यमंत्री, मंत्री और अधिकारियों की लूट को कवच और कुंडल पहना देगा। इस बिल के प्रस्तुत होने के बाद राजस्थान के इतिहास में यह दिन लोकतंत्र के अंधकार दिवस के रूप में याद रखा जाएगा। चूँकि यह बिल आपके विभाग से सम्बंधित है, इस पत्र के माध्यम से मेरा आपसे निवेदन है कि आप मंत्रिमंडल में इस पर पुनर्विचार करें और इसे विधानसभा में नहीं लाया जाए। अगर लाया गया तो जिस प्रकार मैंने आपातकाल का विरोध किया था उसी प्रकार प्रदेश में लोकतंत्र का गला घोंटने वाले इस बिल का भी विरोध करूँगा।

इस पत्र के माध्यम से मैं यह भी आपके ध्यान में लाना चाहता हूँ कि इतिहास इस बात का साक्षी है कि समय बदलता है और आज के दम्भी, स्वेच्छाचारी, और क्रूर मानसिकता के शासक कल दया की भीख माँगते नज़र आते हैं। जितना मुझमें बल है उतना मैं मेरे और मेरे परिवार की मानव-गरिमा की रक्षा के लिए, प्रदेश की जनता के हितों के लिए, और राजनीति में श्रेष्ठ सिद्धांतों और आदर्शों की रक्षा और स्थापना के लिए अपनी लड़ाई लड़ता रहूँगा। बाक़ी मैं ईश्वर की सत्ता में विश्वास करता हूँ, मेरा भरोसा और मेरी आत्यन्तिक निष्ठा भगवान और उनके शासन में है। मैं कुछ कमज़ोर सत्तालोलुप नेताओं के जैसे राजसत्ता के मद और निजी स्वार्थ में डूबी इस क्षुद्र मानसिकता की सरकार की नहीं ईश्वर के साम्राज्य की प्रजा हूँ। उस मेरे शासक से मैं प्रार्थना करता हूँ कि मेरे और मेरे परिवार के साथ अपनी राजनीतिक सत्ता का दुरुपयोग करते हुए जिस प्रकार का वैमनस्यता और दुर्भावनापूर्ण व्यवहार ये कर रही हैं उसके लिए इन्हें क्षमा करे और इन पर कृपा दृष्टि बनाए रखे। लेकिन प्रदेश की सात करोड़ जनता के भाग्य और भविष्य के साथ जो जिस प्रकार का खिलवाड़ इन्होंने और इनके साथ जुड़े चंद स्वार्थी तत्वों नें किया है उसके लिए मैं प्रदेश की जनता की ओर से मैं ईश्वर से न्याय की माँग करता हूँ और प्रार्थना करता हूँ कि आने वाले समय में वे ऐसा विधान करें कि भविष्य में कोई व्यक्ति सत्ता में बैठ कर इनके कार्यों का अनुसरण करने की सोच भी अपने मन में ना लाए।

आपके समारोह के लिए शुभकामनाओं सहित।

घनश्याम तिवाड़ी

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