“साहित्य शिरोमणि सम्मान” से श्रीमती देवी नागरानी सम्मानित

DharwaadKim30-31 आक्टोबर – 2014 , को कर्नाटक विश्वविद्यालय (धारवाड़) अयोध्या शोध संस्थान (अयोध्या) और साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था(उल्हासनगर) के संयुक्त तत्वावधान में धारवाड में समकालीन हिंदी साहित्य की चुनौतियाँ’ विषयक द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया. कार्यक्रम के आगाज में दीप प्रज्वलन व सरस्वती वंदना की परंपरा संगीत विभाग के विद्यर्थियों द्वारा निभाई गई। पुष्प गुच्छ से महानुभूतियों का स्वागत किया गया। उदघाटन भाषण में श्रीमती देवी नागरानी जी ने विदेश में हिन्दी के उज्वल भविष्य की दिशा में हो रहे प्रयासों का विवरण दिया जो संस्थागत, व्यक्तिगत रूप में हिन्दी को अंतरार्ष्ट्रीय मंच पर स्थापित करने की पहल कर रहे हैं। कर्नाटक विश्वविध्यालय, धारवाड़, ने श्रीमती देवी नागरानी को “साहित्य शिरोमणि सम्मान” से सम्मानित किया।

उद्घाटन सत्र की मुख्य अतिथि अमेरिका से पधारी देवी नागरानी थीं. विशिष्ट अतिथियों में डॉ. विनय कुमार (हिंदी विभागाध्यक्ष, गया कॉलेज), डॉ. योगेंद्र प्रताप सिंह (निदेशक, अयोध्या शोध संस्थान, अयोध्या), डॉ. प्रदीप कुमार सिंह (सचिव, साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था, उल्हासनगर), डॉ. राम आह्लाद चौधरी (पूर्व अध्यक्ष, हिंदी विभाग, कोलकाता), डॉ. प्रभा भट्ट (अध्यक्ष, हिंदी विभाग, कर्नाटक विश्वविद्यालय), डॉ. एस. के. पवार (कर्नाटक विश्वविद्यालय) और डॉ. बी. एम. मद्री (कर्नाटक विश्वविद्यालय) शामिल थे.

उद्घाटन भाषण में देवी नागरानी ने कहा कि उन्हें भारत और अमेरिका में कोई विशेष अंतर नहीं दीखता क्योंकि जब कोई भारत से विदेश में जाते हैं तो वे सभ्यता, संस्कृति और संस्कार को भी अपने साँसों में बसाकर ले जाते हैं. एक हिंदुस्तानी जहाँ जहाँ खड़ा होता है वहाँ वहाँ एक छोटा सा हिंदुस्तान बसता है. उन्होंने भाषा और संस्कृति के बीच निहित संबंध को रेखांकित करते हुए कहा कि विदेशों में तो ‘हाय, बाय और सी यू लेटर’ की संस्कृति है जबकि हमारे भारत में विनम्रता से अभिवादन करने का रिवाज है. लेकिन आजकल यहाँ कुछ तथाकथित लोग विदेशी संस्कृति को अपनाकर हमारी संस्कृति की उपेक्षा कर रहे हैं जबकि विदेशों में बसे प्रवासी भारतीय अपनी भाषा और संस्कृति को बचाए रखने के लिए पुरजोर कोशिश कर रहे हैं.

महत्वपूर्ण बात यह की संक्षिप्त समय में भी समकालीन साहित्य पर प्रपत्र पढे गए व आलेख एक संग्रह -“समकालीन हिन्दी साहित्य की चुनौतियाँ” के रूप में आया जिसका लोकार्पन पहले सत्र में हुआ। 432 पन्नों का यह संदर्भ ग्रंथ जिसमें 122 प्रपत्र एक तार में पिरोकर सँजोये गए हैं , यह एक उपलब्धि है जिसका श्रेय जाता है प्रधान संपादक-डॉ. प्रदीप कुमार सिह , डॉ. वियनी कुमार, डॉ. भगवती प्रसाद उपाध्याय, डॉ. एस. के. पवार, प्रो. प्रभा भट्ट- , प्रो. बी. एम. मद्री जी व समस्त संपादकीय मण्डल को !  

      अध्यक्ष प्रो. चंद्रमा कणगलि की उपस्थिती में बीज वक्तव्य श्री राम अल्हाद (कलकता) ने प्रस्तुत किया। मंच पर उपस्थित शिरोमणि रहे डॉ. योगेंद्रप्रताप सिंह (अयोध्या), डॉ. विनय कुमार (गया) , डॉ. प्रदीप कुमार,(मुंबई), डॉ. एस. के. पवार (धारवाड़), प्रो. प्रभा भट्ट- अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, कर्नाटक विश्वविध्यालय, धारवाड़, प्रो. बी. एम. मद्री-निदेशक अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी, कर्नाटक विश्वविध्यालय, धारवाड़, संचालन को बखूबी निभाया डॉ. भगवती प्रसाद उपाध्याय ने।

      साहित्य को अंधेरा चीरने वाला प्रकाश बताते हुए डॉ. राम अह्लाद चौधरी ने कहा कि ‘आज प्रतिकूल परिस्थितियों को अनुकूल बनाने की चुनौती साहित्यकारों के समक्ष है. भारतीय साहित्य में इतिहास, दर्शन और परंपरा का संगम होता है. लेकिन आज के साहित्य में यह संगम सिकुड़ता जा रहा है. समाकीलन साहित्य के सामने एक और खतरा है अभिव्यक्ति का खतरा. गंभीरता और जिम्मेदारी पर आज प्रश्न चिह्न लग रहा है क्योंकि सही मायने में साहित्य के अंतर्गत लोकतंत्र का विस्तार नहीं हो रहा है. हाशियाकृत समाजों को केंद्र में लाना भी आज के साहित्य के समक्ष चुनौती का कार्य है.

      इस दो दिवसीय संगोष्ठी में छः सत्रों के अंतर्गत समकालीन साहित्य पर प्रपत्र पढे गए व अध्यक्षीय भाषण के दौरान चर्चा भी हुई। विषय रहे –समकालीन हिन्दी कविता, राम कथा की प्रासंगिता, समकालीन हिन्दी नाटक, समकालीन उपन्यास, समकालीन कहानी साहित्य, समकालीन हिन्दी उपन्यास साहित्य, समकालीन हिन्दी कहानी।

      इन विषयों पर अध्यक्षता के अंतरगत प्रपत्रवाचक समस्त भारत से शामिल रहे- प्रमुख वक्ता,  श्री राम परिहार (खंडवा, म. प्र.), डॉ. प्रतिभा मुदलियार (मैसूर), डॉ. ऋषभदेव शर्मा (हैदराबाद), डॉ. कविता रेगे (मुंबई), डॉ. भारतसिंह (बिहार), डॉ. आर. एस. सरज्जू (हैदराबाद), डॉ. उमा हेगड़े (शिमोगा) डॉ.  एम.एस. हुलगूर, डॉ. मधुकर पाडवी (गुजरात),डॉ. अनिल सिंध (मुंबई), डॉ. नारायण (तिरुपति), डॉ. रोहितश्व शर्मा(गोवा), डॉ. अर्जुन चौहान (कोल्हापुर), डॉ. उत्तम भाई पटेल (सूरत),डॉ. चंद्रशेखर रेड्डी (तिरुपति), डॉ. को. जो. किम (दक्षिण कोरिया), प्रो. परिमाला अंबेडकर (गुलबर्गा), डॉ. बी. बी. ख्रोत (धारवाड़), डॉ. बाबू जोसफ (कोटयम)॥

      समापन समारोह के दौरान विद्वानों का सम्मान किया गया –डॉ एस. एस. चुलकिमठ,  डॉ. देवी नागरानी,  डॉ. कविता रेगे, डॉ. को. जो. किम, डॉ. आर. टी. भट्ट, डॉ. टी. वी. कट्टीमनी, डॉ. सुमंगला मुमिगट्टी,एवं श्री परसमल जैन ! इस वैभवपूर्ण एवं विशाल समारोह की संपन्नता सदा नींव का निर्माण बन कर याद रहेगी।
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