यानि बिना आगा-पीछा सोचे लागू कर दी जीएसटी

तेजवानी गिरधर
तेजवानी गिरधर
जिस प्रकार बिना किसी तैयारी के केन्द्र सरकार ने नोटबंदी लागू की और करोड़ों लोग परेशान हुए, ठीक वैसे ही जीएसटी को लागू करने से पहले भी इससे होने वाली दिक्कतों पर गौर नहीं किया गया, जिसकी वजह से व्यापारी व आम आदमी हक्का-बक्का है। जैसे नोटबंदी के कारण बैंकों के बाहर लंबी लाइनें लगने पर भाजपा को आम आदमी के कष्ट का ख्याल आया और छाया व पानी का प्रबंध करना पड़ा, उसी प्रकार अब जबकि जीएसटी लागू हो चुकी है, भाजपा व्यापारियों को समझाने में लगी हुई है। सवाल ये उठता है कि क्या सरकार यह पहले नहीं सूझा कि जीएसटी लागू करने से पहले हर किस्म व्यापारियों को संतुष्ट करे? अब संगठन के जरिये समझाइश की नौबत ही नहीं आती।
नोटबंदी में तो चलो अचानक निर्णय लेना था, इस कारण यह चूक हो गई कि बैंकों के बाहर लंबी लाइनें लगने का अनुमान नहीं था, मगर जीएसटी के मामले में तो इसे लागू किए जाने से पहले ही विरोध शुरू गया था, फिर भी उसका निराकरण किए बिना जीएसटी को लागू कर दिया गया। स्थिति ये है कि भाजपा को समझाइश करनी पड़ रही है। शहर भाजपा और विभिन्न व्यापारिक संगठन, सामाजिक संगठन, बुद्धिजीवियों एवं उत्पादकों की जीएसटी को लेकर सेमिनार का भी आयोजन हुआ, और भ्रांतियों को दूर करने की कोशिश की गई। इतना ही नहीं व्यापारियों से सुझाव भी आमंत्रित किए गये। ये दोनों काम जीएसटी लागू करने से पहले भी हो सकते थे। व्यापारी तो विरोध प्रदर्शन के दौरान सुझाव दे ही रहे थे, मगर उन्हें सुनने वाला ही कोई नहीं था।
भाजपा ही क्यों, जिला प्रशासन को भी समझाइश के काम में लगाया गया है। जिला कलक्टर श्री गौरव गोयल की अध्यक्षता में जीएसटी पर कार्यशाला आयोजित की गई, जिसमें उद्यमियों, व्यापारियों एवं उत्पादकों की जीएसटी के संबंध में जिज्ञासाओं का समाधान करने का प्रयास किया गया। गोयल ने कहा कि विभिन्न व्यापारिक संगठनों एवं प्रतिनिधियों के द्वारा दिए गए सुझावों तथा कठिनाइयों से उच्च स्तर पर अवगत कराया गया है। मुख्यमंत्री के द्वारा जीएसटी के अन्तर्गत मार्बल एवं ग्रेनाइट के कर के संबंध में जीएसटी काउंसिल को प्रकरण विचारार्थ भेजा गया है। उन्होंने कहा कि जीएसटी के संबंध में व्यवसाइयों के सुझावों का सरकार द्वारा हमेशा स्वागत किया जाएगा। स्पष्ट है कि जिला प्रशासन व राज्य सरकार भी समझ रही है कि कहीं न कहीं त्रुटि रह गई है, इसी कारण तो वे काउंसिल को प्रकरण भेजने की कह रहे हैं।
बहरहाल, एक ओर जहां समझाइश का दौर चल रहा है तो दूसरी ओर विरोध है कि थमने का नाम नहीं ले रहा। ऑल पेट्रोलियम डीलर्स एसोसिएशन ने सरकार द्वारा लागू की गई प्रतिदिन मूल्य बदलाव योजना एवं डीलर्स के वार्षिक टन ओवर को जीएसटी में लिए जाने के विरोध में देशभर में पेट्रोल, डीजल और ऑयल नहीं खरीदने का निर्णय लिया है। इसके चलते 5 जुलाई से सभी डीलर्स डिपो से माल नहीं खरीदेंगे। 12 जुलाई को प्रदेशभर में पंप मालिक हड़ताल पर रहेंगे।
इसी प्रकार राजस्थान व्यापार महासंघ के आह्वान पर अजमेर वस्त्र व्यापारिक संघ ने भी कपड़े पर जीएसटी लगाने एवं सूरत के व्यापारियों पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज के विरोध में अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने का फैसला किया है।
मार्बल व्यवसाइयों ने जरूर मुख्यमंत्री से मिलने के बाद हड़ताल समाप्त कर दी, मगर वह भी तब जबकि उन्होंने यह आश्वासन दिया कि केंद्र सरकार व जीएसटी काउंसिल के समक्ष इस मसले को उठाकर मार्बल व्यवसायियों को राहत दिलाई जाएगी। सवाल ये कि उनको राहत मिलेगी या नहीं, ये तो बाद की बात है, मगर हड़ताल की वजह से जो नुकसान हुआ, उसकी भरपाई कौन करेगा?
जो भी हो, सरकार भले ही जीएसटी को आजादी के बाद सबसे बड़ा कर एवं आर्थिक सुधार बता रही है, मगर बावजदू इसके देशभर के मध्यम व छोटे कारोबारी परेशान हैं। यह कैसा लोकतंत्र है, जिसमें आमजन को संतुष्ट किए बिना कदम उठाया जा रहा है, उसे तानाशाहीपूर्ण कदम कहने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए?
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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