हिंदी का राष्ट्रिय स्वरुप राजस्थानी की मान्यता के बिना संभव नहीं-कविया

IMG_7453बाड़मेर / अखिल  भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के संस्थापक लक्ष्मण दान कविया ने कहा की हिंदी को राष्ट्रिय दर्जा राजस्थानी भाषा को मान्यता के बिना संभव नहीं। राजस्थानी भाषा का हम अपना भाषाई अधिकार लेके रहेंगे। कविया सोमवार को बाड़मेर में अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति बाड़मेर द्वाका स्थानीय डाक बंगलो में आयोजित जिला स्तरीय सम्मलेन को सम्बोधित कर रहे थे ,उन्होंने कहा की हिंदी का इतिहास दौ सौ साल का हे जबकि राजस्थानी भाषा मुग़ल काल के समय से समृद्ध भाषा हैं ,उन्होंने कहा की बड़ी पीड़ा हे की छोटी बहन को सिरमौर कर दिया बड़ी बहन को बेघर ,उन्होंने कहा अब राजस्थानी जाग उठा हैं। राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाकर हम अपने हक़ किसी और को छीनने नहीं देंगे ,उन्होंने कहा की बाहरी हिंदी भाषी प्रांतो से आये अधिकारीगण राजस्थानी भाषा को मान्यता मिलाने में अड़ंगे दाल रहे हैं ,उन्होंने साफ़ कहा की अब राजस्थान का युवा अपनी मातृ भाषा का जीवन के विकास में महत्त्व को अच्छी तरह समझ गया हैं ,अब मान्यता के लिए आरपार की लड़ाई लड़ेंगे ,उन्होंने कहा की सरकार ने बन्दुक की नौक पर बोडो को मान्यता दी ,अगर सरकार बन्दुक की भाषा समझती हे तो हम उसके लिए तैयार हैं ,.सम्मलेन को सम्बोधित करते हुए  शिक्षाविद देवी सिंह चौधरी ने कहा की राजस्थानी भाषा के  समृद्ध साहित्य और इतिहास को आम लोगो और नयी पीढ़ी के बीच पहुँचाने की आवश्यकता हैं ,उन्होंने कहा की राजस्थानी भाषा के कई ख्यातिनाम कवि साहित्यकार मालानी की धरा में हुए हैं मगर आज की पीढ़ी इससे अनजान हैं ,  सम्मलेन को सम्बोधित करते हुए प्रदेश उप पाटवी चन्दन सिंह भाटी ने कहा की राजस्थानी भाषा को मान्यता के आंदोलन की लौ अब बढ़ चुकी हैं ,उन्होंने कहा की सरकार को आगे आकर भोजपुरी और राजस्थानी को मान्यता दे देनी चाहिए ,इस अवसर पर सोनाराम बेनीवाल ,मूलाराम भाम्भू ,रिडमल  सिंह दांता ,इन्द्र प्रकाश पुरोहित ,  डॉ लक्ष्मी नारायण जोशी ,डॉ हरपाल राव ,महेश दादानी ,दुरजन सिंह गड़ीसर ने भी सम्बोधित किया ,इससे पूर्व संस्थापक लक्ष्मण  का स्वागत और सम्मान किया गया ,सम्मलेन में हिन्दू सिंह तामलोर ,भोम सिंह बलाई ,रमेश सिंह इन्दा ,जीतेन्द्र फुलवरिया ,काबुल खान ,खेतमल तातेड ,मुबारक खान ,जगदीश पुरोहित ,सहित कई कार्यकर्ता और पदाधिकारी उपश्थित थे ,कार्यक्रम  सञ्चालन रघुवीर सिंह तामलोर ने किया ,

chandan singh bhati 

1 thought on “हिंदी का राष्ट्रिय स्वरुप राजस्थानी की मान्यता के बिना संभव नहीं-कविया”

  1. १. राजस्थानी, कन्नौजी, बॄज, अवधी, मगही, भोजपुरी, अंगिका, बज्जिका और अन्य शताधिक भाषायें आधुनिक हिंदी के पहले प्रचलित रही हैं. क्या इन सबको राष्ट्र्भाषा बनाया जा सकता है?
    २. राजस्थानी कौन सी भाषा है? राजस्थान में मारवाड़ी, मेवाड़ी, शेखावाटी, हाड़ौती आदि सौ से अधिक भाषायें बोली जा रही हैं. क्या इन सबका मिश्रित रूप राजस्थानी है?
    ३. हिंदी ने कभी किसी भाषा का विरोध नहीं किया. अंग्रेजी का भी नहीं. हिन्दी की अपनी विशेषतायें हैं. राजस्थानी को हिंदी का स्थान दिया जाए तो क्या देश के अन्य राज्य उसे मान लेंगे? क्या विश्व स्तर पर राजस्थानी भारत की भाषा के तौर पर स्वीकार्य होगी?
    जैसे घर में दादी सास, चाची सास, सास आदि के रहने पर भी बहू अधिक सक्रिय होती है वैसे ही हिन्दी अपने पहले की सब भाषाओं का सम्मान करते हुए भी व्यवहार में अधिक लायी जा रही है.
    ४. निस्संदेह हिन्दी ने शब्द संपदा सभी पूर्व भाषाओं से ग्रहण की
    है.
    ५. आज आवश्यकता हिन्दी में सभी भाषाओं के साहित्य को जोड़्ने की है.
    ६. म. गांधी ने क्रमशः भारत की सभी भाषाओं को देवनागरी में लिखे जाने का सुझाव दिया था. राजनीतिक स्वार्थों ने उनके निधन की बाद ऐसा नहीं होने दिया और भाषाई विवाद पैदा किये. अब भी ऐसा हो सके तो सभी भारतीय भाषायें संस्कृत की प्रृष्ठ भूमि और समान शब्द संपदा के कारण समझी जा सकेंगी.

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