देष के साथ-साथ समाज को भी स्वच्छ रखे

IMG-20170526-WA0007बीकानेर – जैनाचार्य श्री दिव्यानन्द सूरीष्वर जी महाराज सा. (निराले बाबा) के पावन सानिध्य में स्थानीय नाहटा मोहल्ला स्थित श्री जिन कुषल भवन में अपनी चर्चा का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में रमेष भोजक (रामजी) ने कहा कि हमे षहर ग्राम नगर देष को स्वच्छ रखने के साथ-साथ समाज को भी स्वच्छ रखे जिस हेतु संत समय समय पर पधार कर हमारा मार्गदर्षन करते रहते है। लेकिन कुछ पदाधिकारी अपनी पद लोलुपता के कारण समाज में अषुद्ध वातावरण का संचार हो जाता है। इस अवसर पर साक्षी जैन ने कहा हर व्यक्ति में किसी न किसी प्रकार के अच्छे गुण विधमान रहते हैं परंतु उनके दुर्गुणों के कारण अच्छे गुण प्रदर्षित नही होते ऐसे में निकटतम व्यक्ति को उसके अच्छे गुणों की प्रषंसा कर उनके दुर्गुणों को समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए।
कोमल पारख ने कहा आज के इस युग में बेटियों को कम न समझे वह भी बेटों के बराबर अपने परिवार के लिए मददगार साबित हो सकती है चाहे वह किसी भी प्रकार का क्षेत्र क्यों न हो। परंतु समाज के कुछ प्रतिश्ठित लोगों की मान्यता पुरूश प्रधानता के कारण बेटियों को आगे बढने से रोक दिया जाता है। पूजा डागा ने कहा बेटियों को काबिल ओर होनहार बनायें ताकि वे समाज को देष को जागरूक कर उन्नती के मार्ग में अपनी अहम भुमिका अदा कर सके। पवन कोठारी ने देष की बेरोजगारी की समस्या पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा जब तक इस समस्या का निदान नही होगा तब तक हमारी षिक्षण व्यवस्था की चरम सीमा का कोई औचिंत्य नहीं हैं। गजेन्द्र डागा ने कहा कि आज आध्यात्मिक षिक्षा का विघटन होता जा रहा है ऐसे में स्कूलो में व्यवहारिक ज्ञान के साथ साथ आध्यात्मिक ज्ञान की भी क्लासेज लगने चाहिए।
सिद्धार्थ नाहटा ने कहा आज की सबसे बड़ी समस्या पानी की है उसके लिए मिडिया भी समय समय पर हमे जागरूक करती रहती है परंतु यदि हमने बचत प्रारम्भ नही की तो विनाष का कारण जल की कमी होगी क्योंकि जल है तो कल है। रोहित नाहटा ने कहा केवल भारत की ही नहीं बल्कि विष्व के प्रत्येक देष की अहम समस्या जल है पुरा विष्व इस समस्या से चिंतित है हल केवल जल सरंक्षण है।
इस अवसर पर श्री निराले बाबा ने कहा कि भक्ति और ध्यान दोनों ही षुद्ध मन के भूषण है। ये तभी मिलते है जब मानव का अतःकरण षुद्ध होता है। जब तक मानव का आहर-विहार, व्यवहार-विचार षुद्ध नहीं होगा तब तक उसे ध्यान व भक्ति का मार्ग नहीं मिलेगा व नहीं उसका ध्यान का ध्येय सिद्ध होगा। भक्त की कितनी श्रद्धा है व उसका अपने आराध्य के प्रति कितना विष्वास है। उससे मानव के मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग आसान हो जाता है। आज के युग की भागदौड़ वाली जीवन षैली में संसार में अगर कोई परम षांति की तलाष में है तो उसका सीधा मार्ग भक्ति व अपने आराध्य पर अटूट विष्वास ही है। यह तभी हो सकता है जब मानव की प्रत्येक क्रिया व कर्म अपने आराध्य के लिये हो।
उन्होंने कहा कि मनुष्य को कर्म का फल भुगतना पड़ता है। इससे तो काल पुरूष साक्षात प्रभु भी वंचित नहीं रहे है। आज जो बना है उसका बिगड़ना या मिटना सत्य है। उसी प्रकार जैसे षाष्वत नियम है कि जो बनता है वह मिटता है। जिस जीव ने जिस लोक में जन्म लिया है वह अपने कर्मों व पुरूषार्थ को भोगता हुये इस संसार से अवष्य जायेगा। जीव के कर्म के अलावा कुछ भी स्थायी नहीं है। अगर कुछ स्थायी है तो वह उसकी भक्ति व परमात्मा के प्रति समर्पण है। मानव जीवन ही नहीं पूरी सृष्टि में यह नियम है कि जो संयोग है वहीं वियोग का आधार है। बनना-मिटना व संयोग-वियोग एक दूसरे के जुड़ी हुई क्रियाएं है। इसलिए इस नष्वर संसार में जब जीव इंद्रियों के वषीभूत होकर कुछ करते है तो वह तभी स्थायी हो सकता है जब वह अपने बनाने वाले परम प्रभु के लिये हो। यहीं मुक्ति का मार्ग है। यहीं प्रभु की आराधना का सरल रास्ता है।
इस अवसर पर विषिश्ठ व्यक्तियों का सम्मान समिति की ओर से किया।

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