अस्तित्व की महत्ता

चेटीचंड और सिंधी भाषा दिवस विशेष
सिंधी से अनूदित

मोहन थानवी
मोहन थानवी

-मोहन थानवी- संपूर्ण भारतवर्ष के साथ सिंधी समाज नव संवत् और चेटीचंड महोत्सव मना रहा है। प्रसन्नता की बात यह भी है कि हमारी मीठी मातृभाषा सिंधी भाषा का दिवस 10 अप्रैल भी चेटीचंड के साथ आता और मनाया जाता है। सिंधी भाषा दिवस एवं चेटीचंड मनाते हुए हम अपनी ही लय में, धुन में नाचते गाते हैं। होजमालो, आयो लाल झूलेलाल, ज्योतिनि वारो साईं आदि आदि गाते, छेज (डांडिया) करते अपनी खुशी जाहिर करते है। इस खुशी में विभिन्न समाजों के प्रतिनिधि व्यक्तित्वों को भी शामिल करते हैं। खुशी की बात यह भी है कि हम कष्टदायी वक्त में संघर्ष करते हुए भी अपने बुजुर्गों की विरासत को संरक्षित रखने के जज्बे के साथ विकसित हुए और समाजोत्थान में जुटे रहे है। किंतु, अपनी अंतर-आत्मा से पूछते हैं तो क्या आवाज नहीं आती कि इतने काम से हमारे समाज के अस्तित्व की महत्ता अन्यान्य समाजों तक नहीं पहुंच सकी है। इसका उदाहरण आज का मीडिया दिखा रहा है। समाचार पत्रों और टीवी चैनलों पर चेटीचंड के बारे में कम किंतु नव संवत संबंधी जानकारी को वरीयता से साझा किया जाता है। इसकी शिकायत भी कैसी ! व्यावसायिक नजरिये से ऐसा होना विसंगति नहीं कह सकते। वाजिब है। सिंधी समाज के अधिकांश लोगों का अस्तित्व व्यापारी-उद्यमी के रूप में सामने आता है। सिंधी समाज के लोग व्यापारी के रूप में प्रसिद्ध भी हैं। व्यापारी अपनी परंपराओं, संस्कृति, रीति-रिवाज और खान-पान को व्यापार में निश्चय ही शामिल नहीं करते परंतु… बाजारवाद ऐसा करा रहा है। चेटीचंड या हमारे समाज की सांस्कृतिक-धार्मिक गतिविधियों को प्रचारित होने-न-होने की बात को बिसार भी दें तब भी सामाजिक जीवन में बाजारवाद का प्रभाव हमारे अस्तित्व पर तो है ही, इस सचाई को नकार नहीं सकते। अस्तित्व की महत्ता व्यापार से नहीं बनती किंतु व्यापार से अपना अलहदा अस्तित्व हमने बना कर दिखाया है। प्रश्न यह भी मुंह-बाए सामने आता है कि दिखाई दे रहे इस अस्तित्व में हमारे समग्र समाज के महत्वपूर्ण अंग भी शामिल है ? मंथन करें। क्या नई युवा पीढ़ी को चेटीचंड के बारे में वांछित समस्त जानकारी है? क्या हमें भी सिंधी समाज के समग्र स्वरूप के बारे में मालूमात है। सारी दुनिया की बात करेंगे तो कुछ हाथ नहीं आ सकता क्यों कि हमें तो अपने आस-पास, दाएं-बाएं के घटनाक्रम के बारे में जानकारी नहीं रहती। राजस्थान की बात करें। यहां सिंधी बोली, भाषा, साहित्य, कला-संस्कृति के संवर्धन-संरक्षण के लिए अकादमी का अस्तित्व में होने के कारण युवा पीढ़ी में सिंधीयत के प्रति किसी हद तक जागरूकता है। इसके बावजूद क्या हम राजस्थान के सिंधी बाहुल्य क्षेत्र बाड़मेर से संबंधित पूरी जानकारी रखते हैं ? बाड़मेर में सिंधी गौरव पुस्तक दिसंबर 2013 में लोकार्पित हुई थी, इसकी सूचना भी हम सभी को नहीं मिल सकी। सिंधी भाषा दिवस को मनाते समय तो ऐसी महत्वपूर्ण पुस्तकों के बारे में हमें जानकारी होनी ही चाहिए। कुछ समय पूर्व किसी फाइनेंस कंपनी के कर्ज से दबे एक युवक ने गोवा में अपनी इहलीला खत्म की, इस प्रकरण पर रोष प्रकट करते हुए बाड़मेर सिंधी समाज ने विरोध भी जताया। परंतु क्या हम तक ऐसे समाचार पहुंचे? सिंधी अखबारों में तो नहीं लेकिन हिंदी दैनिक समाचार पत्रों में अवश्य इस समाचार ने स्थान प्राप्त किया था। बाड़मेर ंिसंधी कला संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है किंतु क्या यह हम सभी को मालूम है कि सिंधी मुस्लिम औरतें चूड़े को सुहाग का प्रतीक मानती हैं? श्रृंगार में चूड़ा एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, यह जानकारी तो हम सभी को होगी। किंतु हरमुचो के बारे में कितनों को जानकारी है? हरमुचो सिंधी कशीदाकार कलाकारों की हस्तकला का बेहतरीन नमूना है जो बीकानेर-जैसलमेर क्षेत्र में भी दिखाई देता है। इन सिंधी कलाकारों द्वारा तीज-त्योहार और चेटीचंड महोत्सव कैसे मनाया जाता है? सिंधी मुस्लिम समाज द्वारा सिंधी लोकगीत, सिंधी लोकनृत्य, सिंधी नाटक, सिंधी बोली भाषा कैसे संरक्षित संवर्धित की जा रही है? उनकी सिंधी बोली, भाषा-साहित्य के संबंध में हम सभी तक संपूर्ण जानकारी नहीं पहुंच पाती है। सतपुड़ा, बाट, सीरा, ढेबरी (नमक-मिर्च का परांठा विशेष), आलू टिक्की विशेष, जिमीकंद टिक्की विशेष, मीठे चावल ताहिरी आदि सिंधी व्यंजनों, पकवानों को हम अपने ही घरों में बनाना बिसराते जा रहे हैं। खाते-पीते, नाचते-गाते, बजाते तो सभी समाजों द्वारा अपने उत्सव मनाए जाते है। तो क्या हम सिंधी समाज के सबसे बड़़े, प्रमुख महोत्सव चेटीचंड पर भी अपने सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक विरासत को भुलाते हुए मात्र लकीर पीटते जा रहे हैं। सिंधु भूमि से हमारे साथ मजबूरीवश निकले हुए, अपनी सिंध के अस्तित्व के महत्वपूर्ण भाग, सिंधी बोली से लगाव और प्रेम करने वाले मुस्लिम सिंधी समाज की महत्ता को भुला कर! विद्वानों का कहना है, बोली और अपने समग्र समाज को एक छोटे-से दायरे में बांध कर कोई भी व्यक्ति, समाज ज्यादा दूर तक नहीं दौड़ सकता। साथ चलना है, दौड़ कर आगे बढ़ना है तो अपने अस्तित्व को संरक्षित और संवर्धित करते चलना हमारी प्रथम वरीयता में शामिल होना चाहिए। अपने अस्तिव्त की महत्ता विभिन्न, समग्र समाजों को बताने-समझाने से पहले खुद हमें समझना जरूरी है। चेटीचंड यही आह्वान कर रहा है। उठो जागो तो अपनी इस सिंधु का निर्माण करें…।
पहिंजे वजूद जी अहमियत समूरे समाज खे बुधाइण-समझाइण खां अगु पाण असांखे समझणी जरूरी आहे। चेटीचंड ईओ ही आहवान करे रहियो आहे। उथो जागो त पहिंजी इनि सिंधु खे ठाहियूं…।

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