विभिन्न शिक्षाओं के योग

पंडित दयानन्द शास्त्री
पंडित दयानन्द शास्त्री

इंजीनियरिंग शिक्षा के कुछ योग –
1 जन्म, नवांश या चन्द्रलग्न से मंगल चतुर्थ स्थान में हो या चतुर्थेश मंगल की राशि में स्थित हो।
2 मंगल की चर्तुथ भाव या चतुर्थेश पर दृष्टि हो अथवा चतुर्थेश के साथ युति हो।
3 मंगल और बुध का पारस्परिक परिवर्तन योग हो अर्थात मंगल बुध की राशि में हो अथवा बुध मंगल की राशि में हो।

चिकित्सक शिक्षा के कुछ योग –
1 जैमिनि सूत्र के अनुसार चिकित्सा से सम्बन्धित कार्यो में बुध और शुक्र का विशेष महत्व हैं। ’’शुक्रन्दौ शुक्रदृष्टो रसवादी (1/2/86)’’ – यदि कारकांश में चन्द्रमा हो और उस पर शुक्र की दृष्टि हो तो रसायनशास्त्र को जानने वाला होता हैं। ’’ बुध दृष्टे भिषक ’’ (1/2/87) – यदि कारकांश में चन्द्रमा हो और उस पर बुध की दृष्टि हो तो वैद्य होता हैं।
2 जातक परिजात (अ.15/44) के अनुसार यदि लग्न या चन्द्र से दशम स्थान का स्वामी सूर्य के नवांश में हो तो जातक औषध या दवा से धन कमाता हैं। (अ.15/58) के अनुसार यदि चन्द्रमा से दशम में शुक्र – शनि हो तो वैद्य होता हैं।
3 वृहज्जातक (अ.10/2) के अनुसार लग्न, चन्द्र और सूर्य से दशम स्थान का स्वामी जिस नवांश में हो उसका स्वामी सूर्य हो तो जातक को औषध से धनप्राप्ति होती हैं। उत्तर कालामृत (अ. 5 श्लो. 6 व 18) से भी इसकी पुष्टि होती हैं।
4 फलदीपिका (5/2) के अनुसार सूर्य औषधि या औषधि सम्बन्धी कार्यो से आजीविका का सूचक हैं। यदि दशम भाव में हो तो जातक लक्ष्मीवान, बुद्धिमान और यशस्वी होता हैं (8/4) ज्योतिष के आधुनिक ग्रन्थों में अधिकांश ने चिकित्सा को सूर्य के अधिकार क्षेत्र में माना हैं और अन्य ग्रहों के योग से चिकित्सा – शिक्षा अथवा व्यवसाय के ग्रहयोग इस प्रकार बतलाए हैं –
सूर्य $ गुरू त्र फिजीशियन
सूर्य $ बुध त्र परामर्श देने वाला फिजीशियन
सूर्य $ मंगल त्र फिजीशियन
सूर्य $ शुक्र $ गुरू त्र मेटेर्निटी
सूर्य $ शुक्र $ मंगल $ शनि त्र वेनेरल
सूर्य $ शनि त्र हड्डी/दांत सम्बन्धी
सूर्य $ शुक्र $ बुध त्र कान, नाक, गला
सूर्य $ शुक्र $ राहु $ यूरेनस त्र एक्सरे
सूर्य $ युरेनस त्र शोध चिकित्सा
सूर्य $ चन्द्र $ बुध त्र उदर चिकित्सा, पाचनतन्त्र
सूर्य $ चन्द्र $ गुरू त्र हर्निया , एपेण्डिक्स
सूर्य $ शनि (चतुर्थ कारक) त्र टी0 बी0, अस्थमा
सूर्य $ शनि (पंचम कारक) त्र फिजीशियन

न्यायाधीश के कुछ योग –
1 यदि जन्मकुण्डली के किसी भाव में बुध-गुरू अथवा राहु-बुध की युति हो।
2 यदि गुरू, शुक्र एवं धनेश तीनों अपने मूल त्रिकोण अथवा उच्च राशि में केन्द्रस्थ अथवा त्रिकोणस्थ हो तथा सूर्य मंगल द्वारा दृष्ट हो तो जातक न्यायशास्त्र का ज्ञाता होता हैं।
3 यदि गुरू पंचमेश अथवा स्वराशि का हो और शनि व बुध द्वारा दृष्ट हो।
4 यदि लग्न, द्वितीय, तृतीय, नवम्, एकादश अथवा केन्द्र में वृश्चिक अथवा मकर राशि का शनि हो अथवा नवम भाव पर गुरू-चन्द्र की परस्पर दृष्टि हो।
5 यदि शनि से सप्तम में गुरू हो।
6 यदि सूर्य आत्मकारक ग्रह के साथ राशि अथवा नवमांश में हो।
7 यदि सप्तमेश नवम भाव में हो तथा नवमेश सप्तम भाव में हो।
8 यदि तृतीयेश, षष्ठेश, गुरू तथा दशम भाव – ये चारों बलवान हो।

शिक्षक के कुछ योग –
1 यदि चन्द्रलग्न एवं जन्मलग्न से पंचमेश बुध, गुरू तथा शुक्र के साथ लग्न चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम अथवा दशम भाव में स्थित हो।
2 यदि चतुर्थेश चतुर्थ भाव में हो अथवा चतुर्थ भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो अथवा चतुर्थ भाव में शुभ ग्रह स्थित हो।
3 यदि पंचमेश स्वगृही, मित्रगृही, उच्चराशिस्थ अथवा बली होकर चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम अथवा दशम भाव में स्थित हो और दशमेश का एकादशेश से सम्बन्ध हो।
4 यदि पंचम भाव में सूर्य-मंगल की युति हो अथवा राहु, शनि, शुक्र में से कोई ग्रह पंचम भाव में बैठा हो और उस पर पापग्रह की दृष्टि भी हो तो जातक अंग्रेजी भाषा का विद्वान अथवा अध्यापक होता हैं।
5 यदि पंचमेश बुध, शुक्र से युक्त अथवा दृष्ट हो अथवा पंचमेश जिस भाव में हो उस भाव के स्वामी पर शुभग्रह की दृष्टि हो अथवा उसके दोनों ओर शुभग्रह बैठें हो।
6 यदि बुध पंचम भाव में अपनी स्वराशि अथवा उच्चराशि में स्थित हो।
7 यदि द्वितीय भाव में गुरू या उच्चस्थ सूर्य, बुध अथवा शनि हो तो जातक विद्वान एवं सुवक्ता होता हैं।
8 यदि बृहस्पति ग्रह चन्द्र, बुध अथवा शुक्र के साथ शुभ स्थान में स्थित होकर पंचम एवं दशम भाव से सम्बन्धित हो।
9 सूर्य,चन्द्र और लग्न मिथुन,कन्या या धन राशि में हो व नवम तथा पंचम भाव शुभ व बली ग्रहों से युक्त हो ।
10 ज्योतिष शास्त्रीय ग्रन्थों में सरस्वती योग शारदा योग, कलानिधि योग, चामर योग, भास्कर योग, मत्स्य योग आदि विशिष्ट योगों का उल्लेख हैं। अगर जातक की कुण्डली में इनमे से कोई योग हो तो वह विद्वान अनेक शास्त्रों का ज्ञाता, यशस्वी एवं धनी होता है।

निम्नलिखित ग्रहयोगों वाले जातक को व्यापार या उद्योग सफलता अथवा धनप्राप्ति होती हैं –
1 अगर एकादशेश द्वितीय भाव में द्वितीयेश के साथ हो या द्वितीयेश एकादश भाव में एकादशेश के साथ स्थित हो या द्वितीयेश और एकादशेश का पारस्परिक परिवर्तन योग या एक पर दूसरे की शुभ दृष्टि हो।
2 उपरोक्त प्रकार से दशमेश और एकादशेश या सप्तमेश और एकादशेश या सप्तमेश और दशमेश या द्वितीयेश और सप्तमेश का सम्बन्ध हो।
3 यदि बुध सप्तम अथवा दशम भाव में उच्च अथवा स्वराशि में स्थित हो।
4 यदि चतुर्थेश मंगल के साथ हो या दोनों एक-दूसरे को देखते हो।
5 बुध सप्तम भाव में हो और सप्तमेश द्वितीय भाव में हो या द्वितीयेश बुध के साथ सप्तम भाव में या सप्तमेश बुध के साथ द्वितीय भाव में हो।
6 यदि बुध और शुक्र की द्वितीय या सप्तम भाव में युति हो।
7 द्वितीयेश पर बुध की पूर्ण दृष्टि हो।
8 यदि द्वितीय, सप्तम, दशम और एकादश भाव के स्वामियों का पारस्परिक शुभ सम्बन्ध हो और वे बुध और बृहस्पति से प्रभावित हो।
इसके अलावा प्राचीन ज्योतिष ग्रन्थों में अनेक धनदायक विशिष्ट योगों का उल्लेख हैं – जैसे गजकेशरी योग, सम्पति योग, महाभाग्य योग, पुष्कल श्रीयोग, श्रीमुख योग, धनसुख योग, धनाध्यक्ष योग, वसुमति योग आदि। व्यापार या उद्योग करने वाले जातक की कुण्डली में इनमें से कोई योग हो तो वे जातक को धनी बनाते हैं और व्यापार में सफलता के सूचक सिद्ध होते हैं यदि जातक की कुण्डली में नीचभंग राजयोग, विपरीत राजयोग, अधियोग अथवा अन्य कोई राजयोग हो तो वह जातक को धनी बनाने में सहायक होता हैं।

पं0 दयानन्द शास्त्री
विनायक वास्तु एस्ट्रो शोध संस्थान ,
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