जहॉ तक हमारा विचार है , ज्योतिष शास्त्र में ऐसा कोई भी सिद्धांत विकसित नहीं किया जा सकता है ,जिससे विवाह उम्र की निश्चित जानकारी प्राप्त हो सके । इसका कारण यह है कि विवाह उम्र के निर्धारण में परिवार ,समाज ,युग ,वातावरण और परिस्थितियों की भूमिका ग्रह-नक्षत्र से अधिक महत्वपूर्ण होती है। प्राचीनकाल में भी वही 12 राशियां होती थीं ,वही नवग्रह हुआ करते थें, दशाकाल का गणित वही था ,उसी के अनुसार जन्मपत्र बनते थे । उस समय विवाह की उम्र 5 वर्ष से भी कम होती थी , फिर क्रमश: बढ़ती हुई 10.15.20.25.से 30 वर्ष तक हो गयी है । अभी भी अनेक जन-जातियों में बाल-विवाह की प्रथा है। क्या उस समाज में विशेष राशियों और नक्षत्रों के आधार पर जन्मपत्र बनते हैं ? यदि नही तो यह अंतर क्यों ? इसलिए हमारी धारणा है कि किसी व्यक्ति के जन्म के समय ही उसके विवाह वर्ष को नहीं बतलाया जा सकता । हॉ , परिवार ,समाज और युग का अनुमान लगाते हुए ग्रहों के प्रभाव के सापेक्ष विवाह समय की जानकारी किसी हद तक अवश्य दी जा सकती है।
आज भारतवर्ष में मध्यमवर्गीय और उच्चवर्गीय परिवारों में युवतियों के विवाह की उम्र 20 वर्ष से 25 वर्ष और युवकों के विवाह की उम्र 25 वर्ष से 30 वर्ष बिल्कुल सामान्य हो गयी है। इससे पूर्व इनके विवाह की बात सोंची भी नहीं जाती है। यदि युवकों के विवाह 30 वर्ष के पश्चात् एवं युवतियों के 25 वर्ष के पश्चात् हों तो आज की परिस्थिति में विवाह में विलम्ब कहा जा सकता है । इस लेख को लिखने के पूर्व हमने अनेक जन्मपत्रियों का विस्तृत अध्ययन किया। हमने पाया कि जिन युवतियों के सातवें भाव का स्वामी बुध काफी मजबूत हो या सातवीं राशि में मजबूत बुध की उपस्थिति हो या सातवें राशीश के साथ मजबूत बुध की घनिष्ठता या परस्पर विपर्यय हो तो उन युवतियों का विवाह जल्द हो जाता है।विवाह के पश्चात् उन्हें अच्छा माहौल ,हर प्रकार की सुख सुविधा ,प्रतिष्ठा और प्यार मिल पाता है तथा विवाह के प्रारंभिक वर्षों में वे सुखी होती हैं। इसके विपरीत , जिन युवतियों के सातवें भाव का स्वामी बुध काफी कमजोर हो या सातवीं राशि में कमजोर बुध की उपस्थिति हो या सातवें राशीश के साथ कमजोर बुध की घनिष्ठता या परस्पर विपर्यय हो तो उन युवतियों का विवाह जल्द हो जाता है। विवाह के पश्चात् घर-गृहस्थी में अनेक प्रकार की समस्याएं और कष्ट दिखाई पड़ते हैं तथा विवाह के प्रारंभिक वर्षों में वे दाम्पत्य सुख में कमी प्राप्त करती हैं।
जिन युवकों एवं युवतियों के सातवें भाव का स्वामी कमजोर मंगल हो या या सातवें भाव में कमजोर मंगल की उपस्थिति हो या सप्तमेश के साथ कमजोर मंगल की घनिष्ठता या परस्पर विपर्यय हो तो उनके विवाह में देर होने की भी संभावना होती है या जल्दी विवाह हो भी जाए तो 30 वर्ष की उम्र तक दाम्पत्य जीवन कमजोर बना रहता है। 30 वर्ष की उम्र के बाद ही इसमें कुछ सुधार देखा जा सकता है ,वैसे पूरे सुधार की उमीद 36 वर्ष की उम्र के बाद ही की जा सकती है। इसके विपरित जिन युवकों एवं युवतियों के सातवें भाव का स्वामी मजबूत मंगल हो या सातवें भाव में मजबूत मंगल की उपस्थिति हो या सप्तमेश के साथ मजबूत मंगल की घनिष्ठता या परस्पर विपर्यय हो तो उनका विवाह 24 वर्ष का उम्र से 30 वर्ष की उम्र तक या कभी कभी 32 वें वर्ष में भी होने की संभावना होती है । विवाह के पश्चात् उनका दाम्पत्य जीवन सुखमय व्यतीत होता है । जिन युवकों एवं युवतियों के सातवें भाव का स्वामी शुक्र हो या या सातवें भाव में शुक्र की उपस्थिति हो या सप्तमेश के साथ मंगल या बुध की घनिष्ठता या परस्पर विपर्यय न हो तो उनके विवाह में अधिक देर होने की संभावना होती है । इनका विवाह 31वें वर्ष या कभी-कभी 36वें वर्ष तक भी होता है।
उपरोक्त बातों से किसी भी जन्मकुंडली से मोटे तौर पर जातक के विवाह की उम्र निकाली जा सकती है ,किन्तु सूक्ष्म गणना के लिए ग्रहों की गोचर के चाल को जानना आवश्यक होगा। हमने पाया है कि विवाह-समय के निर्धारण में मंद ग्रहों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।सभी ग्रह वक्री होने से पूर्व और मार्गी होने के बाद बिल्कुल धीमी गति में चलते हैं। ग्रह सामान्य तब होते हैं ,जब ये पृथ्वी से औसत दूरी पर अपनी औसत गति में होते हैं। पृथ्वी को स्थिर मानकर जब हम भचक्र की संपूर्ण राशियों और सभी ग्रहों का अध्ययन करते हैं , तो हमें सभी ग्रहों का एक-एक काल्पनिक पथ प्राप्त होता है , जिनमें सभी ग्रह चक्कर लगाते हैं। ज्योतिषीय पंचांगों का आधार ये काल्पनिक पथ हैं , जहॉ ग्रह अतिशीघ्री , समरुप , मंद और वक्री होते हैं। कभी-कभी ये ग्रह बिल्कुल स्थिर हो जाते हैं। ऐसी स्थिति वक्री होने से कुछ दिन पूर्व और मार्गी होने के कुछ दिन पश्चात् बनती है। इस स्थिति में ग्रह अचल होते हैं। ये काफी उर्जावान होते हैं । `गत्यात्मक दशा पद्धति´ के अनुसार बुध ग्रह 10 दिन पूर्व से वक्री होने के दिन तक तथा मार्गी होने के दिन से 10 दिन बाद तक मंद गति में होता है । शुक्र ग्रह डेढ़ महीने पूर्व से वक्री होने के दिन तक तथा मार्गी होने के दिन से डेढ़ हीन बाद तक मंद गति में होता है। शनि और बृहस्पति एक महीने पूर्व से वक्री होने के दिन तक तथा मार्गी होने के दिन से एक महीने बाद तक मंद गति में होते है। वैवाहिक कार्यक्रमों में मंद ग्रहों की निश्चित ही बडी भूमिका होती है , किन्तु किस ग्रह के मंद रहने पर किस जातक का विवाह संपन्न या निश्चित होगा , इसकी जानकारी महत्वपूर्ण है।इस संबंध में तीन बातें देखी गयी है——–
जिस जातक के सातवें भाव का राशीश ग्रह मजबूत स्थिति में हो , उसका विवाह सामान्यतया उसी ग्रह की मंद स्थिति में संपन्न होता है। जब भी सातवें भाव का स्वामी मंद होगा , कहीं न कहीं वैवाहिक संबंधों की बात चलती रहेगी , विवाह तय या संपन्न भी होगा।
जिन जातकों के सातवें भाव का राशीश ग्रह कमजोर स्थिति में हो , उनका विवाह दूसरे उन ग्रहों के मंद रहने पर होता है , जो उनके जन्मकाल में सातवें भाव में मजबूत होकर स्थित होते हैं।
जिन जातकों के सातवें भाव का राशीश ग्रह कमजोर स्थिति में हों और उनके सातवें भाव में किसी मजबूत ग्रह की उपस्थिति न हो , तो वैसे जातकों का विवाह गोचर में सातवे भाव में किसी ग्रह के मंद होने पर होता है।
मेष लग्न में किसी ग्रह के क्रियाशील न होने से तथा पूरे वर्ष मंगल के क्रियाश्ील न होने से तुला लग्न वालों के विवाह की संभावना कम बनेगी। पर ‘गत्यात्मक ज्योतिष’ के हिसाब से सूर्य हर वक्त वैवाहिक मामलों के लिए क्रियाशील होता है, इसलिए वह जिन लग्नवालों के सप्तम भाव में स्थित रहेगा , उसके विवाह की संभावना बनती रहेगी। इस दृष्टि से 15 जनवरी से 15 फरवरी तक कर्क लग्न वालों के , 15 फरवरी से 15 मार्च तक सिंह लग्नवालों के , 15 मार्च से 15 अप्रैल तक कन्या लग्नवालों के , 15 अप्रैल से 15 मई तक तुला लग्नवालों के, 15 मई से 15 जून तक वृश्चिक लग्नवालों के तथा 15 जून से 15 जुलाई तक धनु लग्नवालों के विवाह की संभावना बनती रहेगी। इस प्रकार जनवरी से जुलाई 2015 में विभिन्न लग्नवालों के वैवाहिक योग इस प्रकार होंगे ….
1. मेष – 30 मई से 25 जुलाई ,