प्रिंट मीडिया के समक्ष वर्तमान चुनौतियां…..

3 मई पत्रकारिता दिवस पर बिषेष
-संतोष गंगेले, अध्यक्ष, गणेषषंकर विद्यार्थी प्रेस क्लब, मध्य प्रदेष-

संतोष गंगेले
संतोष गंगेले

लेाक तंत्र का सजग प्रहरी प्रेस की आजादी है । लोंक तंत्र का षाव्दिक अर्थ लोगों का ष्षासन , जनता का तंत्र ,, इसकी परिभाषा के अनुसार यह जनता व्दारा जनता के लिए जनता का ष्षासन है । लेकिन अलग अलग देषकाल और परिस्थितियों में अलग अलग धारणाओं के प्रयोग से इककी अवधारण कुछ जटि हो गयी है । प्राचीन काल से ही लेाक तंत्र के संदर्भ में कई प्रस्ताव रखे गये है । बर्तमान प्रजातंत्र को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है जिसमें पहला न्यायपालिका, विधायिका कार्यपालिका, प्रेस, पत्रकारिता, । उन्नीसवी सदी में देष को आजादी दिलाने में पिं्रट मीडिया की अहम भूमिका रही इसी कारण उसकी आजादी का संबिधान में उच्च स्थान दिया गया है । लेकिन पिं्रट मीडिया का प्रभाव 1984 तक प्रभावषाली रहा इसी बीच इलेक्ट्रानिक उपकरणों का भारत में प्रवेष हो जाने के कारण प्रिंट मीडिया के समक्ष अनेक चुनौतियॉ ष्षुरू हो गई । प्रिंट मीडिया में जो कठिनाईयॉ छापा मषीनों के समय थी वह कम जरूर हुई हैं लेकिन प्रिंट मीडिया के लिए इलैक्ट्रानिकल मीडिया, सोषल मीडिया कम्प्यूटर, इंटरनेट, मोबाईल, फेषबुक, टियुटर, व्हाटसअप, आदि को भी विकाषगति में जुड़ जाने के कारण पिं्रट मीडिया प्रेस (छापा मषीनों) का स्तर कम हो गया । प्रिंट मीडिया में जहंा एक अखबार की छपाई के लिए दस व्यक्तियों की आवष्यकता होती थी आज वह दो व्यक्तियों से अखबार की छपाई व बंडल बॉधने का कार्य हो गया जिससे बैरोजगारी बड़ी तथा रोजगार के अवसर कम हुये । प्रिंट मीडिया का जो व्यापार था वह बर्तमान समय में बहुत की कम रह गया । आम व्यक्ति अपना व्यापार का प्रचार प्रसार, उसकी क्वालटी की जानकारी कम दामों में कम समय में इलेक्ट्रानिकल चैनल, टी व्ही, फेसबुक, व्हाट्यअप आदि के माध्यम से अपनी बात रख एवं कर लेते है जिससे प्रिंट मीडिया का हानि उठानी पड़ रही है ।
पल -पल की खबरों के लिए आये दिन नये नये उपकरण मोवाईल, लेपटॉप, इंटरनेट सुविधाये दी जा रही है । जिस कारण पिं्रट मीडिया अत्याधिक घाटें का व्यापार हो गया । प्रिंट मीडिया में जो कार्य कई दिनों में हो पाता था वह बर्तमान समय में कुछ ही समय में पूरा होने के कारण प्रिंट मीडिया के सामने चुनौतियॉ ही चुनौतियॉ खड़ी हो गई है । स्वतंत्र पत्रकारिता को ग्रहण लगने लगा है तथा बर्तमान में व्यवसायिक पत्रकारिता को अत्याधिक स्थान मिलने लगा है । चॅूकि प्रिंट मीडिया से प्रकाषित समाचार पत्र बिना विज्ञापन के संचालित करना संभव नही रहा है । इसलिए व्यक्ति के विचारों की अभिव्यक्ति को भी कैदा किया जाने लगा है । प्रेस की आजादी को खतरा हो रहा है । प्रेस की आजादी, स्वतंत्रता पर परतंत्र की छाया नजर आने लगी है । आजादी के पूर्व की पत्रकारिता एवं बर्तमान पत्रकारिता में चुनौतियॉ ही चुनौतियॉ है । आजाद के पूर्व पत्रकार, प्रेस एक मिषन व देष व समाज के लिए पत्रकारिता हुआ करती थी, बर्तमान में प्रजातंत्र को सजगता प्रदान करने वाली पत्रकारिता कम ही नजर आने लगी है । विकाष के मुद्दे को पीछे छोड़ते हुये अधिकारिया, राजनेताओं, उद्योगपति, ठेकेदारों, भू-माफियों, षिक्षा संस्कृति के ठेकेदारों के लिए पत्रकारिता स्वतंत्र पत्रकारिता कठपुतली बनती चली जा रही है । प्रेस मीडिया को अपने दायित्व का निर्वाहन करने में स्वंय की ताकत व आत्मवल के बाद काम करना पड़ रहा है । इस स्वतंत्र भारत में प्रेस की भूमिका पर ही पग-पग पर अग्नि परीक्षा होती है । लिखने बाले लिख तो बहुत कुछ लिख जाते है लेकिन उसे स्वयं तो अमल कर नही पाते, सामने बाले को लिए छोड़ देते है । हम आप प्रेस दिवस हर बर्ष, साल मनाते आ रहे है, किसी न किसी रूप में पत्रकारिता के बारे में पत्रकार ही अपनी अच्छी बुरी खबरों के साथ हम जैसे तुच्छ बुध्दि, विवेकहीन लेखक को कहीं न कहीं किसी समाचार पत्र, बेब पोर्टल में स्थान मिल जाता है ,अन्यथा लेख प्रकाषित करने एवं कराने के लिए भी राजलक्ष्मी या धन लक्ष्मी की मदद की आवष्यकता होने लगी है । लेकिन मानवता के पुजारी पत्रकार अपना दायित्व निभाते चले आ रहे है ।

प्रिंट मीडिया में बर्तमान चुनौतिया इस प्रकार से बढ़ती चली जा रही है कि प्रिंट मीडिया से प्रकाषित समाचार पत्रों को प्रतियोगिता की दौड़ में समाचार पत्र, पत्रिकायें, में भौतिकवादी युग की छाया के साथ कार्य करना आवष्यक हो गया है । बर्तमान समय में प्रिंट मीडिया के लिए जो प्रिंटर या छापा मषीनें बाजार में आ रही है उनकी लागत पुॅजी दस लाख से दो से तीन करोड़ तक पहुॅच रही है । ऐसे समय में प्रिंट मीडिया से जुड़े संपादक, प्रकाषक मुद्रॅक के सामने आर्थिक संकट आना ही है । इस कारण उद्योग पति या पुॅजीपतियों के हाथ में प्रिंट मीडिया का कारोवार समिट कर रह गया है । प्रिंट मीडिया से प्रकाषित समाचार पत्रों के लिए सुबह से रात्रि 9 बजे तक की घटनाओं एंव समाचारों के लिए अपने सूत्र विष्वनीयता के साथ खोजना होते है चॅूकि बर्तमान समय में इलेक्ट्रानिक मीडिया इंटरनेट, सोषल मीडिया, व्हाटसअप जैसे सूचना संदेष में पल पल की खबरें आम जन तक पहुॅच जाती है उसके बाद भी भी प्रिंट मीडिया को अपनी विष्वाष्नीयता बनाये रखने के लिए समाचारों की तह तक जाने केलिए किसी भी समाचार के पॉच सूत्र कब, क्यों, कैसे, कौन व कहां प्रष्नावाचक ष्षव्दों को समाहित करने के बाद ही समाचार का प्रकाषन किया जाता है कम ष्षव्दों में सर्म्पूण सार प्रदान करने के लिए कठिन मेहनत करना होती है । समाचार पत्र प्रकाषन के साथ ही पाठ तक समाचार पत्र भेजने के लिए ऐजेन्ट या अपने प्रतिनिधिओं, संवाददाताओं के बीच तालमेल बनाकर सुबह की किरणें निकलने के पूर्व पाठक के हाथ में समाचार पत्र भेजने की व्यवस्था पत्र संपादक या प्रसार व्यवस्थापक को व्यवस्थित करना होती है । समाचार पत्र की अग्रिम राषि ऐजेन्ट से लेने के बाद ग्राहक से एक माह या दो माह की राषि बसूली करेन में अनेक कठिनाईयॉ होती है । समाचार पत्र में प्रकाषित समाचारों में इस बात का भी पूर्ण ध्यान रखना होता है कि जो समाचार ्रपकाषित किया गया है उसकी पूर्ण सत्यता हो क्योकि भारतीय प्रेस परिषद के नियम व कानून के साथ समाचार पत्र में किसी भी समाचार की सत्यता न होने पर अपराध की श्रेणी में आकर प्रकाषक, संपादक मुद्रॅक एवं वितरक को दण्ड का भागीदार भी बनाया जा सकता है । भारतीय दंड संहित की धारा 499, 500, 501, 502 के पत्रकार संपादक को सजा का प्रावधान रखा गया है । इंटरनेट पर संचालित ई समाचारों के जरिये समाचार पत्र भी पढ़ने एवं पढ़ाने की व्यवस्थाये की गई हैं जिसमें कम ष्षव्दों में समाचार सार देने का प्रयास किया जा रहा है ।

आज 3 मई विष्व प्रेस दिवस के रूप में पूरे विष्व में पहचाना जाता है । लेख के अनुसार बर्ष 1993 से विष्व प्रेस दिवस मानाया जाने लगा है । भारत की आजादी के बाद 1948 में संविधान के अनच्ुधेंद 19 में मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा में प्रेस की आजादी की अभिव्यक्ति दी गई है । हमें अपने मूल षिय प्रिंट मीडिया के समक्ष बर्तमान चुनौतिया पर आकर यह बताना होगा कि प्रिंट मीडिया का उदय 17 वी ष्षताव्दी में ष्षुरू हुआ था उस समय समाचार आदान प्रदान के लिए ष्षासन तंत्र संचालित करने वाले गॉव आवादी के अंदर डुॅडी पिटवाकर या ढोल नकाड़ों के साथ अपनी खबर या संदेष लोगों तक भिवाने का कार्य किया करते थें , 18 वीं षताव्दी में षिला लेख, लेखन व छापा खाना(प्रिंटिंग प्रेस ) का अविष्कार हो चुका था । भारतीय इतिहास के अनुसार भारत में अंग्रेेजो के ष्षासन काल में पहिला अखवार 29 जनवरी 1780 को एक अंग्रेज जेम्स ऑगस्टस हिकी ने निकाला था यह समाचार पत्र साप्ताहिक बंगाल गजट के रूप में प्रकाषित किया था । बर्ष 1849 में गिरीष चन्द्र घोष ने पहला बगला रिकॉडर नाम से ऐसा पहला अखवार निकाला जिसका स्वामित्व भारतीय हाथों में था । 1853 में इनका नामा बदल कर हिन्दू पैट्रियट हो गया । सन् 1861 में बम्बई के तीन अखवारों का विलय करके टाइम्स ऑफ इण्डिया की स्थाना अग्रेजी हुकुमत के हितों की रक्षा के लिए की गई थी । अंग्रेजी हुकुम के विरूध्द सन् 1857 के आवाज पर सम्पूर्ण भारत में गूॅजने लगी तो समाचार पत्रों को सहारा लिया जाने लगा था धीरे धीरे भारत में क्रॉति की आवाज उठने लगी जिस कारण अंगेजों ने 1878 में परनाकुलर प्रेस एक्ट बनाया था । ब्रिटिष प्रषासन ने 1924 में मद्रांस में एक ष्षौकिया रेडिया क्लब बनाने की अनुमति दी । तीन साल बाद निजी क्षेत्र में ब्रॉडकास्ट कम्पनी ने बम्ई और कलकत्ता में नियति रेडियों प्रसारण ष्षुरू किया । बहारदाल औपनिवेषिक सरकार ने 1930 में ब्रॉडकास्टिंग को अपने हाथ में ले लिया और 1936 में उनका नाम करण -आल इण्डिया रेडिया या आकाषवाणी कर दिया । सबसे पहिले हैदरावाद, त्रावणकोर, मैसूर बड़ोदरा, त्रिवेंद्रम और औरंगावाद जैसी देषी रियासतों में भी प्र्रसार चालू हेा गया ।
मेरी नजर में देष को आजाद कराने बाले पत्रकारों के पास आर्थिक धन का आभाव हुआ करता था तथा साधनहीन हुआ करते थें तथा पत्रकार की पहचान पूर्ण रूप से देष एवं समाजसेवा होती थी, । देष आजाद होने के बाद सन् 1975 तक के पत्रकारो को मैने देखा कि वह स्वदेषी कपड़ांे के साथ सूती बस्त्र धारण करते थें एक जाकिट हुआ करती थी तथा गॉधी छाप छोला एक कॉपी या डायरी एक पेन होता था पैदल चलते थें तथा यदि कोई पत्रकार सामर्थ है, तो उसके पास साईकिल हुआ करती थी समाचार भेजने केलिए डाक तार विभाग का ही सहारा हुआ करता था । समाचार भेजने का एक मात्र साधन डाक विभाग हुआ करता था, इसलिए क्षेत्रीय खबरे सप्ताह या हर महीने पढ़ने का मिला करती थी । लेकिन सही सत्य व विष्वास पात्र समाचार हुआ करते थे । कर्मयोगी एवं समाज सुधारक व्यक्ति ही पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना जीवन न्यौछावर किया करते है । आजादी के पूर्व एवं बर्तमान पत्रकारिता में जो परिवर्तन हुआ है उसमें भौतिकवादी युग का भी प्रभाव है ।

भारतीय राजनीति में उथल पुथल होने के बाद सन् 1980 से पत्रकारिता में उफान आना ष्षुरू हुआ तथा समाचार पत्रों के प्रकाषन की संख्या में तूफान की तरह विकाष हुआ कि देष में सैकड़ों नही हजारो ं समाचार पत्रों का पंजीयन हुआ , प्रत्येक राज्य में सैकड़ों पत्र पत्रिकायें पुस्तके समाचार पत्रों की संख्या में बृध्दि हुई । प्रत्येक समाचार पत्र के संपादक एवं पत्रकार ने देष प्रेम एवं देष सेवा का त्याग कर किसी न किसी रूप में धन संग्रह कर अपना वैभव, सम्मान, प्रतिष्ठा पाने केलिए राजनेताओं अधिकारियों कर्मचारियो के सामने कलम को गहने रखने का प्रयास किया जिससे देष में अन्याय अत्याचार, भृष्टाचार बढ़ता गया , सरकारों ने अपनी बात रखने केलिए सूचना तंत्र के नियम व कानून बनाये साथ ही पत्रकारों को अपने पक्ष मंे रखने केलिए विज्ञापन नीतिओं का निर्धारण किया । जिस कारण समाचार आम जनता के सामने निष्पक्ष व सुलझे नही पहुॅच सके । जो पुॅजीपति व राजनीति में दखल रखते थेां उन्होने अपने किसी न किसी रूप में समाचार पत्रों पर अधिकार प्राप्त कर लिये तथा अपनी बाप कहने केलिए अपने ही समाचार पत्रों का प्रकाषन कराया । आज देष की पत्रकारिता पूरी तरह पुॅजीपतिओं , राजनेताओं के इषारे पर नच रही है ।

प्रजातंत्र का चौथा स्तंम्भ कहा जाने बाली पत्रकारिता पूरी तरह से कैद हो चुकी है , विज्ञानिक खोज, भौतिक साधनो के बाद जो स्वस्थ्य एवं निष्पक्ष पत्रकारिता देष के आजाद होने तक होती तो आज देष में इतने बड़े घोटाले न होते , अन्याय व अत्याार आंतक न होता, भृष्टाचार की जड़े इतनी मजबूत न होती लेकिन समाचार पत्र का चलाना भी कठिन हो गया है किसी भी लघू समाचार पत्र देनिक हो या साप्ताहिक , पाक्षिक या त्रैमासिक पत्रिका हो सभी को आर्थिक सहयोग की आवष्यकता होती है यदि वह नेताओ सरकार पुॅजी पतिओं की चाटूकारिता नही करेगा तो उसका प्रकाषन संभव नही है जो समाचार पत्र दैनिक है और उनके पास करोड़ों रू0 की आय आज विज्ञापन से ही हो रही है वह किसी भी मुख्यमंत्री या कैवनिट मंत्री की तरह ही अपना जीवन व्यतीत कर रहे है । देष व प्रदेष के पत्रकारों में भारत सरकार एंव प्रदेष सरकारों को विभाजन कर अधिमान्यता का नियम बना दिया है । जिस कारण सरकार व्दारा प्रदान परिचय पत्र के आधार पर ही आप पत्रकार माने जाने लगे है, जो बास्तवितक पत्रकार ग्रामीण कस्बा क्षेत्र के है उन्हे ऐजेन्ट या हॉकर षव्द से ही सम्बोधित किया जाने लगा है, जबकि बास्तविकता से खबर का सूत्रधार ही सही पत्रकार है लेकिन कानून का सम्मान करने वाले भारतीय नागरिक अपनी आवाज को नही उठाा पा रहे है । मध्य प्रदेष के अंदर गणेष षंकर विद्यार्थी प्रेस क्लब अपनी अलग पहचान बनाकर मानव समाज की सेवा, भारतीय संस्कृति की रक्षा, बच्चों को प्रोत्साहित कर सम्मान पाने वाले व्यक्तियों को मंच पर सम्मान प्रदान कर अपने कर्तव्य या मिषन को पूरा करने में लगा है ।

बर्तमान समय जो भी समाचार पत्रों के संपादक है उन्हे समाचार पत्र चलाने केलिए ऐजेन्षी देते है ऐजेषी का कार्ड दिया जावें न की उन्हे पत्रकारिता का कार्ड दिया जावे । समाचार पत्रों एवं चैनल के समाचार संवाद ऐजेन्षीओं को चाहिये कि वह किसी भी व्यक्ति को संवाददाता या व्यूरो चीफ नियुक्ति करते समय उसकी भौतिक सत्यापन करना चाहिये तथा नियुक्त के पूर्व सार्वजनिक सूचना प्रसारित की जावें जिससे उसकी चरित्रावली की जानकारी संपादक तक पहुॅच सकती है ।

यदि पत्रकारिता एक मिषन है तो संपादक एवं पत्रकारों को भी पत्रकारिता को व्यवसाय न बनाकर उसे समाजसेवा कर्तव्य निष्ठा एवं देष प्रेम की भावना से कार्य करना चािहये अन्यथा पत्रकारिता को कंलकित करने केलिए पत्रकारिता के क्षेत्र में नही आना चािहये । भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों के इतिहास का ज्ञान रखने बाले ही पत्रकारिता को अपना धर्म एवं कर्म समझ कर कार्य करें तो इस भारत देष में राम राज्य की कल्पना की जा सकती है अन्यथा कागज का घोड़ा कागजो तक ही सीमित बना रहेगा । भारत सरकार एवं राज्य सरकारों व्दारा मिलने बाली सुविधाये कुछ ही पत्रकारों को प्राप्त हो जाती है ग्रामीण एवं कस्बाई पत्रकारों की लगातार उपेक्षा होती आ रही है और आज भी हो रही है । जबकि समाचार की नींच कस्बाई पत्रकार ही होते है उनही उपेक्षा नही होनाी चाहिये ।

सरकारों को अपनी नीतिओं में परितर्वन करना चाहिये । साथ ही पत्रकारो को कानून का ज्ञान एवं अपने अधिकारों व कर्तव्यों के प्रति भी सचेत होना होगा । आज आजाद भारत के इस गण्तंत्र दिवस पर हम ष्षपथ लेकर संकल्प ले की हम यदि पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य करेगें तो देष प्रेम देष भक्ति केलिए करेगें, सत्य को उजाकर करेगें ।
पत्रकार कौन है ?

आम जनता की आवाज है पत्रकार, ।
मानव समाज की ष्षान है पत्रकार ।
अंधेरे को जो प्रकाष में बदल दे उसे कहते है पत्रकार ।
जनता की आवाज बनकर सरकार को जगा दें उसे कहते है पत्रकार ।
अपराधों, भृष्टाचार, अन्याय अत्याचार,ष्षोषण की आवाज उठाता उसे कहते है पत्रकार ।
जीवन का सुख चैन त्याग कर, समाजसेवा करता उसे कहते है पत्रकार ।
जान हथेली पर रखके, अपनी मौत की खबर लिख देता है पत्रकार ।।

पत्रकारिता पर कविता
धरा बैच देते, गगन बेच देते,
चमन के पुजारी , चमन बैच देते
यदि होते न कलम के पुजारी ,
देष के कुछ भृष्ट राजनेता, अपना बतन ही बैच देते ।

पत्रकार को मौत से मत डर जाता है
पत्रकारिता एक मिषन है यह नौकरी व व्यवसाय नही है ।
देष प्रेम, बलिदान की कहानी हमारी इस कलम ने लिखी है
आज की पत्रकारिता देख मेरा दिल दहल जाता है ।
राजनेता, अधिकारी गुण्डा हर कोई पत्रकार को धमकाता है
यदि पत्रकार टिका रहे ईमान पर तो हर कोई हमारी कलम से घबराता है
देष के बीर सपूतों ने हमें आजादी किस तरह दिलाई, यह तू भूल जाता है
मोत तो आना ही है एक दिन, तू क्यो इन देष द्रोहीओं से डर जाता है ।

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