“दिखावे से बिगड़ता है वास्तु”

शैलेन्द्र माथुर
शैलेन्द्र माथुर

अक्सर लोग छत की डिजाइन में पी. ओ. पी .के फूल बनवाते है और उसमें उत्तल दर्पण भी लगालेते है जो दिशा -दिशा पर अपना प्रभाव दिखाते है।मैंने अपने अनुभव में कई परिवारों को इस कारण दुखी व शारीरिक रूप से पीड़ित देखा है।
कई बार भवन को वास्तु अनुसार बनवा लेने के बावजूद भी कई परिवारों को संतुष्ठ नहीं देखा गया है,कारण है बिगाड़ा हुआ इंटीरिअर डिजाइन/सजावटी सामानों का गलत स्थापन/गलत रंगो का चयन /आसपास का कुप्रभाव /मोबाइल टावरों का दुष्प्रभाव/घर में गंदगी आदि।
दिखावे की इस दुनिया में डिजाइनर व आर्किटेक्ट अपनी डिजाइन से कोम्प्रोमाईज़ नहीं करते,इसप्रकार प्राकृतिक व पञ्च तत्वों के संतुलन से छेड़छाड़ कर बैठते है।फलतः कई भवनों में वास्तु का दुष्परिणाम भुगतना पड़ता है।इसीप्रकार लटकाने वाले झूमर भी हर दिशा में नहीं लगाने चाहिए।आधुनिकता के इस युग में लोग भवन में प्राकृतिक हवा/रौशनी/ऊर्जा लेना उपुक्त नहीं समझते बल्कि ऐ.सी./सेण्टर कूलिंग व डेकोरेटिव लाइटों पर निर्भर रहते है जिसका दूरगामी परिणाम भी वो भुगतते है।वास्तु विज्ञानं पूर्व से ही वैज्ञानिक सिद्धान्तों का पालन करता आया है अतः इसे वहंम शास्त्र नहीं समझना चाहिए।दूसरी और मेरा अनुभव है की लोग बाजार में मिलने वाले वास्तु प्रोडक्ट अंभिज्ञतावश/भ्रमितहोने वश अपने निवास में लगा बैठते है इनका प्रभाव मात्र मन की तस्सली है पर कोई पुख्ता निवारण नहीं है।वास्तु में पञ्च तत्वों का समायोजन तथा पृथ्वी की चुम्बकीय शक्ति व वैश्विक विधुत चुम्बकीय तरंगों का प्रभाव ही सुवास्तु की मूल अवधारणा है।
इंजी.शैलेन्द्र माथुर, बी.टेक.
वास्तु विशेषज्ञ;41_42,अलखनंदा कॉलोनी,वैशाली नगर,अजमेर

error: Content is protected !!