सच्ची मित्रता यानि प्यार का ख़जाना

मित्रता दिवस पर विशेष आलेख

कंचन पाठक
कंचन पाठक
मनुष्य में भावों की स्वभावगत भूख हुआ करती है l मित्रता भी एक ऐसा हीं भाव है जिसकी भूख हर मनुष्य को होती है, जिसकी ज़रुरत हर इन्सान महसूस करता है l एक ऐसी अविच्छिन्न शान्ति ऐसा आलमी सुकून देता है यह रिश्ता जिसकी चाहत हरेक दिलों में अनिवार्य रूप से होती हीं है l पर वर्तमान समय की बेहिसाब प्रतिस्पर्धाओं की बनावटी दुनिया में एक आदर्श मित्र मिलना शायद दुर्लभ हीं है l आजकल की खांटी व्यावसायिकता वाले संघर्षमय शुष्क युग में अगर कोई मित्र मिल भी जाए तो कभी न कभी उसकी वास्तविकता ह्रदय को चीर डालनेवाली इन पंक्तियों के समान साबित हो जाए तो कोई बड़ी बात नहीं l
खाके जो तीर देखा कमीगाह की तरफ,
अपने ही दोस्तों से मुलाकात हो गयी ll
वास्तव में ऐसे मित्र से बिना मित्र के रहना अधिक उचित है क्योंकि शत्रु जो प्रत्यक्ष दिख रहे हैं उनसे निबट लेना आसान होता है बनिस्पत उन लोगों के जो मित्रता के नकली मुखौटे की आड़ में ह्रदय में आपके लिए शत्रुवत कटुता रखते हैं l वर्तमान युग में समय का अभाव, घर से दूर दूसरे शहर में प्रवास, इन्टरनेट आदि अनेक कारणों ने आदमी को अकेलेपन की अजीबोगरीब त्रासदी से भर दिया है l व्यस्तता के इस समय काल में आज जब ज्यादातर इन्सान बेतरह अकेला होता जा रहा है, फेसबुक जैसे कुछ सोशल साइट्स ने इंसान को मित्रता करने का एक वृहद् संसार मुहैया कराया है और कुछ हद तक अकेले लोगों ने यहाँ आकर राहत भी पाई है पर यहाँ भी अधिकतर आगामी या अन्तिम परिणाम नकारात्मक हीं देखने में आया है, खासकर महिलाओं के साथ l भावों में छुपे धोखे को परखने पहचानने में एक छोटी से छोटी भूल कब टीसते घावों और ब्लैकमेलिंग का जरिया बन जाए कहना मुश्किल होता है l पर जैसा कि हम सब जानते हैं अपवाद हर जगह मौजूद होता है सो इस आभासी संसार में भी कई बार अनदेखे अनजाने ऐसे दोस्त मिल जाते हैं जिनकी मित्रता स्वर्गिक प्रकाश से कम नहीं होती l वैसे, संसार चाहे वास्तविक हो अथवा आभासी, समय की कसौटी पर कसकर सारे हीं रिश्ते अपने-आप अपनी पहचान दे दिया करते हैं l
एक सच्चा मित्र आपके सुख-दुःख में समान रूप से खड़ा रहता है l वह कभी भी आपके क़दमों को भटकने नहीं देता l भले हीं आपको बुरा लगे पर वह आपको आपकी कमज़ोरियों से अवश्य अवगत कराएगा साथ हीं आपके किसी भी दुर्गुण के परिमार्जन की दिशा में वह अपने तरीके से ज्ञात भी कराएगा l हाँ, आपकी किसी कमज़ोरी को आपका कृत्रिम सम्वेदना वाला कोई हितैषी मित्र अगर चटखारे लेकर सार्वजनिक रूप से बखान करे, भले हीं बेहद मीठे शब्दों में तो इस तरह के कार्य करने वाले की भावना क्या है यह आपको गहराई से समझना होगा l क्योंकि यहाँ मैत्री के पीछे विषकुम्भ वाला सर्वथा भिन्न पक्ष हो सकता है l
परोक्षे कार्य हन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम् l
वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भे पयोमुखम् ll
जी हाँ, उपरोक्त प्रकार के मित्र की संगत आपको मित्रता के नाम पर किसी अनचिन्हें सन्देहशील गन्तव्य तक पहुँचा सकती हैं l वैसे भी सच्चे हितैषी की भावना आज ना कल समझ में आ हीं जाती है l एक सच्चा मित्र किसी भी हाल में अपने संगी को दुखी, लज्जित, बेकल या रुसवा नहीं होने देता l वह तो हमेशा उस पर अपने प्यार का खजाना हीं न्योछावर करता है, सो भ्रामक और त्याज्य लोगों की समय से पहचान कर लें, वर्ना पछतावे के सिवा कुछ भी हासिल न होगा l
सच्ची स्वाभाविक मित्रता वह रिश्ता है जिसमें भले हीं लहू के सम्बन्ध वाला अकाट्य बंधन ना हो पर कई बार यह लहू के सम्बन्ध से भी ज्यादा मजबूत साबित होता है l सच तो यह है कि सच्ची शुद्ध मित्रता ईश्वरीय वरदान है जो विरलों को हीं मिलती है l हाँ ! इतना तो तय है कि जिसे सही अर्थों में एक अच्छा एवं सच्चा मित्र मिल गया समझो उसने संसार की सबसे बड़ी दौलत पा ली l

कंचन पाठक.
कवयित्री, लेखिका

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