कर्मयोगी महाराजा अग्रसेन

agrasenकिसी भी समाज या उन्नत राष्ट्र के निर्माण हेतु मुख्यतया चार स्तंभों की आवश्यकता होती है यथा– आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक। इन चारों स्तंभों को दृढ़ करके ही राष्ट्र को प्रगतिशील एवं विकसित देश बनाया जा सकता है | महाराजा अग्रसेनजी ने इन्हीं चार स्तंभों को मजबूत कर समर्द्धशाली ,कल्याणकारी एवं शक्तिशाली राज्य का निर्माण किया था | महाराजा अग्रसेन एक पौराणिक कर्मयोगी लोकनायक होने के साथ समाजवाद के प्रणेता, तपस्वी, महान दानवीर युग पुरुष थे । इनका जन्म द्वापर युग के अंत व कलयुग के प्रारंभ में लगभग 5190 वर्ष पूर्व प्रताप नगर के सूर्यवंशी राजा वल्लभ के यहाँ हुआ था। राजा वल्लभ के दो पुत्र- अग्रसेन और शूरसेन थे। अग्रसेन महाराज वल्लभ के ज्येष्ठ पुत्र थे। अग्रसेन के जन्म के समय गर्ग ॠषि ने महाराज वल्लभ से कहा था, कि यह बहुत बड़ा राजा बनेगा। इस के राज्य में एक नई शासन व्यवस्था का उदय होगा और हज़ारों वर्ष बाद भी इनका नाम अमर रहेगा । ऐसा भी कहा जाता है की महाराजा अग्रसेन भगवान श्रीरामके पुत्र कुश की 34 व़ी पीढ़ी (generation) के थे |
15 वर्ष की अल्प आयु मे ही अग्रसेनजी ने महाभारत की लडाई मे पांडवो की तरफ से भाग लिया था | कहते है की भगवान श्रीकृष्ण भी उनके शोर्य,पराक्रम,बुद्धीमता से प्रभावित हो गये थे इसीलिए उन्होंने कहा था कि युवा अग्रसेन भविष्य में एक युग पुरुष होंगे |
राजकुमार अग्रसेन अपने बाल्यकाल से ही दया, करुणा, सोहार्द एवं सहनशीलता की प्रति मूर्ति थे | अग्रसेन न्याय की घोषणा करने से पूर्व वादी-परिवादी के दावों पर गहन अध्ययन बढी सूक्ष्मता से करते थे एवं बिना भेदभाव कर निर्भीक होकर अपने निर्णय की घोषणा करते थे |
महाराजा अग्रसेन का जन्म अश्विनशुक्ल प्रतिपदा हुआ था | इसीलिये प्रति वर्ष अश्विनशुक्ल प्रतिपदा यानि नवरात्रि के प्रथम दिवस को अग्रसेन महाराज जयंती के रूप में मनाया जाता हैं
विवाह
युवा अग्रसेन ने सर्पों (नाग) के राजा नागराज की सुपत्री राजकुमारी माधवी के स्वयंवर में भाग लिया था, इस स्वयंवर मे अनेकों राजाओं, राजकुमारों के साथ साथ स्वर्ग के सम्राटर इंद्रदेव ने भी भाग लिया था | इंद्र देवता राजकुमारी माधवी की सुंदरता पर मोहित थे एवं एन कैन प्रकारेण राजकुमारी माधवी से विवाह करना चाहते थे | स्वयंवर में राजकुमारी माधवी ने राजकुमार अग्रसेन का चयन कर उनका वरण किया | अग्रसेन-माधवी के विवाह से दो भिन्न भिन्न संस्कृतियों एवं परिवारों का मिलन हुआ क्योंकि राजकुमार अग्रसेन जहाँ एक सूर्यवंशी थे वहीं राजकुमारी माधवी एक नागवंशी थी | राजकुमारी माधवी का विवाह अग्रसेनजी के साथ सम्पन्न होने पर इंद्रदेव बहुत क्रोधित हुये और इन्द्र ने प्रताप नगर के निर्दोष स्त्री-पुरुषों,बालक-बालिकाओं को प्रताड़ित करने हेतु प्रताप नगर पर वर्षा नहीं होने दी जिससे प्रताप नगर में भयानक अकाल पड गया , हजारों लोगो की जान चली गई और वे काल के ग्रास बन गये | सम्राट अग्रसेन ने अपनी प्रजा एवं प्रताप नगर की सुरक्षा के लिए देवताओं के राजा इंद्र के खिलाफ युद्ध प्रारम्भ कर दिया, क्योंकि अग्रसेन के पक्ष में धर्म था | भयावह युद्ध में सम्राट अग्रसेन की सेना ने इंद्रकी सेना को परास्त कर दिया | अपनी पराजय से इंद्र बहुत लज्जित हुये | इन्द्र ने नारद मुनी से अनुनय-विनय कर उनकी सम्राट अग्रसेन से सुलह करवाने का निवेदन किया | नारद मुनि ने दोनो के बीच मे मध्यस्थता कर सुलह करवा दी |
तपस्वी अग्रसेन
भगवान शिव और माता लक्ष्मी की तपस्या

डा. जे. के. गर्ग
डा. जे. के. गर्ग
महाराज अग्रसेन ने काशी जाकर भगवान शिव की कठोर तपस्या की, तपस्या से खुश हो कर भगवानब शिव जी साक्षात् प्रगट हुए| शिवजी ने अग्रसेनजी को महालक्ष्मीजी की पूजा और ध्यान करने का आदेश दिया | अग्रसेनजी ने महालक्ष्मी की पूजा- आराधना शुरू कर दी | अग्रसेनजी की पूजा-आराधना-भक्ति से महालक्ष्मी ने प्रसन्न होकर उन्हे दर्शन दिये और कई वरदान भी | महालक्ष्मी ने उन्हें क्षत्रीय धर्म को त्याग कर वैश्य धर्म को अपनाने का आदेश दिया | माता लक्ष्मी ने अग्रसेनजी को यह आशिर्वाद भी दिया की वे सदेव उनके एवं उनके परिजनों के साथ ही रहेगीं | लक्ष्मी माता का आदेश मान कर अग्रसेन महाराज ने क्षत्रिय कुल को त्याग वैश्य धर्म को अपना लिया | महाराजा अग्रसेन प्रथम वैश्य सम्राट बने |
अग्रोहा शहर का जन्म
देवी महालक्ष्मी से आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद राजा अग्रसेन ने नए राज्य की स्थापना हेतु रानी माधवी के साथ भारत का भ्रमण किया, अपनी यात्रा के दौरान वे एक जगह रुके जहाँ उन्होंने देखा के कुछ शेर और भेडीये के बच्चे साथ-साथ खेल रहे थे | राजा अग्रसेन ने रानी माधवी से कहा के ये बहुत ही शुभ संकेत है, यह क्षेत्र निश्चय ही वीरभूमि है | राजा अग्रसेन ने उस भूमी को अग्रोहा का नाम दिया ओर उसे अपनी कर्म भूमी बनाने का निश्चय कर उस स्थान पर अपना राज्य बनाने का फैसला कर इस स्थान नामकरण “अग्रोहा” किया | महाराजा अग्रसेन जी ने अपने अग्रोहा गणराज्य में लोकतंत्रीय शासन की नींव रखी। उस समय वंशानुगत शासन का प्रचलन था, किन्तु अग्रसेनजी ने अपने राज्य को 18 कुलों में विभक्त कर इन कुलों के निर्वाचित प्रतिनिधियों के सहयोग से शासन चलाया ।
समाजवाद के अग्रदूत
महाराजा अग्रसेन जी के राज्य में यह परंपरा थी कि जो भी व्यक्ति या परिवार उनके राज्य में आकर बसता था, अग्रोहा के सभी निवासी नवागुंतक नागरिक को सम्मान स्वरुप एक रुपया और एक ईंट भेंट करते थे। कहा जाता है कि उस समय अग्रोहा में लगभग एक लाख परिवार बसते थे। इस प्रकार उनके राज्य में आने वाले प्रत्येक नागरिक एक लाख रुपये तथा एक लाख ईंटों का स्वामी बन जाता था। इन रुपयों से वह अपना व्यवसाय प्रारम्भ कर लेता था वहीं ईंटों से अपना खुद का मकान बना लेता था। महाराजा अग्रसेन जी पहले शासक थे जिन्होनें सहकारिता के आदर्श को सामाजिक जीवन में प्रतिस्थापित किया। महाराजा अग्रसेन जी ने साधनों के रचनात्मक उपयोग पर बल दिया। उन्होंने जीवन के सुख सुविधाओं एवं भोग विलास आदि पर धन के अपव्यय के स्थान पर जीवन में सादगी, सरलता और मिव्ययता बरतने पर जोर दिया। अग्रसेनजी के मतानुसार “व्यक्ति को अपनी उपार्जित आय को चार भागों में बांट कर एक भाग का उपयोग परिवार के संचालन हेतु, दूसरे भाग का उपयोग उद्योग व्यवसाय या जीविका चलाने हेतु, तीसरे भाग का उपयोग सार्वजनिक कार्यों तथ चौथे भाग का उपयोग बचत कर राष्ट्र की समृध्दि में” करना चाहिये। अग्रसेन जी की इसी विचारधारा से प्रेरित होकर आज भी अग्रवाल समाज के लोग जनकल्याण के हितार्थ धर्मशाला, मंदिर, अनाथालय, वृध्दाश्रम, अस्पताल, पुस्तकालय,स्कूल एवं कॉलेज की स्थापना करने में अग्रणी भूमिका निभा रहै हैं |
अहिसांवादी महाराज अग्रसेन
यज्ञों मे पशु बली (वध ) के विरोधी

महाराज अग्रसेन ने अपने राष्ट्र की सुख-सम्पन्नता- समृधि हेतु अनेकों यज्ञों किये | उन दिनों में यज्ञ में पशु की बली दी जाती थी | ऐसे ही एक यज्ञ के दौरान एक घोडा बली के लिए लाया गया | महाराज अग्रसेन ने देखा कि घोडा यज्ञ की वेदी से दूर जाने और वहां से भागने की कोशिश कर रहा था | इस दृश्य को देख कर महाराज अग्रसेन का दिल दया से भर गया और वे आहत भी हुए | उन्होंने सोचा के ये कैसा यज्ञ है जिसमें हम मूक जानवरों की बलि चढ़ाते है? महाराज अग्रसेन ने पशु वध को बंद करने के लिये अपने मंत्रियों के साथ विचार विमर्श किया ,कुछ मंत्रियों ने कहा के पशु-बली को रोकने से आस पास के राज्य हमें दुर्बल-शक्तिहीन समझेंगे जिससे अग्रोहा की प्रतिष्ठा पर आंच आ सकती है | मंत्रीयों के तर्क के जबाव मे महाराज अग्रसेन ने कहा कि कि अहिंसा कभी भी कमजोरी नहीं होती है बल्कि अहिसा तो एक दुसरे के प्रति प्रेम और अपनापन जगाती है | महाराजा अग्रसेन ने तुरंत घोषणा की है कि उनके राज्य मे कभी भी कोई हिंसा ओर जानवरों की हत्या नहीं होगी |
कहते हैं कि महाराज अग्रसेन ने 108 वर्षों तक राज किया। महाराज अग्रसेन ने जहाँ एक तरफ हिन्दू धर्म ग्रंथों में वैश्य वर्ण के लिए निर्देशित कर्म क्षेत्र को स्वीकार किया वहीं दूसरी तरफ देशकाल के परिप्रेक्ष्य में नए आदर्श स्थापित किए । अग्रसेनजी के जीवन के तीन आदर्श हैं- लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था, आर्थिक समरूपता एवं सामाजिक समानता। निश्‍चित आयु प्राप्त करने के बाद कुलदेवी महालक्ष्मी से परामर्श पर वे आग्रेय गणराज्य का शासन अपने ज्येष्ठ पुत्र विभु के हाथों में सौंपकर तपस्या करने चले गए।
अग्रोहा की समृद्धि, से पड़ोसी राजाओं में इर्ष्या, असंतोष होने लगा ,इन राजाओं ने बार अग्रोहापर अचानक हमले भी किये, इन अकारण आक्रमणों से अग्रोहा को कई समस्याओ का सामना भी करना पड़ा जिससे अग्रोहा की ताकत कम होती गई | अग्रोहा में एक बार भयकंर आग लग गई जिसकी वजह से वहां के नागरिक अग्रोहा को छोड़ कर चले गए एवं भारत के दुसरे क्षेत्रों में जाकर बस गए | आज वही लोग “अग्रवाल” के नाम से जाने जाते हैं |
अग्रवालों के 18 गोत्र
गर्ग, तायल, कुच्चल, गोयन, भंदेल, मंगल, मित्तल, बंसल, बिंदल, कंसल, नागल, सिंघल, गोयल, तिंगल, जिन्दल, धारण, मधुकुल, एरेन |
मैनेजमेन्ट गुरु-महाराजा अग्रसेन
महाराजा अग्रसेन ने अपने विशाल परिवार को हमेशा एकता के सूत्र मे बाधे रखा |वे एक महान मेनेजमेंट (व्यवस्थापक) गुरु थे | महाराजा अग्रसेन ओर माता माधवी ने अपने सभी 18 पुत्रों को श्रेष्ठतम संस्कार प्रदान किये थे | हम सभी को महाराजा अग्रसेन को अपना रोल मोडल बना कर उनका अनुशरण करना चाहिये | एक आकंलन के अनुसार देश-विदेश में अग्रवालों की सख्या लगभग 8 करोड़ के आसपास है | अपनी अदभुत प्रतिभा एव श्रेष्ठ मेनेजमेंट स्किल की वजह से सभी अग्रवाल देश- विदेश मे शक्तिवान, धनवान, संस्कारित, उच्च इन्सान के रूप मे जाने जाते है, देश सेवा मे अग्रवालों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है |
यदि हमें महाराजा अग्रसेन के अनुयायी कहलाना है तो, आइये हम अग्रसेन जयंती के पावन पर्व पर अग्रसेनजी के आदर्शों पर चल कर कर्मयोगी इंसान बनने का संकल्प लें।
संकलनकर्ता डा. जे. के. गर्ग—डा. श्रीमती विनोद गर्ग

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