नवरात्री का वैज्ञानिक आधार

डा. जे. के. गर्ग
डा. जे. के. गर्ग
हमारे देश ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है इसी वजह से हमारे यंहा महत्वपूर्ण पर्वों यथा दीपावली, होली , शिवरात्रि और नवरात्र आदि रात में ही मनाये जाते है | मन में सवाल उठता है कि हम शिवरात्री या नवरात्री को शिवदिन या नवदिन क्यों नहीं कहते हैं? इससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि अगर रात्रि का कोई विशेष रहस्य या महत्व नहीं होता तो ऐसे उत्सवों को शिवरात्रि, नवरात्री के बजाय नवदिन या शिवदिन ही कहा जाता ।
नवरात्र शब्द से ‘;नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियां) का आभास’; होता है। नवरात्रों में शक्ति के नव रूपों की उपासना की जाती है क्योंकि ‘;रात्रि’; शब्द को सिद्धि का प्रतीक माना जाता है।
ऋषि-मुनियों ने वर्ष में दो बार नवरात्रों का विधान बनाया है यानि विक्रम संवत के पहले दिन चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (एकम) से नौ दिन अर्थात नवमी तक। इसी प्रकार इसके ठीक छह महिने बाद आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (एकम) से महानवमी तक।
नवरात्रों में शक्ति के 51 पीठों पर अनगिनत भक्तों के समुदाय उत्साह के साथ शक्ति की उपासना हेतु एकत्रित होते है | जो उपासक इन शक्ति पीठों पर नहीं पहुंच पाते हैं वें अपने निवास स्थानघर पर ही शक्ति का आह्वान करते हैं। वर्तमान काल में यह भी सत्य है कि काफी उपासक शक्ति पूजा रात्रि में करने के वनिस्पत दिन में ही पुरोहित को अपने घर बुलाकर संपन्न करा देते हैं।
ऋषि-मुनियों ने रात्रि के महत्व को वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में भी समझने और समझाने का प्रयत्न किया था। सर्वमान्य वैज्ञानिक तथ्य यही है कि रात्रि में प्रकृति के अधिकांश अवरोध खत्म हो जाते हैं। हम जानते हैं कि अगर दिन में किसी को आवाज दी जाये तो वह आवाज बहुत दूर तक नहीं पहुचं पाती है किंतु यदि रात्रि में आवाज दी जाए तो वही आवाज बहुत दूर तक पहुचं जाती है। इसके पीछे दिन के कोलाहल-शोरगुल के अलावा एक वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं। इसी वैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखते हुये रात्री में उच्च अवधारणा के साथ किये गये संकल्प अपनी शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं जिससे कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना की पूर्ति अवश्यंभावी होती है |
नवरात्रों के महत्व का वैज्ञानिक आधार
पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा करते समय एक साल में चार संधियां होती हैं जिनमें से मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय हमारे शरीर पर रोगाणुओं के आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है । ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियां बढ़ती हैं। अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए तथा शरीर को शुद्ध रखने के साथ साथ तन-मन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम ‘;नवरात्र’; है।
इन दिनों में हमारी मुख्य इन्द्रियों में अनुशासन, स्वच्छ्ता, तारतम्य स्थापित करने के प्रतीक रूप में एवं अपने शरीर तंत्र को पूरे वर्ष के लिए सुचारू रूप से क्रियाशील बनाये रखने हेतु” नौ द्वारों की शुद्धि का पर्व नवरात्रा” नौ दिन तक मनाया जाता है। हालांकि शरीर को सुचारू रखने के लिए हम हमारे शरीर की सफाई या शुद्धि तो प्रतिदिन करते ही हैं किन्तु अंग-प्रत्यंगों की बाहरी सफाई के साथ आंतरिक अंगो की सफाई करने हेतु हम प्रतिवर्ष 6 माह के अन्तराल मे नो दिनों तक संतुलित और सात्विक भोजन कर अपना ध्यान चिंतन और मनन में लगा कर स्वयं को भीतर से शक्तिशाली बनाते है। ऐसा करने से जहाँ एक तरफ हमें उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है वहीं दूसरी तरफ मौसम के बदलाव को सहने के लिए हम अपने आपको आंतरिक रूप से भी मजूबत बनाते हैं
जिस प्रकार मां के गर्भ में नौ महीने रहने के बाद ही हमारा जन्म होता है उसी प्रकार इन नवरात्रों में अपनी आत्मा को अपने मूल रूप यानि अपनी वास्तविक जड़ों तक वापस ले जाने हेतु हमें ध्यान, सत्संग एवं अन्य सात्विक कार्य करने चाहिये |
नवरात्र शब्द में छिपा हुआ है जीवन का हर पहलू शब्दों
नवरात्र दो शब्दों से मिलकर बना है यानि नव और रात्र। नव का अर्थ है नौ है वहीं रात्र शब्द में पुनः दो शब्द शामिल हैं:– रा+त्रि। “रा” का अर्थ है रात और “त्रि” का अर्थ है जीवन के तीन पहलू- शरीर, मन और आत्मा।
जीवन में प्रतेयक मनुष्य को तीन तरह की विकट समस्याओं का सामना करना होता है, यथा भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक। इन समस्याओं से जो मनुष्य को जो छुटकारा दिलवाती है वह होती है “रात्रि”। रात्रि या रात मनुष्यों को दुख से मुक्ति दिलाकर उनके जीवन में यश-सुख-सम्पदा लाती है। मनुष्य कैसी भी परिस्थिति में हो उसे रात में ही आराम मिलता है। रात की गोद में हम सभी अपने सारे सुख-दुख को भुला कर निद्रा की गोद मे चले जाते हैं।

महाशक्ति की आराधना का पर्व है नवरात्रि
देवी पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के विभिन्न नौ स्वरूपों को नवदुर्गा के नाम से जाना जाता है। नवरात्रों में हम पहले तीन दिन पार्वती के तीन स्वरूपों की अगले तीन दिन में लक्ष्मी माता के तीन स्वरूपों और आखरी के तीन दिन में माता सरस्वती के तीन स्वरूपों की पूजा करते हैं।

धार्मिक ग्रन्थों में दुर्गा सप्तशती के अन्तर्गत देव दानव युद्ध का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है जिसमे बताया गया है कि देवी भगवती और मां पार्वती ने किस प्रकार से देवताओं के साम्राज्य को स्थापित करने हेतु तीनों लोकों में उत्पात मचाने वाले बलशाली दानवों से लोहा लिया था। यही कारण है कि आज सारे भारत में हर जगह दुर्गा यानि नवदुर्गाओं के मन्दिर स्थपित हैं।
यह मान्यता भी है कि साधक अगर सम्पूर्ण दुर्गासप्तशती का पाठ नहीं भी कर सकें तो निम्नलिखित श्लोक का पाठ करने से उसे सम्पूर्ण दुर्गासप्तशती और नवदुर्गाओं के पूजन का फल प्राप्त हो जाता है।

सर्वमंगलमंगलये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणि नमोऽतु ते।। शरणांगतदीन आर्त परित्राण परायणे सर्वस्यार्तिहरे देवी नारायणि नमोऽस्तु ते।। सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते। भयेभ्यारत्नाहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ।।
वैसे तो दुर्गा के 108 नाम गिनाये जाते हैं लेकिन नवरात्रों में उनके स्थूल रूप को ध्यान में रखते हुए नौ दुर्गाओं की स्तुति और पूजा पाठ करने का गुप्त मंत्र ब्रहमा जी ने अपने पौत्र मार्कण्डेय ऋषि को दिया था। इसको देवीकवच भी कहते हैं। देवीकवच का पूरा पाठ दुर्गा सप्तशती के 56 श्लोकों के अन्दर मिलता है।
नौ दुर्गाओं के स्वरूप का वर्णन संक्षेप में ब्रहमा जी ने इस प्रकार से किया है।
शैलपुत्री – इसका अर्थ- पहाड़ों की पुत्री होता है।
ब्रह्मचारिणी – इसका अर्थ- ब्रह्मचारीणी।
चंद्रघंटा – इसका अर्थ- चाँद की तरह चमकने वाली।
कूष्माण्डा – इसका अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में है।
स्कंदमाता – इसका अर्थ- कार्तिक स्वामी की माता।
कात्यायनी – इसका अर्थ- कात्यायन आश्रम में जन्मि।
कालरात्रि – इसका अर्थ- काल का नाश करने वली।
महागौरी – इसका अर्थ- सफेद रंग वाली मां।
सिद्धिदात्री – इसका अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली।

शिव पुराण में भी इन दुर्गाओं के उत्पन्न होने की कथा का वर्णन आता है कि कैसे हिमालय राज की पुत्री पार्वती ने अपने भक्तों को सुरक्षित रखने के लिए तथा धरती, आकाश एवं पाताल में सुख शान्ति स्थापित करने के लिए दानवों- राक्षसों एवं अन्य आतंक फैलाने वाले तत्वों को नष्ट करने की प्रतिज्ञा की ओर समस्त नवदुर्गाओं को विस्तारित करके उनके 108 रूप धारण करने से तीनों लोकों में दानव और राक्षसों के साम्राज्य का अन्त किया।
इन नौ दुर्गाओं में सबसे प्रथम देवी का नाम है शैल पुत्री जिसकी पूजा नवरात्र के पहले दिन होती है। दूसरी देवी का नाम है ब्रहमचारिणी जिसकी पूजा नवरात्र के दूसरे दिन होती है। तीसरी देवी का नाम है चन्द्रघण्टा जिसकी पूजा नवरात्र के तीसरे दिन होती है। चौथी देवी का नाम है कूष्माण्डा जिसकी पूजा नवरात्र के चौथे दिन होती है। पांचवी दुर्गा का नाम है स्कन्दमाता जिसकी पूजा नवरात्र के पांचवें दिन होती है। छठी दुर्गा का नाम है कात्यायनी जिसकी पूजा नवरात्र के छठे दिन होती है । सातवी दुर्गा का नाम है कालरात्रि जिसकी पूजा नवरात्र के सातवें दिन होती है। आठवीं देवी का नाम है महागौरी जिसकी पूजा नवरात्र के आठवें दिन होती है। नवीं दुर्गा का नाम है सिद्धिदात्री जिसकी पूजा नवरात्र के अन्तिम दिन होती है।
जे.के.गर्ग
सन्दर्भ— मेरी डायरी के पन्ने,lवेबइण्डिया,विभिन्न पत्रिकाएँ,बोल्डस्काई,एस्ट्रोबिक्स.कॉम, भारत

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