नवरात्रि में घट स्थापना

maa durgaनवरात्रि में दुर्गा पूजा घटस्थापना के बाद की जाती है, परंतु इस वर्ष 8 साल बाद चित्रा नक्षत्र एवं वैधृति योग होने के कारण शास्त्रानुसार अभिजीत मुहूर्त में स्थापना करनी चाहिए। परंतु किसी कारणवश इस समय स्थापना नहीं कर सकें तो चर, लाभ, शुभ या राहुकाल छोड़कर स्थिर लग्न में भी स्थापना की जा सकतीहै। इस वर्ष शारदीय नवरात्र इस बार मंगलवार 13 अक्टूबर 2015 से शुरू हो रहे हैं, जो माता के भक्तों के लिए सुख-समृद्धि लेकर आएंगे। इस श्राद्ध पक्ष की तिथि क्षय होना एवं नवरात्र की तिथि में वृद्धि होना सुख-समृद्धि का संकेत है।
सूर्योदय के अनुसार मंगल मुहूर्त इस प्रकार हैं : –
चौघड़िया मुहूर्त : —
1. प्रात: 9.19-10.46 तक चर।
2. प्रात: 10.46-12.13 तक रात्रि 7.33 -9.06 तक लाभ।
3. दोपहर 12.13-1.40 तक रात्रि 12.13-1.46 तक अमृत।
4. रात्रि 10.40-12.13 तक शुभ।
अभिजीत मुहूर्त-
11.37से-12.25तक।
लग्न मुहूर्त :
1. प्रात : 6.22-6.45 तक कन्या (पत्रिका अनुसार शुभ)।
2. प्रात : 8.59-11.15 तक वृश्चिक।
3. दोपहर : 3.07-4.41 तक कुंभ*।
4. रात्रि : 7.52-9.50 तक वृषभ।
विशेष ध्यान रखें–
दोपहर 3.06-4.33 तक राहुकाल रहेगा नवरात्र मंगलवार को चित्रा नक्षत्र एवं वैदृती योग में शुरू हो रहे हैं। इसके कारण इस बार प्रात: में घट स्थापना का मुहूर्त नहीं हैं। इस बार घट स्थापना के लिए अभिजीत मुहूर्त प्रात: 11.37 से 12.25बजे तक रहेगा। चित्रा नक्षत्र शाम 4.38 बजे तक एवं वैदृती योग रात्रि 11.17 बजे तक रहेगा। इस बार दो प्रतिपदा होने 13-14 अक्टूबर को प्रतिपदा तिथि रहेगी, वहीं दुर्गाष्टमी 21 को मनाई जाएगी तथा अगले दिन रामनवमी एवं दशहरा एक ही दिन मनाया जाएगा।
इस बार महानवमी श्रवण नक्षत्रयुक्त होने से विजयदशमी पर्व भी इसी दिन मनाया जाएगा। श्रवण नक्षत्र में मनाया जाता है और इस बार यह नक्षत्र नवमी के दिन पड़ रहा है। जिसके कारण विजयदशमी 22 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी। नवरात्र में 19 अक्टूबर को सूर्य संक्रांति का पुण्यकाल पड़ रहा है। इस दिन सूर्य अपनी नीच राशि तुला में प्रवेश कर रहा है।
जानिए की कैसे करें घट स्थापना..???
घट स्थापना के स्थान को शुद्ध जल से साफ करके गंगाजल का छिड़काव करें। फिर अष्टदल बनाएं। उसके ऊपर एक लकड़ी का पाटा रखें और उस पर लाल रंग का वस्त्र बिछाएं। लाल वस्त्र के ऊपर अंकित चित्र की तरह पांच स्थान पर थोड़े-थोड़े चावल रखें। जिन पर क्रमशः गणेशजी, मातृका, लोकपाल, नवग्रह तथा वरुण देव को स्थान दें।
सर्वप्रथम थोड़े चावल रखकर श्रीगणेजी का स्मरण करते हुए स्थान ग्रहण करने का आग्रह करें। इसके बाद मातृका, लोकपाल, नवग्रह और वरुण देव को स्थापित करें और स्थान लेने का आह्वान करें। फिर गंगाजल से सभी को स्नान कराएं। स्नान के बाद तीन बार कलावा लपेटकर प्रत्येक देव को वस्त्र के रूप में अर्पित करें। अब हाथ जोड़कर देवों का आह्वान करें। देवों को स्थान देने के बाद अब आप अपने कलश के अनुसार जौ मिली मिट्टी बिछाएं। कलश में जल भरें।
अब कलश में थोड़ा और जल-गंगाजल डालते हुए ‘ॐ वरुणाय नमः’ मंत्र पढ़ें और कलश को पूर्ण रूप से भर दें। इसके बाद आम की टहनी (पल्लव) डालें। जौ या कच्चा चावल कटोरे में भरकर कलश के ऊपर रखें। फिर लाल कपड़े से लिपटा हुआ कच्चा नारियल कलश पर रख कलश को माथे के समीप लाएं और वरुण देवता को प्रणाम करते हुए रेत पर कलश स्थापित करें। कलश के ऊपर रोली से ॐ या स्वास्तिक लिखें। मां भगवती का ध्यान करते हुए अब आप मां भगवती की तस्वीर या मूर्ति को स्थान दें। एक नंबर पर थोड़े से चावल डालें। दुर्गा मां की षोडशोपचार विधि से पूजा करें। अब यदि सामान्य द्वीप अर्पित करना चाहते हैं, तो दीपक प्रज्ज्वलित करें।
यदि आप अखंड दीप अर्पित करना चाहते हैं, तो सूर्य देव का ध्यान करते हुए उन्हें अखंड ज्योति का गवाह रहने का निवेदन करते हुए जोत को प्रज्ज्वलित करें। यह ज्योति पूरे नौ दिनों तक जलती रहनी चाहिए। इसके बाद पुष्प लेकर मन में ही संकल्प लें कि मां मैं आज नवरात्र की प्रतिपदा से आपकी आराधना अमुक कार्य के लिए कर रहा/रही हूं, मेरी पूजा स्वीकार करके इष्ट कार्य को सिद्ध करो।

error: Content is protected !!