कर्मयोगी लोकनायक प्रेरक हैं महाराजा अग्रसेन

agarsenji maharaj-सुमित सारस्वत- व्यक्ति, समाज, राष्ट्र तथा जगत की उन्नति मूल रूप से जिन चार स्तंभों पर निर्भर होती हैं, वे हैं- आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक व सामाजिक। महाराजा अग्रसेन का जीवन-दर्शन चारों स्तंभों को दृढ़ करके उन्नत विश्व के नवनिर्माण का आधार बनाता है, वहीं ‘सर्वलोक हितं धर्मम्’ का पथ प्रशस्त करता है। महाराजा अग्रसेन ऐसे कर्मयोगी लोकनायक हैं जिन्होंने बाल्यकाल से ही, संघर्षों से जूझते हुए अपने आदर्श जीवन कर्म से, सकल मानव समाज को महानता का जीवन-पथ दर्शाया। चैतन्य आनंद की अगणित विशेषताओं से संपन्न, परम पवित्र, परिपूर्ण, परिशुद्ध, मानव की लोक कल्याणकारी आभा से युक्त महामानव अग्रसेन की महिमा से अनभिज्ञ होने के कारण उन्हें एक समाज विशेष का कुलपुरुष घोषित कर इतिहास ने हाशिए पर डाल दिया।
महाराजा अग्रसेन का जन्म सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा वल्लभ के यहां हुआ था। उन्होंने बचपन से ही वेद, शास्त्र, अस्त्र-शस्त्र, राजनीति और अर्थ नीति आदि का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। उन्होंने लोक कल्याणार्थ किए गए यज्ञ में जीवित पशुओं की बलि देने से इंकार कर दिया। यज्ञ को बीच में ही रोक दिया और कहा कि भविष्य में मेरे राज्य का कोई भी व्यक्ति यज्ञ में पशुबलि नहीं देगा, न पशु को मारेगा, न मांस खाएगा। राज्य का हर व्यक्ति प्राणीमात्र की रक्षा करेगा। इस घटना से प्रभावित होकर उन्होंने क्षत्रिय धर्म अपना लिया।
महाराजा अग्रसेन धार्मिक, शांति दूत, प्रजा वत्सल, हिंसा विरोधी, बली प्रथा को बंद करवाने वाले, करुणानिधि, सब जीवों से प्रेम, स्नेह रखने वाले दयालु राजा थे। जिन्होंने प्रजा की भलाई के लिए वणिक धर्म अपनाया था। उनके राज्य की राजधानी अग्रोहा थी। उनके शासन में अनुशासन का पालन होता था। जनता निष्ठापूर्वक स्वतंत्रता के साथ अपने कत्र्तव्य का निर्वाह करती थी। अग्रसेन ने कुशलतापूर्वक राज्य का संचालन करते हुए विस्तार किया तथा प्रजा हित में काम किए। वे धार्मिक प्रवृत्ति के पुरुष थे। धर्म में उनकी गहरी रुचि थी और वह साधना में विश्वास करते थे। उन्होंने अपने जीवन में कई बार माता लक्ष्मी से यह वरदान प्राप्त किया कि जब तक उनके कुल में लक्ष्मी की उपासना होती रहेगी, तब तक अग्रकुल धन व वैभव से सम्पन्न रहेगा।

सुमित सारस्वत
सुमित सारस्वत
समाजवाद के अग्रदूत कहलाने वाले अग्रसेन ने एक रुपया और एक ईंट की प्रथा चलाई। उन्होंने प्रजा को आज्ञा दी कि राज्य में बाहर से आकर बसने वाले व्यक्ति की सहायता के लिए राज्य का प्रत्येक निवासी उसे मकान बनाने के लिए एक ईंट और व्यापार करने के लिए एक रुपया देगा, जिससे आसानी से उसके लिए निवास स्थान व व्यापार का प्रबंध हो जाए। अग्रसेन ने 108 वर्षों तक राज किया। उन्हें 18 पुत्र हुए, जिनके नाम से 18 गौत्रों का प्रचलन हुआ। उन्होंने जिन जीवन मूल्यों को ग्रहण किया उनमें परंपरा एवं प्रयोग का संतुलित सामंजस्य दिखाई देता है। एक ओर हिन्दू धर्म ग्रथों में वैश्य वर्ण के लिए निर्देशित कर्मक्षेत्र को स्वीकार किया और दूसरी ओर देशकाल के परिप्रेक्ष्य में नए आदर्श स्थापित किए। उनके जीवन के मूल रूप से तीन आदर्श हैं- लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था, आर्थिक समरूपता एवं सामाजिक समानता। एक निश्चित आयु प्राप्त करने के बाद कुलदेवी महालक्ष्मी से परामर्श पर वे आग्रेय गणराज्य का शासन अपने ज्येष्ठ पुत्र विभु के हाथों में सौंप कर तपस्या करने चले गए।
महाराजा अग्रसेन समानता पर आधारित आर्थिक नीति को अपनाने वाले संसार के प्रथम सम्राट थे। आज भी इतिहास में महाराज अग्रसेन परम प्रतापी, धार्मिक, सहिष्णु, समाजवाद के प्रेरक महापुरुष के रूप में उल्लेखित हैं। अग्रसेन के जीवन मूल्य मानव आस्था के प्रतीक हैं। स्वहित को परे रखकर जनहित के लिए समर्पित ऐसी महान विभूति को शत-शत नमन।

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