दुर्गासप्तशती के पाठ में ध्यान देने योग्य कुछ बातें

maa durga1. दुर्गा सप्तशती के किसी भी चरित्र -का कभी भी आधा पाठ ना करें एवं न कोई वाक्य छोड़े।
2. पाठ को मन ही मन में करना निषेध माना गयाहै। अतः मंद स्वर में समान रूप से पाठ करें।
3. पाठ केवल पुस्तक से करें यदि कंठस्थ हो तो बिना पुस्तक के भी कर सकते हैं।
4. पुस्तक को चौकी पर रख कर पाठ करें। हाथ में लेकर पाठ करने से आधा फल प्राप्त होता है।
5. पाठ के समाप्त होने पर बालाओं व ब्राह्मण को भोजन करवाएं।

जानिए कि अभिचार कर्म में किन नर्वाण मंत्र का प्रयोगहोता हैं।।

जैसे—

1. मारण के लिए : —ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै देवदत्त रं रंखे खे मारय मारय रं रं शीघ्र भस्मी कुरू कुरू स्वाहा।

2. मोहन के लिए :—- क्लीं क्लीं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायैविच्चे देवदत्तं क्लीं क्लीं मोहन कुरू कुरूक्लीं क्लींस्वाहा॥

3. स्तम्भन के लिए : —-ऊँ ठं ठं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चेदेवदत्तं ह्रीं वाचं मुखं पदं स्तम्भय ह्रींजिहवांकीलय कीलय ह्रीं बुद्धि विनाशय -विनाशय ह्रीं।ठं ठं स्वाहा॥

4. आकर्षण के लिए :—- ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे देवदतं यंयं शीघ्रमार्कषय आकर्षय स्वाहा॥

5. उच्चाटन के लिए:—-ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे देवदत्तफट् उच्चाटन कुरू स्वाहा।

6. वशीकरण के लिए :– ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे देवदत्तंवषट् में वश्य कुरू स्वाहा।

07.—सर्व सुख समृद्धि के लिए—

।।सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके । शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते ।।

ऊँ जयन्ती मङ्गलाकाली भद्रकाली कपालिनी ।दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते ।।

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु शांतिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

जय जय श्री अम्बे माँ दुर्गा माँ ….
ॐ एम् ह्लीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ।।

नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाये..

नोट : मंत्र में जहां “देवदत्त” शब्द आया है वहां संबंधित व्यक्ति का नाम लेना चाहिये।।
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पंडित दयानन्द शास्त्री
पंडित दयानन्द शास्त्री
ऐसे करें ” माँ” की आराधना(एक भावांजलि–कविता)—-
माँ तुम आओ सिंह की सवार बन कर ।।
माँ तुम आओ रंगो की फुहार बनकर ।।
माँ तुम आओ पुष्पों की बहार बनकर ।।
माँ तुम आओ सुहागन का श्रृंगार बनकर ।।
माँ तुम आओ खुशीयाँ अपार बनकर ।।
माँ तुम आओ रसोई में प्रसाद बनकर ।।
माँ तुम आओ रिश्तो में प्यार बनकर ।।
माँ तुम आओ बच्चो का दुलार बनकर ।।
माँ तुम आओ व्यापार में लाभ बनकर ।।
माँ तुम आओ समाज में संस्कार बनकर ।।
माँ तुम आओ सिर्फ तुम आओ,
क्योंकि तुम्हारे आने से ये सारे।।
सुख खुद ही चले आयेगें।
तुम्हारे दास बनकार ।।
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इस नवरात्रि पर इन उपायों द्वारा करें कार्य बाधा का शमन—

—नित्य प्रात: काल स्नानदि से निवृत होकर गीता के ग्यारवे अध्याय का पाठ करने से कार्यो मे आने वाली बाधायें नष्ट हो जाती है ।
—-गीता के ग्यारवे अध्याय के 36 वे श्लोक को लाल स्याही से लिखकर घर मे टांग दे । सभी प्रकार की बाधायें दूर हो जायेगी ।
—अपने दिन का आरंभ करते समय जब आप बाहर निकले तो पहले दाया पांव बाहर निकालें । आपके वांछित कार्यो मे कोई बाधा नही आयेगी ।
—-घर से निकलते समय कोई मीठा पदार्थ -गुड़, शक्कर, मिठाई या शक्कर मिला दही खा ले ।कार्यों की बाधा दूर हो जायेगी ।
—-तुलसी के तीन चार पत्तो को ग्रहण करके घर से बाहर जाने पर भी कार्यों की सभी बाधाए दूर हो जाती है ।
—-अगर बार-बार कार्यों मे बाधा आ रही हो तो अपने घर मे श्यामा तुलसी का पौधा लगाऐ । समध्याकाल शुध्द घी का दीपक जलाऐं ।
—–5 बत्ती का दीपक हनुमानजी के मंन्दिर मे जला आयें । इससे सभी प्रकार की बाधाएं और परेशानियां दूर हो जायेगी ।
—-प्रात:काल भगवती दूर्गा को पॉच पुष्प चढाएं । आपके कार्यों की सभी बाधाऐ दूर हो जायेगी ।
—घर से बाहर निकलते समय जिधर का स्वर चल रहा हो , उसी तरफ का पैर पहले बाहर निकाले । इससे कार्यों मे बाधा नही आयेगी ।

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