बाबासाहेब अम्बेडकर ने जीवनपर्यन्तवर्ण व्यवस्था एवं हिन्दू समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष किया | बाबासाहेब अम्बेडकर कोभारत रत्नसे भी सम्मानित किया गया है | बाबासहिब विश्व की एक बहुत बड़ी आबादी (दलितों) के प्रेरणा स्रोत हैं,इसीलिए उन्हें विश्व भूषण कहना भी अतिशयोक्ति पूर्ण नहीं है। 26 नवम्बर एवं 27 नवम्बर 2015 को देश के दोनों सदन (लोकसभा एवं राज्य सभा) उनके सम्मान एवं सविधान निर्माण में उनके अतुल्य योगदान के बारे में चर्चा करेगें |
बाल्यकाल एवं शिक्षा
बाबासाहेब अम्बेडकर का जन्म महू छावनी (मध्यप्रदेश)में गरीब दलित परिवार मे हुआ था। बाबासहिब रामजी मालोजी सकपालऔरभीमाबाईकी 14 वीं संतान थे। उनके माता-पिताहिंदूमहार(दलित)जाति के थे | स्कूली पढ़ाई में सक्षम होने के बावजूद उन्हें एवं अन्य दलितों को विद्यालय मे अलग से बिठाया जाता था और अध्यापकों द्वारा न तो उन पर ध्यान ही दिया जाता था,न ही उन्हें कोई सहायता दी जाती थी। 1894 मे रामजी सकपाल के सेवानिवृत्त हो जाने के बाद उनका परिवार सतारा आ गया था | बाबासहिब पर उनके ब्राह्मण शिक्षक महादेव विशेष स्नेह रखते थे, इन्हीं के कहने पर अम्बेडकर ने अपने नाम से सकपाल हटाकर अम्बेडकर जोड़ लिया जो बाबासहिब के गांव नाम “अंबावडे” पर आधारित था।
1907में मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद अम्बेडकर ने बंबई विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और इस तरह वो भारत में कॉलेज में प्रवेश लेने वाले पहले दलित बन गये। 1908 मेंउन्होंने एलिफिंस्टोन कॉलेज में प्रवेश लिया औरबड़ौदाके गायकवाड़ शासकसहयाजी राव तृतीयके सहयोगसे अमेरिका मे उच्च अध्ययन के लिये चले गये | किया।1916 में,उन्होंने अपने शोध को “इवोल्युशन ओफ प्रोविन्शिअल फिनान्स इन ब्रिटिश इंडिया” के रूप में प्रकाशित किया। कुछ समय बाद वेलंदन चले गये जहाँ उन्होने लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स में अध्ययन किया किन्तु अपने अध्ययन के मध्य ही छात्रवृत्ति की समाप्ति की वजह से उन्हें अपना अध्ययन बीच मे ही छोड़ कर भारत वापस लौटना पडा़ | उन्हें बंबई के सिडनेम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनोमिक्स मे राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में नौकरी मिल गयी।1920में कोल्हापुर के महाराजा एवं अपने पारसी मित्र के सहायता से वे वापस इंग्लैंड चले गये |1923में उन्होंने अपना शोध “प्रोब्लेम्स ऑफ द रुपी” पूरा किया| उन्हें लंदन विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टर ऑफ साईंस की उपाधि प्रदान की गयी।
छुआछूत के विरुद्ध संघर्ष
भारत के एक प्रमुख विद्वान के तौर पर 1919 में बाबासहिब कोसाउथ बोरोह समिति के समक्ष गवाही देने के लिये आमंत्रित किया गया। इस सुनवाई के दौरान,अम्बेडकर ने दलितों और अन्य धार्मिक समुदायों के लियेपृथक निर्वाचिका(separate electorates)और आरक्षण देने की वकालत की। उन्होंनेबंबई मेंउन्होंने साप्ताहिक मूकनायक के प्रकाशन की शुरूआत की। अम्बेडकर नेबहिष्कृत हितकारिणी सभाकी स्थापना भी की जिसका उद्देश्य दलित वर्गों में शिक्षा का प्रसार और उनके सामाजिक आर्थिक उत्थान के लिये काम करना था। सन्1926में,वो बंबई विधान परिषद के एक मनोनीत सदस्य बन गये। सन1927में डॉ॰ अम्बेडकर ने छुआछूत के खिलाफ एक व्यापक आंदोलन शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों और जुलूसों के द्वारा,पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी लोगों के लिये खुलवाने के साथ ही उन्होनें अछूतों को भी हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये भी संघर्ष किया।
पूना संधि
अम्बेडकर को 1931 मे लंदन में दूसरे गोलमेज सम्मेलन में,भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। यहाँ उनकी अछूतों को पृथक निर्वाचिका देने के मुद्दे पर तीखी बहस हुई। यहाँ पर धर्म और जाति के आधार पर पृथक निर्वाचिका देने के प्रबल विरोधी गांधीजी ने कहा कि अछूतों को दी गयी पृथक निर्वाचिकाहिंदू समाज की भावी पीढी़ को हमेशा-हमेशा के लिये विभाजित कर देगी। किन्तु1932मे जब ब्रिटिशों ने अम्बेडकर के साथ सहमति व्यक्त करते हुये अछूतों कोपृथक निर्वाचिकादेने की घोषणा कीतब गांधी ने इसके विरोध मेपुणेकीयरवदासेंट्रल जेल मेंआमरण अनशनशुरु कर दिया। अनशन के कारण गांधीजी मरणासन्न हो गये थे अत: उस वक्त के वातावरण को अंबेडकर ने अपनी पृथक निर्वाचिका की माँग वापस ले ली एवं इसके बदले मे अछूतों को सीटों के आरक्षण,मंदिरों में प्रवेश/पूजा के अधिकार एवं छूआ-छूत खत्म करने की बात स्वीकार कर ली |
राजनीतिक कार्य कलाप
बाबा साहिब के निजी पुस्तकालय मे 50000 से अधिक पुस्तकें थीं।1936में,अम्बेडकर नेस्वतंत्र लेबर पार्टीकी स्थापना की,जो1937में केन्द्रीय विधान सभा चुनावों मे 15 सीटें जीती। उन्होंने अपनी पुस्तकजाति के विनाशभी इसी वर्ष प्रकाशित की ।1941और1945के बीच में उन्होंने बड़ी संख्या में अत्यधिक विवादास्पद पुस्तकें और पर्चे प्रकाशित किये जिनमे‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’भी शामिल है,जिसमें उन्होनेमुस्लिम लीगकी मुसलमानों के लिए एक अलग देशपाकिस्तानकी मांग की आलोचना की।वॉट काँग्रेस एंड गांधी हैव डन टू द अनटचेबल्स(काँग्रेस और गान्धी ने अछूतों के लिये क्या किया) के साथ,अम्बेडकर ने गांधी और कांग्रेस दोनो पर अपने हमलों को तीखा कर दिया उन्होने उन पर ढोंग करने का आरोप लगाया।उन्होने अपनी पुस्तक‘हू वर द शुद्राज़?’(शुद्र कौन थे?)के द्वारा हिंदू जाति व्यवस्था के पदानुक्रम में सबसे नीची जाति यानी शुद्रों के अस्तित्व मे आने की व्याख्या की | अम्बेडकर ने अपनी राजनीतिक पार्टी को अखिल भारतीय अनुसूचित जाति फेडरेशन मे बदल दिया किन्तु 1946 में आयोजित भारत के संविधान सभा के लिए हुये चुनाव में इसका प्रदर्शन खराब ही रहा। 1948द अनटचेबलस: ए थीसिस ऑन द ओरिजन ऑफ अनटचेबिलिटी (अस्पृश्य: अस्पृश्यता के मूल पर एक शोध)मे अम्बेडकर ने हिंदू धर्म की आलोचना की।
भारतीय संविधान के शिल्पकार
15 अगस्त 1947 में स्वतंत्र भारत की सरकार में अम्बेडकर को कानून मंत्री के रूप में शामिल किया गया | 29 अगस्त 1947 कोअम्बेडकर को स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माण के लिए बनी के संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। संविधान के प्रारूप मे धार्मिक स्वतंत्रता,अस्पृश्यता का अंत और सभी प्रकार के भेदभावों को गैर कानूनी करार दिया गया। अम्बेडकर ने महिलाओं के लिए व्यापक आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की वकालत की और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए सिविल सेवाओं,स्कूलों और कॉलेजों की नौकरियों मे आरक्षण प्रणाली शुरू के लिए सभा का समर्थन किया | 26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अपना लिया। अपने काम को पूरा करने के बाद,बोलते हुए,अम्बेडकर ने कहा-“मैं महसूस करता हूं कि संविधान,साध्य है,यह लचीला है पर साथ ही यह इतना मज़बूत भी है कि देश को शांति और युद्ध दोनों के समय जोड़ कर रख सके | 1951 मे संसद में अपने हिन्दू कोड बिल के मसौदे को रोके जाने के बाद अम्बेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया इस मसौदे मे उत्तराधिकार,विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की मांग की गयी थी। अम्बेडकर ने 1952 में लोक सभा का चुनाव एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप मे लड़ा किन्तु वे चुनाव हार गये। मार्च 1952 मे उन्हें संसद के ऊपरी सदन यानि राज्य सभा के लिए नियुक्त किया गया |
हिदू धर्म को त्याग बौद्ध धर्म को अंगीकार किया
अम्बेडकर के राजनीतिक दर्शन के कारण बड़ी संख्या में दलित राजनीतिक दल,प्रकाशन और कार्यकर्ता संघ अस्तित्व मे आये है जो पूरे भारत में सक्रिय रहते हैं | 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में अम्बेडकर ने उनके समर्थकों के साथ एक औपचारिक सार्वजनिक समारोह का आयोजन किया। अम्बेडकर ने एक बौद्ध भिक्षु से पारंपरिक तरीके सेतीन रत्नग्रहण औरपंचशीलको अपनाते हुये बौद्ध धर्म ग्रहण किया। इसके बाद उन्होने एक अनुमान के अनुसार लगभग 500000 समर्थको को बौद्ध धर्म मे परिवर्तित किया। डॉ अम्बेडकरर को भारतीय बौद्ध भिक्षुओं ने बोधिसत्व की उपाधि प्रदान की थी किन्तु उन्होने खुद को कभी भी बोधिसत्व नहीं कहा। | उन्होंने अपनी अंतिम पांडुलिपिबुद्ध या कार्ल मार्क्सको2 दिसंबर1956को पूरा किया। डा बी.आर. अम्बेडकर ने दीक्षा भूमि,नागपुर,भारत में ऐतिहासिक बौद्ध धर्मं में परिवर्तन के अवसर पर,14 अक्टूबर 1956 को अपने अनुयायियों के लिए 22 प्रतिज्ञाएँ निर्धारित कीं |
1948 से,अम्बेडकरमधुमेहसे पीड़ित थे। राजनीतिक मुद्दों से परेशान अम्बेडकर का स्वास्थ्य बद से बदतर होता चला गया | अपनी अंतिम पांडुलिपि बुद्ध और उनके धम्म को पूरा करने के तीन दिन के बाद 6 दिसम्बर 1956 को अम्बेडकर की मृत्यु नींद में दिल्ली में उनके घर मे हो गई।7 दिसंबरकोचौपाटी समुद्र तटपर बौद्ध शैली मे अंतिम संस्कार किया गया जिसमें सैकड़ों हजारों समर्थकों,कार्यकर्ताओं और प्रशंसकों ने भाग लिया।
सकलंन कर्ता—डा. जे. के.गर्ग
सन्दर्भ—विकीपीडिया,भारत ज्ञान कोष,गूगल सर्च एवं अन्य
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