डॉ॰ राजेन्द्र प्रसादके 131वें जन्म दिवस पर कर्तज्ञ राष्ट्र के नागरिकों के श्रद्दा पुष्प

dr-rajendra-prasadप्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का जन्म3दिसम्बर1884को हुआ था। राजेन्द्र बाबू के पिता महादेव सहाय संस्कृत एवं फारसी के विद्वान थे एवं उनकी माता कमलेश्वरी देवी एक धर्मपरायण महिला थीं। वे भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से थे|पूरे देश में उनकी लोकप्रियता के कारण उन्हें देशरत्न राजेन्द्र बाबू के नाम से पुकारा जाता था।
प्रारंभिक जीवन
पांच वर्ष की उम्र में ही राजेन्द्र बाबू ने एक मौलवी साहब से फारसी सीखना शुरू किया। उसके बाद वे अपनी प्रारंभिक शिक्षा के लिए छपरा के जिला स्कूल गए।18वर्ष की उम्र में उन्होंनेकोलकाता विश्वविद्यालयमें प्रवेश हेतु परीक्षा दी जिसमें उन्हें प्रथम स्थान प्राप्त हुआथा जिसके फलस्वरूप उन्होंने1902मेंकोलकाताके प्रसिद्धप्रेसिडेंसी कॉलेजमें प्रवेश लिया।1915में उन्होंने स्वर्ण पद के साथ एलएलएम की परीक्षा पास की और बाद में लॉ में ही उन्होंने डॉक्ट्रेट किया | वे अंग्रेजी,हिन्दी,उर्दू,फ़ारसी वबंगाली भाषाऔरगुजरातीभाषा के जानकर थे |1926ई० में वे बिहार प्रदेशीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के और1927ई० में उत्तर प्रदेशीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति थे |
स्वतंत्रता आंदोलन में राजेन्द्र बाबू का योगदान
स्वदेशी प्रसार एवं विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार आंदोलन मै राजेन्द्र प्रसाद ने अपने छात्रालय के छात्रों के साथ भाग लिया। एक दिन सभी छात्रों के विदेशी कपड़ों की होली जला दी गई। जब राजेन्द्र प्रसाद का बक्सा खोला गया तो एक भी कपड़ा विदेशी नहीं निकला।महात्मा गाँधीकी निष्ठा,निडरता,समर्पण एवं देशभक्ति से युवा राजेन्द्र अत्याधिक प्रभावित हुए थे जिसके फलस्वरूप उन्होंने1921मेंकोलकाता विश्वविद्यालयके सीनेटर के पद को त्याग दिया।1914मेंबिहारऔरबंगालमे आईबाढमें उन्होंने सच्चे मन से सेवा कार्य किया।वे1917केदिसम्बरमाह में कलकत्ता में आयोजित’ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी’का अधिवेशन में भी वे शामिल हुए, इस अधिवेशन में उनके साथ ही एक सांवले रंग का दुबला-पतला आदमी बैठा था मगर उसकी आँखें बड़ी तेज़ और चमकीली थी। राजेन्द्र प्रसाद ने सुना था कि वहअफ़्रीकासे आया है लेकिन राजेन्द्र प्रसाद अपने संकोच के कारण उससे बातचीत न कर सके। यह व्यक्ति और कोई नहींमहात्मा गांधीही थे। वह अभी-अभीदक्षिण अफ़्रीकामें सरकारी दमन के विरुद्ध संघर्ष करकेभारतलौटे थे। कालान्तर में राजेन्द्र प्रसाद गांधी जी के बहुत निष्ठावान अनुयायी बने। उन्होंने स्वयं के जीवन को पूरी तरह स्वाधीनता संग्राम के लिए समर्पित कर दिया। गांधीजी के पास बाबू राजेन्द्र प्रसाद की देश भक्ति की ख़्याति पहुँच चुकी थीं ,गांधी जी ने पहला सत्याग्रह आन्दोलन बिहार के चम्पारन मै किया था, गांधी जी ने राजेन्द्र प्रसाद को चम्पारन की स्थिति बताते हुए एक तार भेजा और कहा कि वह तुरन्त कुछ स्वयंसेवकों को साथ लेकर वहाँ आ जायें। बाबू राजेन्द्र प्रसाद के जीवन में यह नया मोड़ था। गांधीजी के आदेश की अनुपालना में राजेन्द्र बाबु ने चम्पारन आन्दोलन में तन-मन-धन से भाग लिया |राजेन्द्र बाबू ने हरिजनों के उत्थान के लिये बापूजी के साथ कंधे से कंधा मिला कर काम किया | डा. राजेन्द्र प्रसाद जी का जीवन सादगी की अनुकरणीय उदाहरण बन गया था उन्होंने अपने संस्मरण में लिखा है कि”सच तो यह है कि हम हमारा सारा काम स्वयं ही करते थे जैसे कि अपने कमरे में झाड़ू लगाना,रसोईघर साफ़ करना,अपना बर्तन मांजना-धोना,अपना सामान उठाना और अब गाड़ी में भी तीसरे दर्जे में यात्रा करना अपमानजनक नहीं लगता था” |
बिहार में नमक सत्याग्रह का आरम्भ राजेन्द्र प्रसाद के नेतृत्व में हुआ। पुलिस आक्रामण के बावजूद नमक क़ानून के उल्लघंन के लिये पटना में नख़ास तालाब चुना गया। स्वयंसेवकों के दल उत्साहपूर्वक एक के बाद एक आते और नमक बनाने के लिये गिरफ्तार कर लिये जाते। राजेन्द्र प्रसाद ने उस निर्मित नमक को बेचकर धन इकट्ठा किया। एक बार तो वह पुलिस की लाठियों द्वारा गम्भीर रूप से घायल हो गये थे। उन्हें छः महीने की जेल हुई। यह उनकी पहली जेल यात्रा थीबिहार,सिंध एवक्वेटाके1934केभूकंपके समय उन्होंने अनेको राहत-शिविरों का संचालन किया ।1934में वेभारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसकेमुंबईअधिवेशन में अध्यक्ष चुने गये। 1939 में वेनेताजी सुभाषचंद्र बोसके अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देने पर कांग्रेस अध्यक्ष चुने गये।
दुसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति पर ब्रिटेन ने महसूस कर लिया था कि भारत को और अधिक समय तक ब्रिटेन के आधीन रखना असंभव है इसीलिये ब्रिटिश प्रधानमंत्रीएटलीने घोषणा की कि वह भारतीय नेताओं के साथ देश के विधान और सत्ता परिवर्तन के बारे में विचार-विमर्श करेंगे। सन1946में भारत आने वाले ब्रिटिशकैबिनेट मिशनके प्रयास असफल रहे थे। यद्यपि केन्द्रीय और प्रांतीय विधान मंडलों के चुनाव और एक अंतरिम राष्ट्रीय सरकार बनाने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया था। सन1946मेंजवाहर लाल नेहरूके नेतृत्व में बारह मंत्रियों के साथ एक अंतरिम सरकार बनी। राजेन्द्र प्रसाद को कृषि और खाद्य मंत्री बनाया गया। देश में इस समय खाद्य पदार्थों की बहुत कमी थी और उन्होंने खाद्य पदार्थों का उत्पादन बढ़ाने के लिये एक योजना बनाई। सन्1946में,कलकत्ता में साम्प्रदायिक दंगे आरम्भ हुये और फिर पूरे बंगाल और बिहार में फैल गये। राजेन्द्र प्रसाद ने जवाहर लाल नेहरू के साथ दंगाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा करते हुए,लोगों से अपना मानसिक संतुलन एवं विवेक बनाए रखने की अपील की | वर्षों तक ख़ून पसीना एक कर के और दुख उठाने के पश्चात15अगस्त,सन्1947को हमें आज़ादी मिली |
संविधान सभा के अध्यक्ष

डा. जे. के. गर्ग
डा. जे. के. गर्ग
स्वाधीनता से पहले जुलाई सन्1946में हमारा संविधान बनाने के लिए एक संविधान सभा का संगठन किया गया। राजेन्द्र प्रसाद को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। भारतीय संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन9दिसम्बर सन्1946को हुआ। संविधान सभा के परिश्रम से26नवम्बर सन्1949को भारत की जनता ने अपने को संविधान दिया जिसका आदर्श था न्याय,स्वाधीनता,बराबरी और बन्धुत्व और सबसे ऊपर राष्ट्र की एकता जिसमें कुछ मूलभूत अधिकार निहित हैं, इसमे भविष्य में भारत के विकास की दिशा,पिछड़े वर्ग,महिलाओं की उन्नति और विशेष क्षेत्रों के लिए विशेष प्रावधान हैं। भारत26जनवरी सन्1950में गणतंत्र बना और राजेन्द्र प्रसाद उसके प्रथम राष्ट्रपति बने।
राजेन्द्र प्रसादजी ने स्वयं भी कई विशिष्ट पुस्तकें लिखीं। जिनमें उनकी आत्मकथा (1946),चम्पारन में सत्याग्रह (1922),इंडिया डिवाइडेड (1946),महात्मा गांधी एंड बिहार,सम रेमिनिसन्सेज (1949),बापू के क़दमों में (1954)भी सम्मिलित हैं।
राष्ट्रपति राजेन्द्र बाबू
राजेन्द्र बाबू भारत के एकमात्र राष्ट्रपति थे जिन्होंने दो कार्य-कालों तक राष्ट्रपति पद पर कार्य किया। राष्ट्रपति के पद पर राजेन्द्र प्रसाद ने सदभावना के लिए कई देशों की यात्रायें भी की। उन्होंने इस आण्विक युग में शान्ति की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। राष्ट्रपति के तौर पर उन्होंने कभी भी अपने संवैधानिक अधिकारों मेंप्रधानमंत्रीया कांग्रेस को दखलअंदाजी का मौका नहीं दिया और हमेशा स्वतन्त्र रूप से कार्य करते रहे। हिन्दू अधिनियम पारित करते समय उन्होंने काफी कड़ा रुख अपनाया था। राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने कई ऐसे दृष्टान्त छोड़े जो बाद में उनके परवर्तियों के लिए मिसाल के तौर पर काम करते रहे। सन1962में अवकाश प्राप्त करने पर राष्ट्र ने उन्हें “भारत रत्‍न” की सर्वश्रेष्ठ उपाधि से सम्मानित किया। यह उस पुत्र के लिये कृतज्ञता का प्रतीक था जिसने अपनी आत्मा की आवाज़ सुनकर आधी शताब्दी तक अपनी मातृभूमि की सेवा की थी।
राजेन्द्र बाबु ने अपने राष्ट्रपति के कार्य काल की समाप्ति के बाद पटना के समीपट सदाकत आश्रम को अपना निवास बनाया | 1962 में उनकी धर्मपत्नी राजवंशी देवी का निधन हो गया |28फ़रवरी1963को राजेन्द्र बाबु पंचमहाभूतोंमें विलीन हो गये |
संकलनकर्ता—डा. जे.के.गर्ग
सन्दर्भ—-विकीपीडिया,गूगलसर्च आदि

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