क्वालिटी लाइफ स्टाइल जिएं पर सेहत की कीमत पर नहीं

विश्व अस्थमा दिवस 3 मई को विशेष
प्रत्येक सौ में से पांच लोग अस्थमा से पीडि़त
ब्रेड, पिज्जा, बर्गर, पाव ने बढ़ाया बच्चों में श्वास रोग

सन्तोष गुप्ता
सन्तोष गुप्ता
प्रत्येक सौ में से पांच लोग आज अस्थमा रोग से पीडि़त हैं। बच्चों में तो यह आंकड़ा और बढ़ा हुआ है। प्रत्येक तीस बच्चों में से तीन बच्चे श्वास रोग से पीडि़त पाए जा रहे हैं। इसके मूल में वैसे तो बहुत से कारण हैं लेकिन जिन सूक्ष्म कारणों पर हमारा ध्यान नहीं जा रहा उनमें हमारी ‘क्वालिटी लाइफ स्टाइलÓ विशेष है।
विश्व अस्थमा दिवस 3 मई के अवसर पर अपने पाठकों के लिए हमने विशेष अध्ययन से वह जानकारी जुटाई है जिससे वर्तमान में लोगों में अस्थमा रोग बढ़ रहा है। मौटे तौर पर जो कारण सामने आए हैं उनमें चौंकाने वाली बात यह है कि इस रोग के फैलने और बढऩे के मूल में हम स्वयं ही जिम्मेदार है और स्वयं ही जवाबदेह भी। दरअसल वर्तमान में हर मध्यम वर्गीय परिवार ‘हम दो हमारे दोÓ अथवा ‘हम दो हमारा एकÓ की ‘क्वालिटी लाइफ स्टाइटÓ जीने में लगा है। इस जीवन शैली में परिवारजनों के पास भौतिक सुख-सुविधाओं के सभी साधन-संसाधन तो होते हैं नहीं होता है तो बस अपने स्वस्थ रहने के तौर तरीकों पर ध्यान देने का समय। दैनिक दिनचर्या में नौकरी-व्यापार-काम-काज की भागमभाग इतनी है कि लोगों को उन बातों का ख्याल ही नहीं आता जिनके कारण अपने ही घर से श्वास रोगों को बुलावा दिया जा रहा होता है।
उदाहरण के तौर पर इन दिनों गर्मियों का मौसम है, अमूमन प्रत्येक घर में कूलर-एसी आदि ठण्डी हवा देने वाले यंत्र-उपकरण काम में लिए जा रहे हैं। लोगों को शायद ही ध्यान होगा कि कूलर को इस्तेमाल करने से पहले वह विगत चार-छह माह से बंद रखा हुआ था। संभव है पिछली बार जब इस्तेमाल में लिया गया था उसके बाद उसकी ठीक से साफ-सफाई कर उसके पैड इत्यादी बदलवा कर उसे रखा गया हो या वापस काम में लेते समय उसे साफ किया गया हो। कूलर को पैड बदलवाए बिना अथवा साफ किए बिना इस्तेमाल में लेने से बच्चों में फंगस का संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है। इससे उन्हें नासिका व श्वास रोग हो सकता है। फंगस की वजह से गर्मी व सर्दी दोनों ही सीजन में उन्हें नासिका एवं श्वास की तकलीफ रहने लगती है। इन दिनों में स्कूलों में जितने बच्चे अधिक छुट्टी करते हैं उनका मुख्य कारण नासिका रोग से पीडि़त होना ही होता है।
इसी तरह अब यदि थोड़ा सा ध्यान दें तो पुराने जमाने में हमारे दादा-दादी हर सीजन के बाद घर के धान, बिस्तर, रजाई, गद्दे, तकिये आदि को तेज धूप दिखाया करते थे। इसके पीछे कारण था कि वे इन बिस्तरों में पैदा होने वाले कीड़ों को समूल नष्ट करने का प्राकृतिक तरीका इस्तेमाल में लेते थे। करीब 40 से 45 डिग्री तापमान में यह कीड़ा मर जाया करता है। आप यह जानकर हैरान होंगे कि घरों में इस्तेमाल आने वाले रूई के प्रत्येक गद्दे में कम से कम 20 हजार हाऊस डस्ट माइट हो सकते हैं। इनकी वजह से लोगों को रात में और सुबह खांसी का उठाव या छींक आदि की संभावना बढ़ जाती है। वर्तमान में जिस जीवन शैली को हम जी रहे हैं उसमें तो अपने बिस्तरों को धूप दिखाने का किसी के पास समय ही नहीं है। उलटा घरों में आने वाली धूप और रोशनी को भी लोगों ने खिड़की-झरोखे बंद कर वहां एयरकंडीशनर और कूलर आदि लगा लिए हैं। इतना ही नहीं हमने अपने पालतू जानवरों को भी अपने घरों के भीतर यहां तक कि बिस्तर तक पहुंचने और आराम फरमाने की स्वीकृति प्रदान कर दी है। पालतू जानवरों के बाल, उनके शरीर से टपकने वाला द्रव्य आदि श्वास रोग के कारण बनते हैं। देखा जाए तो हमारी इस अनदेखी को नासिका रोग (एलर्जिक राईनाईटिस), श्वास रोग, छींक, खांसी आदि रोगों को निमंत्रण देना ही कहा जा सकता है।
शेष यदि कोई कसर रह गई तो वह हमने अपने खान-पान की आधुनिकता में पूरी करली। सुबह नाश्ते में हो या दिन के भोजन में अथवा रात को लाइट डीनर के चक्कर में हम स्वयं भी पाव, ब्रेड, पिज्जा, बर्गर आदि खमीर उठने वाले बेकरी प्रोडेक्ट का इस्तेमाल करने से परहेज नहीं रखते। यदा-कदा हम डिब्बा बंद रेडी टू ईट फूड प्रोडेक्ट का भी उपयोग कर लेते हैं। दर असल बेकरी प्रोडेक्ट सामग्री में एग पॉलिस होती है जोकि एलर्जी का मुख्य कारण है।
श्वास एवं अस्थमा रोगों के बढऩे में एक जो मुख्य कारण है वह अजमेर के संदर्भ में तो विशेष रूप से है। अजमेर के आस-पास खाली भूमि पर गाजर घास जिसे बंदर की रोटी, छिलछिल आदि नामों से भी जाना जाता है, से उठने वाले परागकणों की वजह से भी अजमेर में अस्थमा व श्वास रोगियों की संख्या में इजाफा हुआ है। सामान्य रूप से इस तरह के पौधों से बढऩे वाले अस्थमा व श्वास रोग का असर फरवरी से अप्रेल माह में ज्यादा दिखाई देता है। लोगों को नासिका रोग होने लगता है। छींक आना, जुखाम होना, नाक व आंख में खुजली होना, खांसी उठना व गले में खरास रहना आदि श्वास की तकलीफ होने लगती है।
मृत्यु का तीसरा बड़ा कारण है श्वास रोग——-
वैसे प्राणी की मृत्यु के तीन बड़े कारणों में अस्थमा व श्वास रोगी होना तीसरा कारण है। लेकिन जिस तरह से वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। जीवन शैली बदल रही है। वातावरण में घूंआ-गर्द छाई हुई है। खान-पान बिगड़ रहा है। इस रोग के बढऩे की संभावना उतनी ही तेजी से बढ़ती जा रही है। मृत्यु के कारणों में यूं तो पहले नंबर पर ब्रेन इंजरी को लिया जाता है। दूसरे नंबर में ह्रदय रोगी को और तीसरे नंबर पर ही श्वास रोगी आता। श्वास रोग को वंशानुगत रोग भी माना जाता है। विगत वर्षों में हुए अध्ययन में अब इसमें बहुत से कारण और जुड़ गए हैं। इनमें मच्छरों को भी बढ़ते अस्थमा रोग का जिम्मेदार माना जाने लगा है। कोकरोज एलर्जन इनमें आम है।
क्या हैं बचाव के रास्ते——-
घरों को धूप, हवा रोशनी के लिए खुला रखें।
बिस्तरों को समय-समय पर धूप दिखाएं।
अपने आस-पास गाजर घास को ना पनपने दें।
साफ-सफाई का ध्यान रखें।
कूलर, एसी आदि को सर्विस करा कर ही इस्तेमाल करें।
जंकफूड एवं बेकरी या खमीर उठने वाले प्रोडेक्ट के सेवन से परहेज रखें।
खुली और स्वच्छ हवा में नियमित योग-प्राणायाम करें।
पालतू जानवरों से बाहर व श्वास रोगियों सेे दूर रखें।
क्या कहते हैं डाक्टर—-
डॉ. प्रमोद दाधीच
डॉ. प्रमोद दाधीच
विश्व में श्वास रोग की वजह से होने वाली मौतों के मध्यनजर जन-जागृति के लिए मई के पहले मंगलवार को विश्व अस्थमा दिवस मनाया जाता है। श्वास रोग वर्तमान में तेजी से बढ़ रहा है जो चिंता का विषय हो गया है। हमारी क्वालिटी लाइफ और लक्जरी लाइफ स्टाइल इसका नया कारण बन कर उभर रहा है। वातावरण में धूंआ, धूल बढ़ती जा रही है और लोगों ने घरों में खुली धूप और रोशनी के आगमन पर रोक लगा दी है। खान-पान भी डिब्बा बंद वाला ही हो गया है। आवासों के आस-पास गंदगी बढ़ती जा रही है जिससे श्वास रोगी बढऩे लगे हैं। हमें जन-जागृति कर ही इस रोग के बढऩे की चुनौती का सामना करना होगा।
-डॉ. प्रमोद दाधीच, अस्थमा, टीबी व श्वास रोग विशेषज्ञ, मित्तल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर, अजमेर

सन्तोष गुप्ता, प्रबंधक जनसंपर्क, मित्तल हॉस्पिटल, अजमेर

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