आद्य संवाददाता – देवर्षि नारद

Narad Muniब्रह्माण्ड की निर्मिति एवं मनुष्य के सृजन के साथ ही संदेश पाने की अभिलाषा, सब कुछ जानने की जिज्ञासा मानव मन की रही है और इसलिए व्यक्ति एवं समाज के ठीक दिशा में विकास के लिए सत्य जानकारियों के संकलन, सम्पादन एवं संप्रेषण का महत्व में रहा है। विश्व में सर्वप्रथम यदि संवाद प्रश्न की व्यवस्था को सर्वाधिक कल्याणकारी रूप में किसी ने प्रस्तुत किया है तो वह है देवर्षि नारद। इसलिए देवर्षि नारद आद्य संवाददाता या आद्य पत्रकार के रूप में जाने और माने जाते हैं। उनकी जयंती ज्येष्ठ कृष्ण २, जो इस बार 22 मई को है, पत्रकार दिवस के रूप में मनाई जाती है। उनकी कार्यशैली, योग्यता एवं जनकल्याण की भावना को आज का सूचना शक्ति का युग भी स्वीकार कर रहा है।
वे पत्रकारिता के पितृ पुरुष है। उनकी विशिष्ठताएं पत्रकारिता का बुनियादी आधार है। उनकी गहन चिंतन वाली छवि, निष्पक्षता व विश्वसनीयता का कोई मुकाबला नहीं है। आज जिन बातों की अपेक्षा समाज मीडिया से करता है, नारद का चरित्र एवं कृतित्व पूर्णतरू उसी के अनुरूप है।
देवर्षि नारद अत्यल्प समय में उस स्थान पर उपस्थित हो जाते हैं, जहाँ संवाद की संभावना होती है। तीनों लोकों में निर्बाध, निरन्तर भ्रमण करने वाले नारद अपने मधुर स्वभाव से हर प्राणी के मन को जीत कर संवाद के हर सूत्र को प्राप्त करने की अद्भुत प्रवृत्ति रखते हैं। देवर्षि नारद मात्र घटनाओं को देखते और सुनाते भर नहीं वरन् उन्हें एक सकारात्मक एवं सृजनात्मक दिशा देने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते है। यदि उनका संवाद संप्रेषण लोककल्याण के लिए आवश्यक हो तो वे कही भी जाने के लिए किसी निमंत्रण की प्रतीक्षा या अपने मान सम्मान की चिंता नहीं करते।
उनके निस्वार्थ एवं लोकहित में सत्य एवं निष्पक्ष समाचारों और सूचनाओं के आदान प्रदान करने के कारण ही नारद देवताओं, दानवों, गंधर्वों व मनुष्यों सबके प्रिय एवं सम्मान के पात्र है। नारद के मुख से सदैव नारायण-नारायण का उच्चारण भी यही सिद्ध करता है कि वे हर वक्त समाज के कल्याण के विचार में ही मग्न रहते हैं। भारतीय चिंतन में समाज को नारायण स्वरूप ही माना है, नारद सम्पूर्ण सृष्टि के पालक नारायण अर्थात् सृष्टि के कल्याण का ही चिंतन सदैव करते हैं। अपनी खबरों से जहाँ कही भी नारद ने संघर्ष उत्पन्न किया, उसकी अंतिम परिणति समाज के कल्याण में ही हुई है।
लोककल्याण को केन्द्र में रख कर संवाददाता की भूमिका निभाने वाले नारद किसी कार्य का क्रेडिट स्वयं लेने में विश्वास नहीं रखते। धर्म की स्थापना, दुष्टों के विनाश एवं सुमंगल की स्थापना के लिए वे प्रहलाद को नारायण भक्ति के मार्ग पर चला कर हिरण्यकश्यप वध की भूमिका बनाते हैं, वाल्मिकि एवं वेदव्यास को नैराश्य से निकाल कर जगत को सन्मार्ग पर ले जाने वाले ग्रन्थों रामायण एवं श्रीमदभागवत की रचना की प्रेरणा देते हैं, समाज में माता-पिता की महत्ता स्थापित करने के लिए गणेश को त्रिलोकी की परिक्रमा के स्थान पर शिव-पार्वती की परिक्रमा का संदेश देते हैं। इन्द्र, चन्द्र, विष्णु, शंकर, युधिष्ठिर, राम, कृष्ण आदि को अपने संवाद संप्रेषण के माध्यम से कर्तव्याभिमुख करते हैं। सम्पूर्ण पौरोणिक व्याख्यानों में नारद की पत्रकारिता में लोक मंगल की पत्रकारिता एवं लोकहित में संवाद संकलन का दर्शन होता है।
देवर्षि नारद सूचनाओं के बेहतरीन प्रबंधक है ओर इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि किसी सूचना को सम्प्रेषित करने का सबसे उचित समय क्या है? वह सूचनाओं का उल्लेख ऐसे प्रसंगों और संदर्भों में करते हैं जो उनको मनोवांछित कल्याणकारी निष्कर्ष देने में सक्षम हो।
महाभारत के सभा पर्व के पांचवें अध्याय में नारदजी के व्यक्तित्व के उन पक्षों का सम्पूर्ण दर्शन होता है जो पत्रकारिता के आदर्श कहे जा सकते हैं – वे वेदों, उपनिषदों, पुराणों, इतिहास के जानकार अर्थात् गूढ़ अध्ययनशील एवं ज्ञान में अपडेट है, वे न्यायविद है एवं प्रमाण के आधार पर ही निश्चय करते हैं, अंध आस्थावादी नहीं है। वे कर्तव्य एवं अकर्तव्य के भेद में दक्ष, नीतिज्ञ, मेघावी, संधि और विग्रह के तत्ववेत्ता, सबके हितकारी और सर्वत्र गति करने वाले हैं।
महाभारत युद्ध के पश्चात् युधिष्ठिर के राज्य संभालने के कुछ समय उपरांत नारदजी उनके दरबार में आते हैं और उनसे कई प्रश्न करते हैं। वे पूछते हैं – क्या आप अर्थ चिन्तन करते हैं? क्या अर्थ चिंतन के साथ धर्मचिंतन भी करते हैं? क्या किसान प्रसन्न रहते हैं? क्या किसान को कम व्याज पर ऋण मिलता है? क्या कर्मचारियों को नियमित वेतन मिलता है? क्या निष्ठावान्, शुद्ध चरित्र वाले व्यक्तियों को ही मंत्री बनाया गया है? उत्तम, मध्यम एवं अधम व्यक्तियों की जाँच कर यथानुरूप कार्य में लगाते हैं? चोरी करने वालों को चुराए गए माल के साथ पकड़ कर माल के लोभ में छोड़ तो नहीं दिया जाता? कार्यकुशल, राजहितैषी कर्मचारियों के संरक्षण की व्यवस्था है अथवा नहीं? नारद के ये प्रश्न लोककल्याणकारी राज्य को परिभाषित करने के मार्गदर्शी सिद्धान्त है। सुसंगत प्रश्नावली राजा को राज्य व्यवस्था को ठीक करने की प्रेरणा देती है, सुझाव मूलक सत्य तथ्य का ज्ञान भी कराती है, प्रश्न काटते हैं तो समाधान भी देते हैं और इसलिए नारद पत्रकारिता की प्रेरणा है, प्राण है।

डॉ. नारायण लाल गुप्ता
डॉ. नारायण लाल गुप्ता
पत्रकारिता की भारतीय अवधारणा पश्चिम की तरह नकारात्मक, सनसनी फैलाने वाली नहीं है एवं आज भी वह जनकल्याण का मूल लक्ष्य रखती है। क्योंकि भारतीय पत्रकारिता का डीएनए नारद से आता है, शायद इसलिए संवत् 1883 में उनके जन्मदिवस ज्येष्ठ कृष्ण २ (तदनुसार 30 मई 1826) को कोलकाता से उद्दत मार्तण्ड नामक भारत की पहली साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ हुआ तथा इसके प्रथम पृष्ठ पर देवर्षि नारद का उल्लेख किया गया। तकनीक में तेजी से बदलाव पिछले सौ सालों में हुए हैं, पत्रकारिता भी उससे अछूती नहीं है। जनसंचार के नवीन माध्यम 24-7 चौनल, इंटरनेट, मोबाईल, वेब पत्रिकाएं, सोशल नेटवर्किंग साइटस के द्वारा संवाद बढ़ा है, तकनीक पत्रकारिता को और कहाँ ले जायेगी यह भविष्य के गर्भ में है, किन्तु यह अवश्य है कि विश्वसनीयता, निष्पक्षता एवं लोककल्याण के सूत्र हमेशा पत्रकारिता की बुनियाद में रहेंगे। इसलिए देवर्षि नारद पत्रकारिता के भूत भी है, वर्तमान भी है और भविष्य भी।
– डॉ. नारायण लाल गुप्ता
सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय, अजमेर

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