नेहरु जी को 52वीं पूण्यतिथि पर उनके योगदान को याद कर उनको श्रद्धा सुमन (भाग1)

डा. जे. के. गर्ग
डा. जे. के. गर्ग
स्वतंत्रता-संग्राम के आंदोलनों में अनेक बार जेल यातनाओं को सहते हुए नेहरू को अपार लोकप्रियता एवं देशवासियों का प्यार मिला | जनता ने उनकी खुशमिजाजी और बदमिजाजी को समान रूप से सहेजा|जब उन्होंने नाराज होकर तकिये फेंके तब भी और जब उन्होंने फूल-मालाएं फेंकी तब भी | युवा उनके जैसे वस्त्र पहनने लगे,उनकी तरह बोलने और लिखने लगे. इस तरह वे अघोषित प्रतिष्ठा के प्रतीक हो गये|
नेहरूजी गांधीजी को श्रद्धा की दृष्टि से देखते थे और गांधीजी अपने बेटों से भी ज्यादा स्नेह अपने अनुयायी पर बरसाते रहेम, लेकिन भविष्य के भारत के प्रति दोनों के रुझान एवं सोच में भारी अंतर था | नेहरू जहाँ धर्म-विरक्त थे, वहीं गांधी अपने विश्वासों के अनुरूप ईश्वर पर आस्था रखते थे|नेहरू भारत की पारंपरिक गरीबी से मुक्ति पाने के लिए औद्योगीकरण को ही एकमात्र विकल्प मानते थे, जबकि गांधी ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था के पक्षधर थे| जहाँ नेहरू आधुनिक सरकारों में सामाजिक-व्यवस्था को सुधारने और गतिशील बनाने की क्षमता में पूरा यकीन करते थे वहीं दुसरी तरफगांधी राज-तंत्र को शंका की नजर से देखते थे,उनका विश्वास व्यक्तियों और ग्राम-समुदायों के विवेक पर केंद्रित था | इन असहमतियों के साथ दोनों के बीच बुनियादी सहमतियां भी थीं, दोनों व्यापक अर्थ में देशभक्त थे,जिन्होंने किसी जाति,भाषा,क्षेत्र,धर्म या कि किसी भी तरह अधिनायकवादी सरकार के साथ होने के बजाय अपने को पूरे देश के साथ एकाकार कर लिया था|दोनों हिंसा और आधिनायकवाद नापसंद करते थे|दोनों अधिनायकवादी सरकारों की तुलना में लोकतंत्रात्मक सरकारों को पसंद करते थे| (सन्दर्भ–मेकर्स ऑफ मॉडर्न इंडिया : रामचंद्र गुहा)
प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू जी के योगदान को तीन भागों में बांटा जा सकता है।
(1)ऐसी शक्तिशाली संस्थाओं का निर्माण,जिनसे भारत में प्रजातांत्रिक व्यवस्था स्थायी हो सके। इन संस्थाओं में संसद एवं विधानसभायें व पूर्ण स्वतंत्र न्यायपालिका शामिल हैं।
(2 )प्रजातंत्र को जिंदा रखने के लिये निश्चित अवधि के बाद चुनावों की व्यवस्था और ऐसे संवैधानिक प्रावधान जिनसे भारतीय प्रजातंत्र धर्मनिरपेक्ष बना रहे|नेहरू जी ने साम्प्रदायिकता का विरोध करते हुए धर्मनिरपेक्षता पर बल दिया। उनके व्यक्तिगत प्रयास से ही भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया था। चूँकि हमने धर्मनिरपेक्षता को अपनाया इसलिए हमारे देश में प्रजातंत्र की जड़ें गहरी होती गईं। जहां अनेक नव-स्वाधीन देशों में प्रजातंत्र समाप्त हो गया है और तानाशाही कायम हो गई है वहीं भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक मुल्क बना ।
(3)मिश्रित अर्थव्यवस्था:——एक मध्यमार्गी राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष और सदस्य रहते हुए जवाहरलाल नेहरू समाजवादी समाज की रचना के लिए अपनी प्रतिबद्धता घोषित करते रहे|वास्तविकता तो यही है किनेहरू का विजन मॉडल राज्य की उस विकासवादी प्रतिबद्धता की घोषणा ही है,जो शोषण-विहीन समाज-रचना की बुनियादी शर्त है|अपनी समाजवादी अवधारणा को स्पष्ट करते हुए नेहरू लिखते हैं“मैं समाज से व्यक्ति संपदा और मुनाफे की भावना खत्म करना चाहता हूं|मैं प्रतिस्पर्द्धा की जगह समाज-सेवा और सहयोग की भावना स्थापित करने का समर्थक हूं|मैं व्यक्तिगत मुनाफे के लिए नहीं,उपयोग के लिए उत्पादन चाहता हूं|मैं यह बात विश्वासपूर्वक कहता हूं कि दुनिया और भारत की समस्याओं का अंत समाजवाद से ही हो सकता है, मैं इस शब्द को किसी अस्पष्ट समाजवादी की तरह नहीं समाज-वैज्ञानिक और अर्थशास्त्री की तरह काम में लेता हूं | समाजवाद केवल आर्थिक सिद्धांत ही नहीं,जीवन-दर्शन भी है| मुझे समाजवाद के सिवाय भारत की गरीबी और बेरोजगारी का अंत नजर नहीं आता|समाजवाद का अर्थ है– व्यक्ति-संपदा का उन्मूलन और व्यक्तिगत मुनाफे की जगह सहयोगी भावना के महान आदर्श की शुरुआत,इसका अर्थ है —-हमारी रुचियों,आदतों हमारी प्रवृत्तियों में बुनियादी तब्दीली|संक्षेप में एक पुरानी पूंजीवादी व्यवस्था से अलग एक नयी सभ्यता की शुरुआत“ |गौरतलब है कि नेहरू के समय की अर्थनीतियां मिश्रित अर्थव्यवस्था पर आधारित हैं|वे लोकतंत्रात्मक छवि और समाजवादी उत्साह का मिश्रित रूप है|
अधोसंरचनात्मक एवं बुनियादी उद्योगों की सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापना——–
उस समय भारत के सामने एक और समस्या थी और वह थी बुनियादी उद्योगों के लिये वित्तीय साधन उपलब्ध करवाना। पूँजीवादी देश इस तरह के उद्योगों के लिये पूँजी निवेश करने को तैयार नहीं थे। इन देशों का इरादा था कि भारत और भारत जैसे अन्य नव-स्वाधीन देशों की अर्थव्यवस्था कृषि-आधारित बनी रहे। चूँकि पूँजीवादी देश भारत के औद्योगिकरण में हाथ बंटाने को तैयार नहीं थे इसलिये नेहरू जी को सोवियत रूस समेत अन्य समाजवादी देशों से सहायता मांगनी पड़ी और समाजवादी देशों ने दिल खोलकर सहायता दी। समाजवादी देशों ने सहायता देते हुये यह स्पष्ट किया कि वे यह सहायता बिना किसी शर्त के दे रहे हैं।समाजवादी देशों की इसी नीति के अन्तर्गत हमें सार्वजनिक क्षेत्र के पहले इस्पात संयत्र के लिये सहायता मिली और यह प्लांट भिलाई में स्थापित हुआ। बिजली का उत्पादन पूरी तरह से सार्वजनिक क्षेत्र में रखा गया। इसी तरह इस्पात,बिजली के भारी उपकरणों के कारखाने,रक्षा उद्योग,एल्यूमिनियम एवं परमाणु ऊर्जा भी सार्वजनिक क्षेत्र में रखे गए। देश में तेल की खोज की गई और पेट्रोलियमरिफाईनरी व एलपीजीबाटलिंग का काम भी केवल सार्वजनिक क्षेत्र में रखे गये। औद्योगिकरण की सफलता के लिये तकनीकी ज्ञान में माहिर लोगों की आवश्यकता होती है। उद्योगों के संचालन के लिये प्रशिक्षित प्रबंधक भी चाहिए होते हैं।
जे.के गर्ग
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