बहुत अच्छा लगा की आज 17 वर्ष पहले आज ही के दिन हमारी भारतीय फ़ौज के वे जाँबाज सैनिक जिन्होंने भारत की सीमाओं की रक्षा में अपना योगदान किया और हँसते हँसते अपने प्राण न्यौछावर कर दिए ? लेकिन ऐसे भी लोग है जो उस घाव और दर्द को समझने में अपना अगला समय लगा रहे है ? उनमे से ही एक हैं मेजर हिमांशु
मेजर हिमांशु भी कारगिल में ऑपरेशन विजय का हिस्सा थे । ऑपरेशन के समय वह कुमायूं और मराठा रेजिमेंट को चिकत्सीय सुविधा देने के लिए तैनात थे ! युद्ध के दौरान वह कारगिल के उडी और मस्कोह क्षेत्र में तैनात थे , वह व्यथित होकर कहते है की वह आज तक नहीं समझ पाये कि वह अपने साथियों की सहादत पर गर्व अधिक करें या फिर उनके बिछड़ने पर गम अधिक करें ।
वह आगे कहते हैं की युद्ध शुरू होने के बाद पाकिस्तान का असली मकसद भी सामने आ ही गया की वह हमारे नेशनल हाइवे को बाधित करना चाहता था । इसलिए हमे रातो रात ऑपरेशन क्षेत्र में पहुँचाया गया था !वह आगे कहते हैं की कारगिल की लड़ाई में फौजी रणनीति और राजनितिक सोंच में भरी अन्तर देखने को मिला था । वह आगे कहते है कि सेनाओं की ओर से मिलने वाली सूचनाओं पर राजनितिक नेतृत्व निर्णय लेने में बहुत समय लेता है । और अक्सर देखा जाता है कि राजनितिक गलतियों के निशान फ़ौज के जवानो को अपने रक्त से धोने पड़ते हैं ? इस लिए यह जरूरी है की फ़ौजी कार्यवाही की प्रक्रिया समझने वाले लोगों को ही निर्णय लेने की जिम्मेदारी मिले या फ़ौज को समझने के लिए राजनितिक नेतृत्व को भी फौजी प्रक्रिया को समझने के लिए प्रशिक्षण मिले ?
एस. पी. सिंह । मेरठ