कर्मयोगी महाराजा अग्रसेन –पार्ट–2

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
विवाह:
युवा अग्रसेन ने सर्पों के राजा नागराज की सुपत्री राजकुमारी माधवी के स्वयंवर में अनेकों राजाओं, राजकुमारों और स्वर्ग के सम्राट इंद्रदेव के साथ भाग लिया था | इंद्र देवता राजकुमारी माधवी की सुंदरता पर मोहित थे एवं एन कैन प्रकारेण राजकुमारी माधवी से विवाह करना चाहते थे | स्वयंवर में राजकुमारी माधवी ने राजकुमार अग्रसेन का चयन कर उनका वरण किया | अग्रसेन-माधवी के विवाह से दो भिन्न भिन्न संस्कृतियों एवं परिवारों का मिलन हुआ क्योंकि राजकुमार अग्रसेन जहाँ एक सूर्यवंशी थे वहीं राजकुमारी माधवी एक नागवंशी थी | राजकुमारी माधवी का विवाह अग्रसेनजी के साथ सम्पन्न होने पर इंद्रदेव बहुत क्रोधित हुये और इन्द्र ने प्रताप नगर के निर्दोष स्त्री-पुरुषों,बालक-बालिकाओं को प्रताड़ित करने हेतु प्रताप नगर पर कई वर्षा तक बारिश नहीं होने दी जिससे प्रताप नगर में भयानक अकाल पड गया | हजारों लोगो की जान चली गई और जनसाधारण त्राही-त्राही करने लगे | सम्राट अग्रसेन ने अपनी प्रजा एवं प्रताप नगर की सुरक्षा और राजधर्म के पालनार्थ इंद्र के खिलाफ धर्मयुद्ध प्रारम्भ कर दिया | युद्ध में इंद्र की पराजय हुई | पराजित इंद्र ने नारदमुनि से अनुनय-विनय कर उनकी सम्राट अग्रसेन से सुलह करवाने का निवेदन किया | नारद मुनि ने दोनो के बीच मे मध्यस्थता कर सुलह करवा दी |
भगवान शिव और माता लक्ष्मी की आराधना एवं पूजा :——महाराज अग्रसेन ने काशी जाकर भगवान शिव की कठोर तपस्या की, तपस्या से खुश हो कर भगवान शिवजी साक्षात् प्रगट हुए | शिवजी ने अग्रसेनजी को महालक्ष्मीजी की पूजा और ध्यान करने का आदेश दिया | अग्रसेनजी ने महालक्ष्मी की पूजा- आराधना शुरू कर दी | माँ लक्ष्मी ने परोपकार हेतु की गयी तपस्या से खुश होकर उन्हें दर्शन दिए और कहा कि अपना एक नया राज्य बनाएं और वैश्य परम्परा के अनुसार अपना व्यवसाय करें तो उन्हें तथा उनके लोगों या अनुयायियों को कभी भी किसी चीज की कमी नहीं होगी। लक्ष्मी माता का आदेश मान कर अग्रसेन महाराज ने क्षत्रिय कुल को त्याग वैश्य धर्म को अपना लिया | महाराजा अग्रसेन प्रथम वैश्य सम्राट बने |

संकलनकर्ता डा. जे. के. गर्ग—डा. श्रीमती विनोद गर्ग

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