युगप्रवर्तक कर्मयोगी महाराजा अग्रसेन—-Part—5

सम्राट अग्रसेन की राज्य व्यवस्था

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
राज्य के उन्हीं 18 गणों से एक-एक प्रतिनिधि लेकर उन्होंने लोकतांत्रिक राज्य की स्थापना की, जिसका स्वरूप आज भी हमें भारतीय लोकतंत्र के रूप में दिखाई पडता है। उन्होंने परिश्रम और उद्योग से धनोपार्जन के साथ-साथ उसका समान वितरण और आय से कम खर्च करने पर बल दिया। जहां एक ओर वैश्य जाति को व्यवसाय का प्रतीक तराजू प्रदान किया वहीं दूसरी ओर आत्म-रक्षा के लिए शस्त्रों के उपयोग की शिक्षा पर भी बल दिया।
कहते हैं कि महाराज अग्रसेन ने 108 वर्षों तक राज किया। महाराज अग्रसेन ने जहाँ एक तरफ हिन्दू धर्म ग्रंथों में वैश्य वर्ण के लिए निर्देशित कर्म क्षेत्र को स्वीकार किया वहीं दूसरी तरफ देशकाल के परिप्रेक्ष्य में नए आदर्श स्थापित किए । अग्रसेनजी के जीवन के तीन आदर्श हैं यथा लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था, आर्थिक समरूपता एवं सामाजिक समानता। निश्‍चित आयु प्राप्त करने के बाद कुलदेवी महालक्ष्मी से परामर्श पर वे आग्रेय गणराज्य का शासन अपने ज्येष्ठ पुत्र विभु के हाथों में सौंपकर तपस्या करने चले गए।
अग्रोहा की समृद्धि, से पड़ोसी राजाओं में इर्ष्या, असंतोष होने लगा ,इन राजाओं ने बार अग्रोहापर अचानक हमले भी किये, इन अकारण आक्रमणों से अग्रोहा को कई समस्याओ का सामना भी करना पड़ा जिससे अग्रोहा की ताकत कम होती गई | अग्रोहा में एक बार भयकंर आग लग गई जिसकी वजह से वहां के नागरिक अग्रोहा को छोड़ कर चले गए एवं भारत के दुसरे क्षेत्रों में जाकर बस गए | आज वही लोग“अग्रवाल” के नाम से जाने जाते हैं |
संकलनकर्ता डा. जे. के. गर्ग—डा. श्रीमती विनोद गर्ग

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