देवताओं के कोषाध्यक्ष एवं धनाधिपति कुबेर

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
दीपोत्सव पर जहाँ हर घर-आंगन में माता लक्ष्मी एवं गणेशजी की पूजा-अर्चना की जाती हैं वहीं कई लोग धन-सम्पदा,एश्वर्य-सुख-सम्रद्धि की प्राप्ति के लिये धन तेरस और दीपावली के दिन धन के स्वामी कुबेर की भी पूजा करते हैं |
जहाँ इंद्र देवताओं के राजा हैं, ब्रहस्पति देवताओं के गुरु हैं वहीं कुबेर ब्रह्मांड में धनाधिपति के साथ साथ देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं | कुबेर ही समस्त धनराशियों के स्वामी होने के नाते धन के अधिपति है | कुबेर को यक्षों का अधिपति भी माना जाता है | कुबेर नवनिधियों, पध्म,म्हापध्म,शंख,मकर,कच्छप, मुकुंद,कुंद,नील और खर्व के स्वामी हैं | इसलिए मनुष्य धन-सुख-सम्रद्धि-एश्वर्य-सोभग्य-संतान की प्राप्ति के लिये धनपति कुबेर की भी पूजा-अर्चना की जाती है |कुबेर प्रजापति पुलस्त्य के बेटे महामुनि विश्रवा एवं महामुनि भारद्वाजः की बेटी के पुत्र हैं | कुबेर के समबन्ध में विभिन्न धार्मिक गंथों अनेक गाथायें और किद्वन्तियां मिलती है | महाभारत के अनुसार ब्रहमाजी ने कुबेर को लोकपाल पद, अक्षय धन-सम्पदा के स्वामी, पुष्पक विमान और देवपद दिया था | देवादिदेव महादेव ने अपने सखा और भक्त कुबेर को अलकापुरी , उत्तर दिशा का आधिपत्य एवं एक दिव्य सभा प्रदान की थी | महाकवि कालीदास ने मेघदूत में अलकापुरी को केलाश पर्वत के समीप अलकनंदा के तट पर बताया है | वहीं ब्रह्मपुराण के अनुसार कुबेर के पिता विश्रवा ने ने दक्षिण तट पर सोने से बनी हुई लंका को उन्हें प्रदान किया था | कुबेर लकां के नरेश बन कर वहां रहने लगे | रावण, कुभंकरण, विभिषण और शूर्पणखा कुबेर के सोतेले भाई-बहिन थे क्यों कि वे विश्रवा और उनकी दुसरी पत्नी केकसी की संतान थे | यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है कि रावण के दुवारा नंदनवन उजाड़ने के कारण समस्त देवता रावण के शत्रु बन गये थे । जब कुबेर को अपने सोतेले भाई रावण के अनेक अत्याचारों के बारे में मालूम हुआ तो वे लज्जित और दुखी एवं क्रोधित हुए उन्होंने रावण को समझाने के लिये एक दूत को भेजा। दूत ने रावण को कुबेर का संदेश दिया कि कुबेरजी चाहते हैं कि वो अधर्म एवं अत्याचार के क्रूर कार्यों को छोड़ दे। सत्ता के मद में चूर रावण ने क्रुद्ध होकर उस दूत को अपनी खड्ग से काटकर दूत के मर्त शरीर कोराक्षसों को खाने के लिये दे दिया। कुबेर को रावण के इस क्रूर कृत्य से दुःख हुआ और उसे बहुत बुरा लगा। रावण तथा राक्षसों का कुबेर तथा यक्षों से युद्ध हुआ। यक्ष बल से लड़ते थे और राक्षस माया से, युद्ध में मायावयी: राक्षस विजयी हुए। रावण ने माया से अनेक रूप धारण किये तथा कुबेर के सिर पर प्रहार करके उसे घायल कर दिया और बलात उसका पुष्पक विमान ले लिया। तब कुबेर ने अपने दादाजी के कहने पर शिवजी की आराधना की जिससे कुबेर को धनपाल की पदवी पत्नी और पुत्र का लाभ हुआ।
कुबेर का ध्यान एवं पूजा-अर्चना:— धन के अधिपति होने के कारण कुबेर को मंत्र साधना से प्रसन्न किया जा सकता है। इनकी प्रसन्नता जिस भक्त को मिल जाती है, वह धनवान हो जाता है। कुबेर मंत्र का जप दक्षिण की ओर मुख करके करना चाहिए। कुबेर मंत्र: ऊँ श्रीं, ऊँ ह्रीं श्रीं, ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय: नम:। इस मंत्र का जप किसी शिव मंदिर में करना उत्तम रहता है। यदि यह उपाय बिल्वपत्र वृक्ष की जड़ों के समीप बैठकर हो सके तो और भी अधिक फलदायी होता है।

प्रस्तुतिकरण—डा.जे.के.गर्ग
सन्दर्भ— रामायण, उत्तर कांड, सर्ग 13, श्लोक 20-39,बाल्मीकि रामायण, उत्तर कांड, सर्ग 13 से 15, ब्रह्म पुराण । 97

error: Content is protected !!