श्री ‘‘श्रीजी‘‘ महाराज के निकुञ्ज वास पर विश्वभर के भक्तों में शोक की लहर

shree ji maharajआप श्री का जन्म विक्रम सम्वत् 1986 को वैशाख शुक्ल प्रतिपदा (एकम) तदनुसार दिनांक 10 मई 1929 शुक्रवार को प्रात: 5 बजकर 45 मिनिट पर सलेमाबाद ग्राम के श्री रामनाथ जी इन्दौरिया (गौड़ ब्राह्मण) तथा श्रीमती सोनी बाई (स्वर्णलता) के घर पर हुआ। जन्म नक्षत्र के अनुसार आपका नाम ’’उत्तम चन्द’’ रखा गया। परन्तु एक दिन एक महात्मा जी आपके घर भिक्षा लेने हेतु पधारे। संयोगवश आपकी माताजी आपको गोद में लिये हुये ही महात्मा जी को भिक्षा देने के लिये बाहर आ गई। तब आपके तेजस्वी स्वरुप को देखकर महात्मा जी ने आपकी माताजी से कहा ’’मैया तेरा यह बालक तो साक्षात रतन है, रतन।’’ उसके पश्चात आपके घरवालों ने आपका नाम ’’उत्तम चन्द’’ से ’’रतन लाल’’ रख दिया। आपके तेजस्वी स्वरूप, जन्म नक्षत्र एवं प्रतिभा को देखते हुये आपके गुरु अनन्त श्री विभूषित जगद्गुरु निम्बार्काचार्यश्री बालकृष्णशरण देवाचार्य जी महाराज ने आषाढ़ शुक्ला द्वितीया वि0 सं0 1997 दिनांक 07.07.1940 रविवार को 11 वर्ष 1 माह 28 दिन की आयु में विधि विधान पूर्वक पंच संस्कार युक्त विरक्त वैष्णवी दीक्षा प्रदान कर ’’श्री राधासर्वेश्वरशरण’’ नाम से विभूषित कर अपने युवराज पद पर आसीन किया। तत्पश्चात् ज्येष्ठ बदी प्रतिपदा (एकम्) वि0 सं0 2000 में प्रात: 8 बज कर 45 मिनिट पर आपके गुरु श्री बालकृष्णशरण देवाचार्य जी महाराज के गोलोक धाम पधारनें के बाद आचार्य पीठ परम्परानुसार आप ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीया, वि0 सं0 2000 दिनांक 5 जून 1943 शनिवार को प्रात: 8 बजे मात्र 14 वर्ष 26 दिन की आयु में अनेकों, सन्तों, महन्तों, मण्डलेश्वर, महामण्डलेश्वर तथा जयपुर, जोधपुर, किशनगढ़, उदयपुर, बीकानेर, बुंदी आदि नरेशों के प्रतिनिधियों की उप​स्थिति में निम्बार्काचार्यपीठ पर पीठासीन हुये।
ऐसी आपकी विद्वत्ता एवं श्रीसर्वेश्वर प्रभु में असीम भक्ति को देखते हुये अल्प वय में ही आपकी प्र​सिद्धि निम्बार्क जगत में ही नही, अपितु सम्पूर्ण भारत वर्ष के धार्मिक क्षेत्रों एवं विद्वज्जनों के बीच होने लगी थी। इसका प्रत्यक्षत: उदाहरण वि0 सं0 2001 श्रावण मास में कुरुक्षेत्र में देखने को मिला। जहाँ सूर्यसहस्त्ररश्मि महायज्ञ के अवसर पर आयोजित सनातन धर्म सम्मेलन की मात्र 15 वर्ष की आयु में आपने एक दिन की अध्यक्षता की थी। जबकि इस सम्मेलन में जगद्गुरु श्रीशंकराचार्य जी, श्रीवैष्णवाचार्य जी एवं अन्य कई सन्त महन्त उप​स्थित थे। इसी सम्मेलन के अवसर पर जगद्गुरु शंकराचार्य श्रीभारतीकृष्ण तीर्थ जी महाराज गोवर्धन पीठ (पुरी) ने वैष्णव धर्म को भविष्य में आपके हाथों में सुरक्षित देखते हुये एक धर्म सम्मेलन श्रीनिम्बार्क तीर्थ में आयोजित करने की इच्छा व्यक्त की। उस अल्प आयु में भी आपने उसी समय ही यह निर्णय कर लिया की एक दिन श्रीनिम्बार्क तीथ में धर्म सम्मेलन का आयोजन अवश्य करेगें और उसी निर्णय की परिणिति के रूप में सन् 1975 में श्रीनिम्बार्क तीर्थ में प्रथम अखिल भारतीय विराट् धर्म सम्मेलन का आपके सानिध्य में सफलता पूर्वक आयोजन किया गया। अल्पावस्था में ही आपके ऐसे गुणों को देखते हुये सूक्ति सुधा का यह वाक्य आपके लिये सटीक बैठता हैै-
गुणा: पूजास्थानं गुणिषुु न च लिंगं न च वय:।।
अर्थात् :- गुणी मनुष्यों में जो सुन्दर कल्याणकारी गुण विद्यमान रहते हैं, उन्हीं गुणों के कारण मनुष्य पूजा जाता है। सुन्दर वस्त्रों या आभूषणों से सुसज्जित अथवा केवल मात्र बड़ी अवस्था होने के कारण कोई मनुष्य पूज्य नहीं हो जाता हैं।
आपश्री ने वैष्णव धर्म को देश-विदेश में जगह-जगह पहुँचानें का कार्य किया। आपके सानिध्य में निम्बार्काचार्यपीठ में कई महत्वपूर्ण धार्मिक सम्मेलन आयोजित किये गये। जो निम्नानुसार है :-
1. 30-03-1975 से 04-04-1975 तक – प्रथम अखिल भारतीय विराट् धर्म सम्मेलन
2. 21-04-1990 से 29-04-1990 तक – युग सन्त श्री मुरारी बापू द्वारा श्री राम कथा (प्रथम)
3. 22-0571993 से 28-05-1993 तक – अद्​र्धशताब्दीपाटोत्सव स्वर्ण जयन्ती महोत्सव
4. 03-05-1996 से 04-05-1996 तक – ब्रजदासी भगवत् पुस्तक का विमोचन समारोह
5. 20-11-04 से 26-11-04 तक – विशाल धर्म सम्मेलन
6. 05-11-05 से 13-11-05 तक – युग सन्त श्री मुरारी बापू द्वारा श्री राम कथा (द्वितीय)
7. 10-03-07 से 17-03-07 तक – भाईजी श्री रमेश भाई ओझा द्वारा श्रीमद्भागवत कथा

प्यारे मोहन त्रिपाठी
प्यारे मोहन त्रिपाठी
श्रीर्वेश्वर प्रभु की कृपा एवं आपके सानिध्य में आयोजित धर्म सम्मेलनों में चारों पीठों के पीठाधीश्वर जगद्गुरु श्री शंकराचार्य जी, चारों संप्रदायों के पीठाधीश्वर जगदगुरु श्री वैष्णवाचार्य जी, विभिन्न संप्रदायों के धर्माचार्य, सन्त, महन्त, मण्डलेश्वर, महामण्डलेश्वर आचार्य पीठ में पधारें है। इनके साथ ही आचार्य पीठ में तत्कालीन उपराष्ट्रपति महोदय श्री शंकर दयाल जी शर्मा,, एवं श्री भैंरुसिंहजी शेखावत, केन्द्र सरकार के कई मन्त्री महोदय, राजस्थान एवं अन्य राज्यों के राज्यपाल महोदय, मुख्यमन्त्री महोदय तथा उनके मन्त्रीमण्डल के सदस्य एवं विधायक महोदय आपके आशीर्वाद हेतु आचार्य पीठ में पधार चुके हैं। इनके अलावा भारतवर्ष के श्रेष्ठ कवि, विद्वद्जन, गायक कलाकार एवं संगीतकार समय-समय पर पीठ में दर्शनार्थ पधारते रहे है। आपके आशीर्वाद से श्रीनिम्बार्कतीर्थ के अलावा अन्य कई स्थानों पर भी नये मन्दिरों के निर्माण के साथ-साथ प्राचीन मन्दिरों एवं भवनों के पुन:रुद्धार का कार्य भी हुआ है। तथा अभी भी कई स्थानों पर कार्य चल रहा है। इनके अलावा आपके सानिध्य में वि0सं0 2001 प्रयाग कुम्भ में भक्तों के लिये प्रथम बार निम्बार्क नगर की स्थापना की गई। जो आज तक हर कुम्भ एवं अद्​र्धकुम्भ में अनवरत जारी है।
आचार्य श्री स्वयं संस्कृत, हिन्दी, बंग्ला एवं राजस्थानी आदि भाषाओें के जानकार ही नहीं अपितु आयुर्वेद तथा संगीतकला के मर्मज्ञ भी है। आपने संस्कृत एवं हिन्दी के कई ग्रन्थो की रचना की है। जो निम्न प्रकार से है- 1. श्रीनिम्बार्क भगवान कृत प्रात:स्तवराज पर युग्मतत्त्वप्रकाशिका नामक संस्कृत व्याख्या 2. श्रीयुगलगीतिशतकम् 3. उपदेश दर्शन 4. श्रीसर्वेश्वर सुधा बिन्दु 5. श्रीस्तवरत्नाञ्जलि 6. श्रीराधामाधवशतकम् 7. श्रीनिकुञ्ज सौरभम् 8. हिन्दू संघटन 9. भारत-भारती-वैभवम् 10. श्रीयुगलस्तवविंशति: 11. श्रीजानकीवल्लभस्तव 12. . श्रीहनुमन्महिमाष्टकम् 13. श्रीनिम्बार्कगोपीजनवल्लभाष्टकम् 14. भारतकल्पतरु 15. श्रीनिम्बार्कस्तवार्चनम् 16. विवेकवल्ली 17. नवनीतसुधा 18. श्रीसर्वेश्वरशतकम् 19. श्रीराधाशतकम् 20. श्रीनिम्बार्कचरितम् 21. श्रीवृन्दावनसौरभम् 22. श्रीराधासर्वेश्वरमंजरी 23. श्रीमाधवप्रपाष्टकम् 24. छात्र-विवेकदर्शन 25. भारत-वीर-गौरव 26. श्रीराधासर्वेश्वरालोक 27. श्रीपरशुराम-स्तवावली 28. श्रीराधा-राधना 29. मन्त्रराजभावार्थ-दीपिका 30. आचार्य पंचायतनस्तवनम् 31. राधामाधवरसविलास(महाकाव्य) 32. गोेशतकम् 33. सीतारामस्तवादर्श: 34. स्तवमल्लिका 35. श्रीरामस्तवावली36. श्रीमाधवशरणापत्तिस्तोत्रम् आदि-आदि ।
आप द्वारा लिखित पाठ अभी कुछ समय पूर्व तक माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान की कक्षा दस के संस्कृत विषय में सम्मलित था। इस प्रकार आपने कई ग्रन्थों की रचनायें की है। आपने अपने साहित्य में धर्म के साथ-साथ अन्य समसामयिक विषयों यथा- देश प्रेम, पर्यावरण, भ्रष्टाचार आदि पर भी अपने विचारों को व्यक्त किया हैं।
श्रीजी विशेषण :-
आचार्य पीठ के आचार्यों को ’’श्रीजी’’ महाराज के नाम से सम्बोधित किया जाता है। आचार्य पीठ के आचार्यों को ’’श्रीजी’’ महाराज उच्चारित करने की परम्परा निम्बार्काचार्यश्री गोविन्दशरण देवाचार्य जी के समय मे प्रचलित हुई थी, क्योंकि एक बार जब आप श्री की पधरावणी जयपुर महाराजा के यहाँ हुई थी। तब एक दिन आचार्य श्री सदुपदेश के लिये रनिवास में विराज रहे थे। उस समय महल में केवल रानियाँ एवं दा​सियाँ थी। वहाँ पर आचार्य श्री के अतिरिक्त अन्य कोई भी पुरुष नहीं था। उसी समय किसी विरोधी ने जयपुर महाराजा के कान भरते हुये कहा ’’महाराज रनिवास में आचार्य श्री के अतिरिक्त अन्य कोई भी पुरुष नहीं है। वहाँ पर केवल रानियाँ एवं दा​सियाँ ही है।’’ परिणाम स्वरूप जब सशंकित महाराजा ने महल में जाकर देखा तो वे आश्चर्य चकित रह गये। वहाँ महाराजा ने स्वयं अपनी आँखों से देखा कि आचार्य श्री राधिकाजी (श्रीजी) स्वरूप में विराज रहें है। यह देखकर जयपुर महाराजा अपने आप बहुत लज्जित हुये और आचार्य श्री को समस्त बात बताते हुये क्षमा याचना करने लगे। आचार्य श्री ने महाराज को क्षमा करते प्रभु भक्ति प्राप्त होने का आशीर्वाद प्रदान किया। उपरोक्त घटना के पश्चात इस पीठ के आचार्य गणों को सम्माननीय ’’श्रीजी विशेषण’’ से सम्बोधित किया जाने लगा।

प्यारे मोहन त्रिपाठी
मीडिया सलाहकार, राजस्थान लोक सेवा आयोग
पूर्व जॉइंट डायरेक्टर
सूचना एवं जनसंकपर्क विभाग, राजस्थान

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