राष्ट्र रत्न एवं मेवाड़ मणि —महान महाराणा प्रताप Part 2

(जन्म– जेयष्ट शुक्ला तर्तीया, विक्रम सवंत 1597– निधन–29 जनवरी 1597)

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
अकबर को महान कहना चाहिए या फिर महाराणा प्रताप को? यह प्रश्न पिछले 400 से अधिक वर्षों से भारतीयों के मष्तिष्क में एक अनसुलझी पहेली बना हुआ है | यों तो अकबर और प्रताप दोनों अपनी अपनी जगह महान थे | दोनों के कारण भारत को फ़ायदा हुआ | दोनों से हम आज भी बहुत कुछ सीख सकते हैं, बशर्ते हमें मालूम हो कि उस समय हुआ क्या था और उस क्या हालत थे | अगर आप भारत को एक सूत्र में बांधने के काम को महान मानते हैं तो अकबर दूवारा की गई कोशिशे काबिले तारीफ थी वहीं अल्प साधनों किन्तु देश प्रेम के लिये वीरता ओर मजबूत इरादों के साथ आक्रमणकारी का सामना करते हुए आक्रान्ता को पीछे धकेलने का साहस राणाप्रताप ने ही किया इसलिये राणाप्रताप भी महान कहलाने के अधिकारी हैं | अकबर और प्रताप, दोनों के पीछे कई वफ़ादार वीर थे | अकबर को जहाँ अनेकों राजपूत राजाओं का समर्थन मिला हुआ था तो वहीं प्रताप को गद्दी पर बैठाने में उनके राज्य के लोगों का हाथ था | वरना, वचन के मुताबिक़ तो प्रताप के छोटे भाई जगमल्ल को गद्दी मिलनी थी | अकबर जहाँ हमलावर था और मेवाड़ पर हमला करके उस पर अधिकार जमाना चाह रहा था वहीं राणा प्रताप मेवाड़ के जननायक ओर लोकप्रिय शासक थे |
संकलनकर्ता डा. जे. के गर्ग
सन्दर्भ— विभिन्न पत्रिकाएँ, एम राजीव लोचन- इतिहासकार, पंजाब विश्वविद्यालय, सरकार जदुनाथ (1994).A History of Jaipur: c. 1503 – 1938,आइराना भवन सिंह (2004). महाराना प्रताप — डायमंड पोकेट बुक्स. pp.28, आदि

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