हल्दी घाटी की लड़ाई (18 जून 1576 )
7 जून 2016 यानी जेयष्ट शुक्ला तर्तीया, विक्रम सवंत 2073 को राजस्थान के साथ समूचा देश मेवाड़ मुकुट मणि महाराणा प्रताप की 476 वीं जयंती बना रहा है |राणाप्रताप की जयंती पर ऐतिहासिक हल्दीघाटी की लड़ाई का चित्र हर राजस्थानी के मानस पटल पर अंकित हो ही जाता है |
हल्दीघाटी का कण-कण आज भी प्रताप की सेना के शौर्य,पराक्रम और बलिदानों की कहानी कहता है। 18 जून 1576 का भारत के इतिहास में एक विशिष्ट स्थान है क्योंकि इसी दिन प्रसिद्ध हल्दीघाटी की लड़ाई में लगभग बाईस हजार आजादी के मतवाले राजपूतों के साथ राणा प्रताप ने अकबर की मुगल सेना के सेनापति राजा मानसिंह एवं आसफ खाँ की अस्सी हजार सैनिकों की विशालकाय सेना का वीरता पूर्वक सामना किया था|
हल्दीघाटी की लड़ाई मात्र एक दिन चला परन्तु इसमें 14000 राजपूत सैनिकों को अपने प्राणों की आहुती देनी पड़ी ।हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लडने वाले एक मात्र मुस्लिम सरदार हकीमखां सूरी थे|मेवाड़ के आदिवासी भीलों ने हल्दी घाटी में अकबर की फौज को अपने तीरो से रौंद डाला था सभी भील महाराणा प्रताप को अपना बेटा मानते थे और राणा जी बिना भेद भाव के उन के साथ रहते थे|आज भी मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक तरफ राजपूत है तो दूसरी तरफ भील|शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को उनके विद्र्ही भाई शक्ति सिंह ने बचाया,किन्तु इस युद्ध में राणाप्रताप के प्रिय घोड़ेचेतककी भी मृत्यु हो गई।चित्तौड़ की हल्दी घाटी में चेतक की समाधि बनी हुई है। चेतक का अंतिम संस्कार महाराणा प्रताप और उनके भाई शक्ति सिंह ने किया था। महाराणा प्रताप के भाले का और कवच कावजन80किलोथा। महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में रखे हुए हैं। मेवाड़ राजघराने के वारिस को एकलिंग जी भगवन का दीवान माना जाता है।
संकलनकर्ता डा. जे. के गर्ग
सन्दर्भ— विभिन्न पत्रिकाएँ, एम राजीव लोचन- इतिहासकार, पंजाब विश्वविद्यालय, सरकार जदुनाथ (1994).A History of Jaipur: c. 1503 – 1938,आइराना भवन सिंह (2004). महाराना प्रताप — डायमंड पोकेट बुक्स. pp.28, आदि
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