दानवीर भामाशाह का त्याग—
मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये किन्तु वो सफल नहीं हो सका। निरंतर सघर्ष के कारण महाराणा की आर्थिक हालत दिन-प्रतिदिन कमजोर होती गई एवं एक बार तो वो विचलित भी हो गये |विपत्तियों के इन क्षणों में भामाशाह ने अपने जीवन की सारी कमाई को राणाप्रताप को अर्पित कर मेवाड़ की रक्षा हेतु लड़ाई चालू रखने का निवेदन किया | भामाशाह की यह आर्थिक सहायता लगभग 25000 राजपूतों की सेना के 12 साल तक का वेतन और निर्वाह के लिए पर्याप्त थी|अपनी दानशीलता के लिए भामाशाह भी इतिहास पुरुष बने इसीलिये आज भी कई राज्यों में उनके नाम से जन कल्याणकारी योजनायें चला रहें हैं|
संकलनकर्ता डा. जे. के गर्ग
सन्दर्भ— विभिन्न पत्रिकाएँ, एम राजीव लोचन- इतिहासकार, पंजाब विश्वविद्यालय, सरकार जदुनाथ (1994).A History of Jaipur: c. 1503 – 1938,आइराना भवन सिंह (2004). महाराना प्रताप — डायमंड पोकेट बुक्स. pp.28, आदि
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